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________________ * नरक के द्वारः काम, क्रोध, लोभ * होगा, लेकिन आप प्रेमपूर्ण होंगे। फिर जो भी आपके मार्ग पर आ आपकी भक्ति होगी, वहां भगवान प्रकट हो जाता है। जहां से जाएगा, वही आपको प्रेमी जैसा मालूम पड़ेगा। एक पक्षी भी उड़ आपकी भक्ति विदा हो जाएगी, वहीं भगवान विदा हो जाएगा। जाएगा आपके आंगन से और आप प्रेमपूर्ण होंगे, तो पक्षी प्रेमी हो भगवान आपकी आंखों के देखने का ढंग है। जाएगा। कोई भी न होगा, सूना आकाश होगा आपके आंगन का | | धर्म तो नियम है। लेकिन उस नियम में उतरना, आपको अपने और आपका हृदय प्रेमपूर्ण होगा, तो सूना आकाश भी व्यक्तित्व | को बदलना पड़े, तभी हो सकता है। ले लेगा। प्रार्थना आपको बदलने के लिए है। आमतौर से हम प्रार्थना व्यक्ति की जरूरत नहीं है, हृदय प्रेमपूर्ण हो, तो प्रेमपूर्ण हृदय करते हैं परमात्मा को बदलने के लिए। आप बीमार हैं, तो आप जिस तरफ भी प्रकाश डालता है, वहीं व्यक्तित्व निर्मित हो जाता प्रार्थना करते हैं कि मुझे ठीक करो। परमात्मा का इरादा बदलने की है। भगवान नहीं है, भक्त है। और भक्त का हृदय जहां भी देखता चेष्टा है हमारी प्रार्थना। अगर आप बीमार हैं और सच में ही भक्त है, वहीं भगवान प्रकट हो जाता है। हैं, तो आपको स्वीकार करना चाहिए कि परमात्मा चाहता है कि मैं इसे थोड़ा समझने की जरूरत है। बीमार होऊं, इसलिए मैं बीमार हूं। यह भक्त के हृदय की सृजनकला है कि वह जहां भी आंख ___ परमात्मा का दृष्टिकोण बदलने की चेष्टा हम करते हैं कि मुझे डालता है, वहां भगवान पैदा हो जाता है। वह वृक्ष में देखेगा, तो स्वस्थ कर; कि मैं गरीब हूं, मुझे अमीर कर; कि मैं दुखी हूं, मुझे वृक्ष में भगवान प्रकट हो जाएगा। यह आपकी आंख पर निर्भर है | सुखी कर; अपनी दृष्टि बदल। हम परमात्मा का ध्यान आकर्षित कि आप क्या पैदा कर लेते हैं। भगवान भक्त का सृजन है। । | करते हैं कि बदलो; जो चल रहा है, वह ठीक नहीं; मैं उससे राजी धर्म तो नियम है। धर्म कोई व्यक्ति नहीं है, धर्म तो शक्ति है। | नहीं हूं। इसलिए भगवान शब्द ठीक नहीं है, भगवत्ता! डीइटी नहीं, __ और हम उसकी खुशामद करते हैं। क्योंकि हमने जीवन में सीखा डिविनिटी! कोई व्यक्ति की तरह बैठा हुआ पुरुष नहीं है ऊपर, जो है कि मनुष्य को हम खुशामद से प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए चला रहा हो। लेकिन यह सारा जगत चल रहा है। चलने की घटना | हम सोचते हैं, जिस ढंग से आदमी प्रभावित होता है, उसी ढंग से घट रही है; कोई चलाने वाला नहीं है। यह जो चलने का विराट परमात्मा भी प्रभावित होगा। तो हम स्तुति करते हैं; हम उसका उपक्रम चल रहा है, यह जो चलने की महान ऊर्जा है, यह जो शक्ति | | गुणगान करते हैं। हम कहते हैं, तुम बहुत महान हो। लेकिन हमारी है, यह शक्ति ही भगवान हो जाती है, अगर हृदय में भक्ति हो। । | इस सारी चेष्टा में छिपा क्या है? मन की आकांक्षा क्या है? यह शक्ति ही प्रकृति मालूम पड़ती है, अगर हृदय में भक्ति न हो। | यही कि तुम जो कर रहे हो, वह ठीक नहीं। और हमारी इस प्रकृति और परमात्मा दो तरह के हृदय की व्याख्याएं हैं। जिसके स्तुति में एक तरह की धमकी है कि अगर तुम यह बंद नहीं करोगे, हृदय में कोई भक्ति नहीं, उसे चारों तरफ प्रकृति दिखाई पड़ती है, | तो यह स्तुति बंद हो जाएगी, तो यह प्रार्थना समाप्त हो जाएगी; फिर पदार्थ दिखाई पड़ता है। जिसके हृदय में भक्ति है, उसे चारों तरफ | तुम्हें कोई पूजने वाला नहीं है। अगर पूजा जारी रखवानी है, तो परमात्मा दिखाई पड़ता है, परमेश्वर दिखाई पड़ता है। परमेश्वर हमारी मरजी के अनुसार थोड़ा कुछ करो। और प्रकृति एक ही विराट घटना की व्याख्याएं हैं। और आपके | | हमारी सारी प्रार्थनाएं मांगें हैं; हम कुछ मांगते हैं। और हमारी हृदय पर निर्भर है कि व्याख्या आप कैसी करेंगे। आप वही देख | | मौलिक मांग यह है कि हम ठीक हैं और तुम गलत हो। लेंगे, जो आपके हृदय में आविर्भूत हुआ है। ___ एक बहुत बड़े विचारक अल्डुअस हक्सले ने लिखा है कि प्रार्थना, पूजा, आराधना भगवान के कारण नहीं हैं। लेकिन | | परमात्मा से हम जब भी प्रार्थना करते हैं, हम चाहते हैं कि दो और प्रार्थना, पूजा, आराधना के कारण जगत भगवान जैसा दिखाई | दो चार न हों। पड़ना शुरू हो जाता है। भगवान है और इसलिए हम प्रार्थना करते हमारी सारी प्रार्थनाओं का रूप यही है कि दो और दो चार न हों। हैं, ऐसा नहीं। हम प्रार्थना करते हैं, इसलिए भगवान हो जाता है। हमने पाप किए हैं, उसके कारण हम दुख भोगते हैं। वह दो और लोग कहते हैं, भगवान ने आपको बनाया, और मैं आपको दो चार हो रहे हैं। हम चाहते हैं, दुख हमें न मिले। पाप हमने किए कहता हूं कि आपकी भक्ति भगवान को सृजित करती है। जहां | | हैं, क्षमा तुम कर दो। 401]
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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