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________________ * नरक के द्वार : काम, क्रोध, लोभ * तो सब जगह मैं उसे पहचान लूंगा। निकट पहचान हो जाए, तो दूर पहचानता है। और आपके भीतर जहां लहर उठ रही है हृदय की, भी वह मुझे दिखाई पड़ने लगेगा। क्योंकि जिसे हम दूरी कहते हैं, वहीं से पहचानने की जरूरत है। और वहीं से जो पहचानेगा, वही वह भी निकटता का ही फैलाव है। पर पहली घटना, पहली क्रांति | पहचान पाएगा। भीतर घटेगी। ___ लेकिन जैसा मैंने कहा कि हम नियमित रूप से बंधी-बंधाई भूलें वैज्ञानिक दृष्टि का मतलब है, सदा बाहर। धार्मिक दृष्टि का | | दोहराते हैं। आदमी बड़ा अमौलिक है। हम भूल तक ओरिजिनल अर्थ है, सदा भीतर। नहीं करते; वह भी हम पुरानी पिटी-पिटाई करते हैं। वैज्ञानिक दूर से शुरू करता है और निकट आने की कोशिश | ___ मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उस पर नाराज थी। करता है। यह कभी भी नहीं हो पाएगा, क्योंकि वह दूरी अनंत है; | बात ज्यादा बढ़ गई और पत्नी ने चाबियों का गुच्छा फेंका और कहा जीवन बहुत छोटा है। अनेक-अनेक जन्म खोते जाएंगे, तो भी वह | कि मैं जाती हूं। अब बहुत हो गया और सहने के बाहर है। मैं अपनी दूरी बनी रहेगी। मां के घर जाती हूं और कभी लौटकर न आऊंगी। धार्मिक उसे भीतर से शुरू करता है और फिर बाहर की तरफ नसरुद्दीन ने गौर से पत्नी को देखा और कहा कि अब जा ही रही जाता है। और भीतर जिसने उसे छ लिया, वह तरंग पर सवार हो हो, तो एक खुशखबरी सुनती जाओ। कल ही तुम्हारी मां तुम्हारे गया: उसने लहर पकड ली: उसके हाथ में नाव आ गई। अब कोई | पिता से लड़कर अपनी मां के घर चली गई है। और जहां तक मैं जल्दी भी नहीं है। वह दूसरा किनारा न भी मिले, तो भी कुछ खोता | | समझता हूं, वहां वह अपनी मां को शायद ही पाए। नहीं है। वह दूसरा किनारा कभी भी मिल जाएगा, अनंत में कभी | | एक वर्तुल है भूलों का। वह एक-सा चलता जाता है। एक बंधी भी मिल जाएगा, तो भी कोई प्रयोजन नहीं है। कोई डर भी नहीं है | | हुई लकीर है, जिसमें हम घूमते चले जाते हैं। हर पीढ़ी वही भूल उसके खोने का। मिले तो ठीक, न मिले तो ठीक। लेकिन आप | | करती है, हर आदमी वही भूल करता है, हर जन्म में वही भूल ठीक नाव पर सवार हो गए। करता है। भूलें बड़ी सीमित हैं। जिसने अंतस में पहचान लिया, उसकी यात्रा कभी भी मंजिल | । धर्म की खोज की दृष्टि से यह बुनियादी भूल है कि हम बाहर पर पहुंचे या न पहुंचे, मंजिल पर पहुंच गई। वह बीच नदी में | से भीतर की तरफ चलना शुरू करते हैं। क्योंकि यह जीवन के डूबकर मर जाए, तो भी कोई चिंता की बात नहीं है। अब उसके | विपरीत प्रवाह है, इसमें सफलता कभी भी मिल नहीं सकती। मिटने का कोई उपाय नहीं है। अब नदी का मध्य भी उसके लिए सफलता उसी को मिल सकती है, जो जीवन के ठीक प्रवाह को किनारा है। समझता है और भीतर से बाहर की तरफ जाता है। धार्मिक व्यक्ति भीतर से बाहर की तरफ फैलता है। और जीवन का सभी विस्तार भीतर से बाहर की तरफ है। आप एक पत्थर फेंकते हैं पानी में; छोटी-सी लहर उठती हैं पत्थर के किनारे; फिर फैलना दूसरा प्रश्नः आप कहते हैं कि सभी द्वैत से ऊपर शुरू होती है। भीतर से उठी लहर पत्थर के पास, फिर दूर की तरफ उठकर परम मुक्ति को उपलब्ध होने के लिए समस्त जाती है। आपने कभी इससे उलटा देखा कि लहर किनारों की तरफ | जीवेषणा की निर्जरा अनिवार्य है। आज के समय के पैदा होती हो और फिर सिकुड़कर भीतर की तरफ आती हो! अनुकूल मृत्यु-साधना की कोई सम्यक विधि बताएं? ___ एक बीज को आप बो देते हैं। फिर वह फैलना शुरू हो जाता है; फिर वह फैलता जाता है; फिर एक विराट वृक्ष पैदा होता है। और उस विराट वृक्ष में एक बीज की जगह करोड़ों बीज लगते हैं।। वेषणा, लस्ट फार लाइफ का अर्थ ठीक से समझ लें। फिर वे बीज भी गिरते हैं। फिर फूटते हैं, फिर फैलते हैं। UII हम जीना चाहते हैं। लेकिन यह जीने की आकांक्षा ___ हमेशा जीवन की गति बाहर से भीतर की तरफ नहीं है। जीवन | ___ बिलकुल अंधी है। कोई आपसे पूछे, क्यों जीना की गति भीतर से बाहर की तरफ है। यहां बूंद सागर बनती देखी चाहते हैं, तो उत्तर नहीं है। और इस अंधी दौड़ में हम पौधे, पक्षियों, जाती है; यहां बीज वृक्ष बनते देखा जाता है। धर्म इस सूत्र को पशुओं से भिन्न नहीं हैं। पौधे भी जीना चाहते हैं, पौधे भी जीवन 405
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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