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________________ * गीता दर्शन भाग-7* आए, उसकी आंख पर चश्मा लग जाता है, उसकी कमर झुक जाती है। वह अपना अपनी पुस्तक में, अपने अध्ययन में लगा हुआ है। उसको इस सबका मौका नहीं है। बडा वर्ग है. जो उपद्रव करना चाहता है। क्योंकि उसके पास शक्ति है और शक्ति को बहने के लिए रास्ता चाहिए। फिर तीसरा वर्ग है, जो आलसी है। जो सिर्फ देखता है। जो तमाशबीन हो सकता है ज्यादा से ज्यादा। जो कोई पक्ष नहीं लेता। कुछ भी हो रहा हो, वह देखता रहता है। व्यक्ति में जो भी तत्व प्रमुख होगा, बाकी दो तत्व उसके पीछे संलग्न हो जाते हैं। सत्वगुण सुख में लगाता है, रजोगुण कर्म में और तमोगुण प्रमाद में डुबा देता है। इन तीनों गुणों से मुक्ति चाहिए। कैसे तीनों गुणों से मुक्ति हो सकती है, उसकी साधना-विधि में हम आगे प्रवेश करेंगे। और जब भी कोई व्यक्ति तीनों गुणों के बाहर हो जाता है, उसे हमने गुणातीत अवस्था कहा है। वह परम सिद्धि है। इसलिए कृष्ण शुरू में कहते हैं कि हे अर्जुन, जिस परम ज्ञान से सिद्धि उपलब्ध होती है, अंतिम गंतव्य उपलब्ध होता है, वह मैं तुझे फिर से कहूंगा। आज इतना ही।
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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