SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-7 रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत । रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा । । १० । । सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते । ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्त्वमित्युत ।। ११ । । लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा । रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ।। १२ ।। और हे अर्जुन, रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्वगुण होता है अर्थात बढ़ता है तथा रजोगुण और सत्वगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ता है; वैसे ही तमोगुण और सत्वगुण को दबाकर रजोगुण बढ़ता है। इसलिए जिस काल में इस देह में तथा अंतःकरण और इंद्रियों में चेतनता और बोध-शक्ति उत्पन्न होती है, उस काल में ऐसा जानना चाहिए कि सत्वगुण बढ़ा है। और हे अर्जुन, रजोगुण के बढ़ने पर लोभ और प्रवृत्ति अर्थात सांसारिक चेष्टा तथा सब प्रकार के कर्मों का स्वार्थ- बुद्धि से आरंभ एवं अशांति अर्थात मन की चंचलता और विषय-भोगों की लालसा, ये सब उत्पन्न होते हैं। पहले थोड़े प्रश्न | पहला प्रश्न : आपने कहा कि कृष्ण चाहते हैं अर्जुन मिट जाए और इसीलिए अलग-अलग द्वारों से गीता के अलग-अलग अध्यायों में वे अर्जुन को मिटने का उपाय बता रहे हैं। और आपने यह भी कहा कि कृष्ण अर्जुन का भविष्य जानते हैं। तो यह समझाएं कि यदि कृष्ण पहले से ही जानते हैं कि अर्जुन का भविष्य क्या है, स्वधर्म क्या है, तो फिर इतने सारे विभिन्न मार्गों का अर्जुन को उपदेश क्यों दे रहे हैं? उन मार्गों को क्यों समझा रहे हैं, जो अर्जुन के स्वधर्म के अनुकूल नहीं हैं ? 'श्चय ही कृष्ण जानते हैं अर्जुन का भविष्य; व्यक्ति की तरह नहीं, मनुष्य की तरह। वह जो अर्जुन नाम का | व्यक्ति है, उसका भविष्य नहीं जाना जा सकता । लेकिन वह जो अर्जुन के भीतर छिपी हुई चेतना है, उसका भविष्य 50 जाना जा सकता है। इस अर्थ में तो कृष्ण जैसा व्यक्ति सभी का भविष्य जानता है, आपका भी। क्योंकि वह जो भीतर छिपा हुआ बीज है, उसका अंतिम परिणाम मोक्ष है। वही भविष्य है। वह सभी का भविष्य है। नदी बहती है; वह चाहे गंगा हो, चाहे यमुना हो, चाहे गोदावरी हो, चाहे नर्मदा हो, भविष्य ज्ञात है कि वे सागर में गिरेंगी। हर नदी सागर में गिरेगी। लेकिन प्रत्येक नदी अलग-अलग मार्गों से बहेगी, अलग-अलग पर्वतों को तोड़ेगी, अलग चट्टानों में मार्ग बनाएगी। प्रत्येक नदी का मार्ग तो अलग-अलग होगा, लेकिन अंत एक होगा। मनुष्य का भविष्य ज्ञात है। जैसे बीज का भविष्य ज्ञात है कि वह वृक्ष होगा, वैसे ही मनुष्य का भविष्य ज्ञात है कि वह अंततः परम स्थिति को उपलब्ध हो जाएगा। वही अर्जुन के संबंध में भी ज्ञात है। लेकिन अर्जुन का जो व्यक्तित्व है अज्ञान से भरा हुआ; अर्जुन का जो व्यक्तित्व है अनंत संदेहों, अविश्वासों, शंकाओं, समस्याओं से भरा हुआ; वह जो रुग्ण चित्त है, उस रुग्ण चित्त का कोई भविष्य किसी को भी ज्ञात नहीं है। उस रुग्ण चित्त की यात्रा अनेक ढंग से हो सकती है। इसलिए कृष्ण अनेक मार्गों की बात कर रहे हैं। पहली तो बात यह खयाल में ले लें। अर्जुन भी बहुत तरह से यात्रा कर सकता है। विकल्प अनेक हैं। अगर प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ही मार्ग होता, सुनिश्चित, तब तो कोई अर्थ न था कृष्ण का इतने मार्गों की बात करने का। लेकिन एक व्यक्ति भी बहुत-सी संभावनाएं लिए हुए है। और हर संभावना का द्वार खुला छोड़ देना जरूरी है, ताकि अर्जुन चुनाव कर सके। और चुनाव के लिए जरूरी है कि सभी मार्ग स्पष्ट हों, अन्यथा भ्रांति हो सकती है। हर मार्ग उसकी परिपूर्णता में स्पष्ट हो जाए, तो अर्जुन का बोध स्वयं ही उस मार्ग को पकड़ने लगेगा, जो मार्ग उसके अनुकूल है। आपके सामने चुनाव होने चाहिए पूरे। अगर एक भी मार्ग आपके सामने न रखा जाए, तो भी आप कुछ चुनेंगे। और यह भी हो सकता है कि जो मार्ग आपके सामने नहीं था, वही आपके लिए निकटतम मार्ग होता । फिर कृष्ण अर्जुन के लिए मार्ग नहीं चुन रहे हैं। सिर्फ अर्जुन को मार्ग दिखा रहे हैं। चुनाव अर्जुन को स्वयं ही करना है। इसे खयाल में ले लें। अंतिम चुनाव सदा आपका है। गुरु इशारे कर सकता है, स्पष्ट कर सकता है, लेकिन चुनाव सदा आपका है। बहुत-से लोग इस भ्रांति में होते हैं। कोई गुरु आपके लिए चुन
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy