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________________ * गीता दर्शन भाग-72 दो काम करें। जीवन ने क्या दिया है, इसकी परख रखें। क्या भूख इसलिए प्रबलतम है कि अगर भूख का होश आपको न मिला है जीवन से, क्या मिल सकता है, इसका हिसाब रखें। पाएंगे | | हो, तो आप मर जाएंगे, जी न सकेंगे। एक बच्चा पैदा हो और उसे ली हैं। आशा भी टूट जाएगी कि कल भी कुछ भूख का पता न चलता हो, तो वह जी नहीं सकेगा। भूख उसके मिल सकता है। क्योंकि जो अतीत में नहीं हुआ, वह भविष्य में भी | शरीर को बचाने के लिए एकदम जरूरी है। भूख इस बात की खबर नहीं होगा। जो कभी नहीं हुआ, वह आगे भी कभी नहीं होगा। और | है कि शरीर आपसे कहता है, अब मैं बच नहीं सकूँगा, शीघ्र मुझे फिर देखें कि सब जीवन मृत्यु के सागर में उंडलते चले जाते हैं। कुछ दो, मेरी शक्ति खोती है। कोई आज, कोई कल। हम सब क्यू में खड़े हैं। आज नहीं कल, | तो भूख बचाती है स्वयं के शरीर को। लेकिन अगर भूख ही बारी आ जाती है और मृत्यु में उतर जाते हैं। अकेली हो, तो भी आप कभी के खो गए होते, आप पैदा ही न तो यह सारा जीवन मृत्यु में पूरा होता है, निश्चित ही यह मृत्यु होते। क्योंकि भूख आपको बचा लेगी, लेकिन आपके बच्चों को का ही छिपा हुआ रूप है। क्योंकि अंत में वही प्रकट होता है, जो नहीं बचा सकेगी। और बच्चों को पैदा करने का कोई भाव नहीं पैदा प्रथम से ही छिपा रहा हो। तो जिसे हम जीवन कहते हैं, वह मोत होगा। भूख में वह कोई शक्ति नहीं है। इसलिए एक दूसरी भूख है, है। और जीवेषणा को छोड़ेंगे, तो ही यह मौत छूटेगी। तब हमें उस वह है यौन। जीवन का अनुभव होना शुरू होगा, जिसका मिटना कभी भी नहीं ___ पेट की भूख से आप बचते हैं, यौन की भूख से समाज बचता होता है। है। ये दो भूखें हैं। और जैसे ही व्यक्ति का पेट भर जाता है, दूसरा उस जीवन को ही परमात्मा कहें, उस जीवन को मोक्ष कहें, उस जो खयाल आता है, वह सेक्स का है। भूखे आदमी को खयाल जीवन को आत्मा कहें, उस जीवन को जो भी नाम देना हो, वह हम चाहे न आए। क्योंकि भूखा आदमी पहले अपने को बचाए, तब दे सकते हैं। समाज को बचाने का सवाल उठता है, तब संतति को बचाने को अब हम सूत्र को लें। सवाल उठता है। खुद ही न बचे, तो संतति कैसे बचेगी? और हे अर्जुन, काम, क्रोध तथा लोभ, ये तीन प्रकार के नरक ___ इसलिए धार्मिक लोगों ने सोचा कि उपवास करने से कामवासना के द्वार आत्मा का नाश करने वाले हैं अर्थात अधोगति में ले जाने | से मुक्ति हो जाएगी। वह तरकीब सीधी है, बायोलाजिकल है। वाले हैं, इससे इन तीनों को त्याग देना चाहिए। क्योंकि जब आदमी भूखा हो, तो वह खुद को बचाने की सोचेगा। क्योंकि हे अर्जुन, इन तीनों नरक के द्वारों से मुक्त हुआ पुरुष | भूखे आदमी को कामवासना पैदा नहीं होती। इसलिए अगर आप अपने कल्याण का आचरण करता है, इससे वह परम गति को जाता लंबा उपवास करें, तो कामवासना मर जाती है। है अर्थात मेरे को प्राप्त होता है। | मरती नहीं, सिर्फ छिप जाती है। जब फिर पेट भरेगा. तब फिर और जो पुरुष शास्त्र की विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से कामवासना वापस आ जाएगी। इसलिए वह तरकीब धोखे की है, बर्तता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है और न परम गति को उससे कुछ हल नहीं होता। जैसे ही समाज समृद्ध होता है, वैसे ही तथा न सुख को ही प्राप्त होता है। कामवासना तीव्र हो जाती है। इससे तेरे लिए इस कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र लोग सोचते हैं, अमेरिका में बहुत सेक्सुअलिटी है। ऐसा कुछ ही प्रमाण है, ऐसा जानकर तू शास्त्र-विधि से नियत किए हुए कर्म भी नहीं है। अमेरिका का पेट भरा है, आपका पेट खाली है। जहां को ही करने के लिए योग्य है। | भी पेट भर जाएगा, वहां भूख का तो सवाल खत्म हो गया। एक-एक शब्द को समझने की कोशिश करें। तीन शब्दों को | इसलिए पूरे जीवन की ऊर्जा सिर्फ सेक्स में दौड़ने लगती है। कृष्ण नरक का द्वार कह रहे हैं : काम, क्रोध और लोभ। जिसको आपकी दो में दौड़ती है, भूख में और सेक्स में। फिर अगर पेट मैंने जीवेषणा कहा, वह इन तीन हिस्सों में टूट जाती है। बिलकुल ही भूखा हो, तो सेक्स में दौड़ना बंद हो जाती है, फिर जीवेषणा का मूल भाव काम है, यौन है, कामवासना है। भूख में ही दौड़ती है, क्योंकि भूख पहली जरूरत है। आप बचें, तो वैज्ञानिक, जीवशास्त्री कहते हैं कि आदमी में दो वासनाएं प्रबलतम | फिर आपके बच्चे बच सकते हैं। जैसे ही पेट भरा कि जो दूसरा हैं, एक भूख और दूसरा यौन। खयाल उठता है, वह कामवासना का है। 408
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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