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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * हम दोनों साथ-साथ बाहर निकले थे कि नहीं? जाती है। वह सुविधा यह है कि उसको लगता है कि मैं कोई बुरा घर-घर में वैसा है। लेकिन बाहर पति-पत्नी को देखें, सिनेमा आदमी नहीं हूं। की तरफ जाते, बाजार की तरफ जाते, तो ऐसा लगेगा कि परम सुख आप भी सब यह करते हैं। अच्छी-अच्छी बातें सोचते हैं, भोग रहे हैं। करेंगे! ऐसा सोचने से खुद को भी लगने लगता है कि जब करने हर कहानी कहती है, जहां शादी हो जाती है राजकुमारी और की सोच रहे हैं, तो कर ही रहे हैं। और देरी क्या है, आज नहीं तो राजकुमार की, फिर वे दोनों सुख से रहने लगे। यहीं खतम हो जाती कल करेंगे, लेकिन करना तो निश्चित है! है। और इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता। यहीं से दुख की कभी आप करने वाले नहीं। क्योंकि पचास साल जी चुके, इस शुरुआत होती है। उसके पहले थोड़ा-बहुत सुख रहा भी हो कल्पना | पचास साल में कभी नहीं किए। आगे कैसे करेंगे? कौन करेगा? में, आशा में। लेकिन सब कहानियां यहीं बंद हो जाती हैं। यह आप ही करने वाले हैं, और आप रोज टालते जाते हैं। उचित भी है, क्योंकि इसके बाद आगे बात उठानी अशिष्टाचार की | | बुरे को आप आज कर लेते हैं, अच्छे को सोचते हैं, करेंगे। होगी। यहीं बंद कर देना ठीक है। | उससे मन में खयाल बना रहता है कि में कोई बुरा आदमी नहीं हूं। हम सब बाहर एक रूप बनाए हुए हैं। सुखी नहीं हैं, लेकिन | अगर मजबूरी की वजह से थोड़ा बुरा करना भी पड़ रहा है, तो यह दिखा रहे हैं कि सुखी हैं। दीन हैं, लेकिन दिखा रहे हैं कि दीन नहीं | | तो केवल अस्थायी है, यह तो परिस्थितिवश है। लेकिन भाव तो हैं। चाहे हमें उधार चीजें लेकर भी प्रभाव पैदा करना पड़े, घर में | | मेरा अच्छा करने का है। उस भाव के कारण बुरा आदमी अपनी कोई मेहमान आ जाए, तो पड़ोस से सोफा उठा लाना पड़े, तो भी | | बुराई को झेलने में समर्थ हो जाता है। उस भाव के कारण बुरा कोई बात नहीं, लेकिन हम दिखा रहे हैं। आदमी बुराई के कांटे को चुभने नहीं देता। वह भाव सुरक्षा बन आसुरी संपदा वाला व्यक्ति अपनी दीनता को छिपाकर उसका जाता है। विपरीत रूप प्रकट करता रहता है। तो वह कहता है, मैं ऐश्वर्यवान | मैं यज्ञ करूंगा, दान करूंगा, हर्ष को प्राप्त होऊंगा—इस प्रकार हूं। वह कहता है कि मैं ऐश्वर्यों का भोगने वाला हूं। वह कहता है | | के अज्ञान से आसुरी मनुष्य मोहित है। यह उसकी आटो-हिप्नोसिस कि मैं सब सिद्धियों से युक्त हूं; कि मैं बलवान हूं, मैं सुखी हूं। है, यह उसका मोह है। ये कोई भी बातें सच नहीं हैं। ये बातें तो सच होती हैं दैवी संपदा | __यह मोहित शब्द समझ लेने जैसा है। मोहित का अर्थ है कि ऐसे वाले को, कि वह ऐश्वर्यवान हो जाता है, ईश्वर हो जाता है कि | भाव से वह अपने को समझा लेता है। और जो समझा लेता है, सारी सिद्धियां उसे सिद्ध हो जाती हैं; कि सारे सुख, सारी शक्तियां | | वैसा ही हो जाता है। वह मानने ही लगता है, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, उसके ऊपर बरस जाती हैं। यह घटना तो घटती है दैवी संपदा वाले | बिना दान किए मानने लगता है कि मैं दानी हूं; क्योंकि दान करने को। लेकिन आसुरी संपदा वाला मानकर चलता है कि ऐसा है; और | का विचार करता है। बिना दिए दाता बन जाता है! क्योंकि इतनी इसका प्रचार भी करता है। और प्रचार अगर ठीक से किया जाए, तो | बार सोचा है, सोचते-सोचते हमारे मन में लकीरें पड़ जाती हैं। दूसरों को भी भरोसा आ जाता है। और अगर दूसरों को भरोसा आ पश्चिम में एक विचारक हुआ एमाइल कुए। वह लोगों को जाए, तो हो सकता है, जिसने प्रचार किया है, उसको भी भरोसा आ | कहता था, कुछ और करने की जरूरत नहीं; जो भी तुम होना चाहते जाए; कि इतने लोग मानते हैं, तो ठीक ही मानते होंगे। हो, उसको सोचो। अगर तुम स्वस्थ होना चाहते हो, तो निरंतर मैं बड़ा धनवान, बड़े कुटुंब वाला हूं, मेरे समान दूसरा कौन है! सोचते रहो कि मैं स्वस्थ हो रहा हूं, स्वस्थ हो रहा हूं, स्वस्थ हो मैं यज्ञ करूंगा, दान देऊंगा, हर्ष को प्राप्त होऊंगा-इस प्रकार के गया हूं। अज्ञान से आसुरी मनुष्य मोहित है। इसका परिणाम होगा। इसके परिणाम होते हैं। भला आप स्वस्थ यह कुछ करने वाला नहीं है; न वह यज्ञ करने वाला है, न वह | हों या न हों, लेकिन आपको प्रतीति होने लगती है कि आप स्वस्थ दान देने वाला है; लेकिन सोचता है कि मैं दूंगा। अच्छी बातें वह | हो गए। सदा सोचता है कि मैं करूंगा, करता तो सब बुरी बातें है, लेकिन । एक घटना है, एमाइल कुए का एक मित्र एक दिन रास्ते पर उसे सोचता हमेशा अच्छी बातें है। इस सोचने से एक बड़ी सुविधा हो | | मिला। तो कुए ने पूछा कि तुम्हारी मां की तबियत अब कैसी है? | 380/
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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