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________________ * हे निष्पाप अर्जुन * पहला कदम उठाते ही मन हल्का होने लगेगा, शांत होने लगेगा, प्रकृति की गहरी व्यवस्था है। आपको वही मिल सकता है, जिसे प्रसन्न होने लगेगा। | आप झेल सकते हैं। आप यह मत सोचना कि परम आनंद आपको जैसे बगीचा कितनी ही दूर हो, हम उसकी तरफ चलने लगें, । | मिल जाए, तो आप झेल लेंगे। अगर आप आनंद के आदी नहीं हो ठंडी हवाएं आनी शुरू हो जाएंगी। जैसे-जैसे हम करीब पहुंचेंगे, | गए हैं, तो परम आनंद घातक हो जाएगा, मृत्यु हो जाएगी। उतने फूलों की सुगंध भी हवाओं में आने लगेगी। शीतलता बढ़ेगी। हवा | बड़े विस्फोट को आप न झेल पाएंगे। ताजी होने लगेगी। मन प्रफुल्लित और नाचने को होने लगेगा। एक जैसे कोई अंधेरे से अचानक सूर्य के सामने आ जाए, तो आंखें वसंत हमारे भीतर भी खिलने लगेगा। ठीक ऐसा ही होगा। | बंद हो जाएंगी, चौंधिया जाएंगी। अंधकार ही हो जाएगा। आंखें और ध्यान रखें, मंजिल की फिक्र छोड़ दें। मार्ग की ही फिक्र सूर्य को देख ही न पाएंगी। सूर्य को देखने के लिए आंखों को करें। जिसने मार्ग को सम्हाल लिया, उसे मंजिल तो मिल ही जाती | धीरे-धीरे तैयार करना होगा। मिट्टी का दीया भी सूरज का ही हिस्सा है। मंजिल को बिलकुल भी भूल जाएं, तो कुछ हर्ज नहीं। मार्ग को | | है। उसे देखने से तैयारी करें। नहीं तो आंखें अंधी हो जाती हैं। पूरा सम्हाल लें। क्योंकि जितना मन आपका मंजिल में लगता है, | __तो प्रकृति की व्यवस्था है। उसी को मिलता है, जो झेल सकता उतना ही मन मार्ग में लगने से छूट जाता है। | है। साधना सिर्फ पाने की ही खोज नहीं है, झेलने की तैयारी भी है। सारा मन मार्ग पर लगा दें। जिस क्षण आपका सारा मन मार्ग पर | अगर आप पर एकदम आकाश टूट पड़े, तो आप मिट जाएंगे, लग जाएगा, उसी क्षण मार्ग मंजिल हो जाता है। यह दरी कोई स्थान विक्षिप्त हो जाएंगे। आप फिर लौटकर भलकर भी उस रास्ते पर की दूरी नहीं है। यह दूरी इंटेंसिटी की, तीव्रता की दूरी है। अगर पूरा | नहीं जाएंगे। आप आनंद चाहते हैं, इससे आप यह मत सोचना कि मन मेरा इसी क्षण मार्ग पर लग जाए, तो इसी क्षण मंजिल घट | | आप आनंद को झेलने के लिए तैयार भी हैं। जाएगी। जितना कम मन लगता है, उतनी मंजिल दूर है। जितना ___ छोटा-सा दुख कठिनाई देता है; छोटा-सा सुख कठिनाई देता मेरा मन अधूरा-अधूरा है, उतना ही ज्यादा फासला है। | है। छोटा-सा सुख आ जाए, तो रात नींद नहीं आती। सुख उत्तेजित और फासला कोई चलकर पूरा होने वाला नहीं है। संकल्प से | कर देता है, दुख उत्तेजित कर देता है। आनंद तो बहुत विचलित कर ही पूरा हो जाता है। चलना तो सिर्फ संकल्प को बढ़ाने का बहाना | | देगा। रत्ती-रत्ती उसका अभ्यास करना होगा। बूंद-बूंद पीकर तैयार है। जो जानते हैं, वे बिना इंचभर चले मंजिल पर पहुंच जाते हैं। जो | होना पड़ेगा। और बूंद-बूंद पीकर कोई तैयार हो-चाहे दुख भी नहीं जानते, वे बहुत चलते हैं, बहुत भटकते हैं, और कहीं भी नहीं | | बूंद-बूंद पीकर कोई तैयार हो, तो नरक से भी गुजर सकता है बिना पहुंचते हैं। विचलित हुए। ध्यान रखें, मंजिल को तो छोड़ दें। मंजिल की तो बात मत आपने सुना होगा, पुराने दिनों में भारत के सम्राट विषकन्याएं उठाएं। क्योंकि मंजिल की बात उठाने का मतलब है, फल की इच्छा | तैयार करते थे। सुंदर युवतियां, बचपन से ही रोज थोड़ा-थोड़ा जहर हो गई। मंजिल का विचार करने का मतलब है. हम छलांग लगाने | पिलाकर तैयार की जाती थीं। जहर की मात्रा इतनी कम होती थी रोज लगे आगे: आज को भलने लगे, कल को याद करने लगे। और कि युवती मर नहीं पाती थी। और धीरे-धीरे जहर उसके रोएं-रोएं, श्रम करना है आज। रग-रग में प्रवेश कर जाता था। जवान होते-होते. सोलह-अठारह आज में जीएं, अभी और यहीं। और जो भी घट सकता है, वह | वर्ष की होते-होते उसका पूरा खून जहर हो जाता था। सब घट जाएगा। इसी क्षण में घट सकता है। आप पूरी तीव्रता से, ___ तब ऐसी सुंदर युवतियों को शत्रुओं के पास भेज दिया जाता था। अपने पूरे प्राणों से, सारी श्वासों को समर्पित कर के साधना में लग | | एक चुंबन जो भी उनका लेगा, वह तत्क्षण मर जाएगा। उनका जाएं, चलने में लग जाएं। | चुंबन विषाक्त हो जाता था। उनसे जो संभोग करेगा, जिंदा नहीं और उचित ही है कि आनंद अभी मिल रहा हो, उसे पूरा जीएं। बचेगा; संभोग से जिंदा नहीं लौटेगा। उनका पूरा शरीर जहर था। उसका पूरा रस निचोड़ लें। क्योंकि ध्यान रहे, जितना आप आनंद | इस तरह की कन्याओं को विषकन्याएं कहा गया। को लेने में समर्थ हो जाएंगे, उतने ही ज्यादा आनंद के द्वार आपके . लेकिन बड़े आश्चर्य की बात है कि जिनके चुंबन से दूसरा मर लिए खुलने लगेंगे। जाएगा, वे जिंदा हैं! धीरे-धीरे एक-एक बूंद जहर की देकर उन्हें | 35|
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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