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________________ * हे निष्पाप अर्जुन * घटना देखकर दुखी नहीं होते। क्योंकि जिंदगी में आप बहुत | होने की सुविधा होती है। और कोई बैठा हुआ दर्शक अगर जोश सोच-समझकर संयुक्त होते हैं। नाटक में संयुक्त होने में कोई | | में आ जाए और भाग लेने लगे, तो उसको भी मनाही नहीं है। और खतरा नहीं है, कुछ हर्जा नहीं है, कुछ खर्च भी नहीं है। थोड़ी देर | कोई अभिनेता पात्र करते-करते अपना सारा ढंग बदल दे, तो पीछे में नाटक के बाहर हो जाएंगे; अपने घर आ जाएंगे। से प्रांप्ट करने का कोई उपाय नहीं है, कोई सुविधा भी नहीं है। लेकिन जहां भी तादात्म्य हो जाता है, वहीं सुख-दुख मिलना | | नाटक बहता है, जैसे जिंदगी बहती है, अनजान में। क्या घटना शुरू हो जाता है। और जहां भी तादात्म्य टूट जाता है, वहां | | होगी, पक्का नहीं है। निष्कर्ष पहले से तय नहीं है। बहुत रोमांचक सुख-दुख दोनों प्रक्रियाएं बंद हो जाती हैं। है। और ठीक जिंदगी जैसा है। साक्षीभाव का इतना ही अर्थ है कि मैं कहीं भी तादात्म्य न | ठीक यह पूरी जिंदगी एक बड़ा नो-ड्रामा है। यहां कहीं कोई बनाऊं। जो भी हो रहा हो, वह नाटक से ज्यादा न हो। दर्शक नहीं है, यहां सभी अभिनेता हैं। और लिखी हुई पांडुलिपि विराट नाटक चल रहा है, उसे मिटाने की कोई जरूरत भी नहीं हाथ में नहीं है। परदे के पीछे से कोई कह नहीं रहा है कि यह बोलो। है। उसे मिटाना अर्थपूर्ण भी नहीं है। पर उसमें भागीदार होने में भूल कुछ भी निश्चित नहीं है। प्रत्येक चीज सांयोगिक होती जा रही है। है। उसमें आप एक अभिनेता से ज्यादा न रहें। अभिनेता भी शायद कहानी कहां खतम होगी, कहना कठिन है। सच पूछो तो कहीं भागीदार हो जाए। क्योंकि अभिनय जब जोश में आता है, तो कहानी खतम नहीं होती। पात्र आते हैं, चले जाते हैं, कहानी चलती अभिनेता भी भूल जाता है कि वह अभिनय कर रहा है। वह कर्ता | रहती है। हो जाता है। उसका कर्तापन कभी-कभी टूटता है। नहीं तो वह कर्ता ___आप कहानी की शुरुआत में थोड़े ही आए; मध्य में आए हैं। ही हो जाता है। और अंत में थोड़े ही विदा होंगे; बीच में विदा हो जाएंगे। कहानी असल में अभिनेता को अगर ठीक से अभिनय करना हो, तो | | आपके पहले से चलती थी; कहानी आपके बाद भी चलती रहेगी। उसे भूल जाना चाहिए कि वह अभिनय कर रहा है, उसे कर्ता हो। इस पूरे लंबे कथानक में अगर आप अभिनेता भी हों और द्रष्टा जाना चाहिए। तो उसके आंसू ज्यादा वास्तविक होंगे, उसका प्रेम | | भी हों, तो आप भागीदार नहीं रहे। फिर कोई दुख नहीं है। फिर कोई ज्यादा वास्तविक दिखाई पड़ेगा। उसके कृत्य, उसकी | सुख भी नहीं है। भाव-भंगिमाओं में सचाई आ जाएगी। जब तक सुख है, तब तक दुख भी होगा। वे दोनों एक ही सिक्के इसलिए कुशल अभिनेता भूलना जानता है कि वह अभिनेता है | | के दो पहलू हैं। एक गिरेगा, दूसरा भी गिर जाएगा। और जब दोनों और वह कर्ता हो जाता है। लेकिन तब चीजें उसे छूने लगती हैं। | गिर जाते हैं, तब जो घटित होता है, उसको हमने आनंद कहा है। छने के कारण ही वास्तविक हो जाती हैं। जब भागीदार मिट जाता है और सिर्फ साक्षी रह जाता है, तो जो . संसार में अभिनेता और द्रष्टा दोनों अगर आपके जीवन में अनुभूति जन्मती है, उसका नाम आनंद है। प्रविष्ट हो जाएं...। क्योंकि यहां सिर्फ आप द्रष्टा नहीं हो सकते, अब हम सत्र को लें। क्योंकि आपको बहुत कुछ करना भी पड़ रहा है। आप हाल में नहीं | __ हे अर्जुन, रागरूप रजोगुण को कामना और आसक्ति से उत्पन्न बैठे हैं, मंच पर खड़े हुए हैं। यहां हाल है ही नहीं, मंच ही मंच है। | हुआ जान। वह इस जीवात्मा को कर्मों की और उनके फल की यहां जहां भी आप खड़े हैं, आप मंच पर हैं। आसक्ति से बांधता है। जापान में एक नाटक होता है, नो-ड्रामा। उसमें कोई मंच नहीं | इनमें तीनों गुणों की, जो कि बांधने वाले तत्व हैं...। होता। उसमें अभिनेता ठीक हाल में ही काम करते हैं। और नया संस्कृत में गुण शब्द का एक अर्थ रस्सी भी है, जिससे बांधा आदमी खड़ा हो तो उसको समझना मुश्किल हो जाता है, कौन जाए। इनको गुण इसलिए भी कहा जाता है कि ये बांधते हैं। दर्शक है और कौन अभिनेता है! इसलिए हम परमात्मा को निर्गुण कहते हैं। यह नो-ड्रामा झेन फकीरों की ईजाद है। और इसमें पूरी पांडुलिपि | । निर्गुण का यह मतलब नहीं कि उसमें कोई गुण नहीं हैं। निर्गुण तैयार नहीं होती; सिर्फ इशारे होते हैं। और इशारों पर भी कोई जिद का यह मतलब है कि उस पर कोई बंधन नहीं हैं। वह कहीं बंधा नहीं होती कि घटना वैसी ही बहनी चाहिए। स्पांटेनियस, सहज | हुआ नहीं है। ये तीन गुण उसमें नहीं हैं, जो बांध सकते हैं। वह इन
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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