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________________ *गीता दर्शन भाग-7 * हमें अपनी वस्तु, मुरदा वस्तु भी एक जीवित व्यक्ति से ज्यादा | पर जोर क्यों देते हैं? कुछ कारण है। और वह कारण यह है कि मालूम पड़ती है। जिस व्यक्ति को भी सृजन पकड़ लेता है, जो व्यक्ति भी अपने मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक ट्रेन में सफर कर रहा था। | जीवन में स्रष्टा हो जाता है, उसे परमात्मा का अनुभव शुरू होता बड़ी खचाखच भीड़ थी उस डिब्बे में और वह अपना लोहे का बड़ा | | है। इस अनुभव से यह प्रमाण मिलता है कि इस जगत की गहनतम वजनी संदूक ऊपर की सीट पर चढ़ाने की कोशिश कर रहा था। | स्थिति सृजनात्मक है। परमात्मा स्रष्टा है, यह स्रष्टा अगर हम हों, नीचे बैठी एक स्त्री ने कहा कि महानुभाव, वहां मत रखिए, ऊपर | | तो हमें पता चलता है। गिर पड़ेगा। वजनी बहुत है, और बहुत भारी और लोहे का है। | अगर आप एक गीत भी जन्म दे सकें, तो उस गीत को.जन्म देने नसरुद्दीन ने कहा, देवी जी, आप बिलकुल बेफिक्र रहिए; उसमें | के क्षण में आप में परमात्म-भाव प्रकट होता है। आप एक चित्र भी टूट जाने वाली कोई भी चीज नहीं। बना सकें, एक मूर्ति खोद सकें, एक बच्चे को निर्मित कर सकें, वह जो महिला बैठी है, उसका सिर टूट जाने का सवाल ही नहीं | बड़ा कर सकें-कुछ भी-एक पौधे को भी आप सम्हाल लें, है। उनके संदूक में टूटने वाली कोई चीज नहीं है। | और उसमें फूल आ जाएं, तो उन क्षणों में जो आपको प्रतीति होती हम सबकी जीवन-दशा ऐसी है। दूसरे का सिर भी कम कीमत | है, वह परमात्मा की छोटी-सी झलक है। का है, हमारा संदूक भी ज्यादा कीमती है। व्यक्ति का हमारे लिए विध्वंस परमात्म-विरोध है; सृजन परमात्मा की तरफ प्रार्थना है। कोई मूल्य नहीं है। | और जो प्रार्थना सृजनात्मक न हो, वह प्रार्थना बांझ है, उस प्रार्थना आसुरी संपदा वाले व्यक्ति के लिए व्यक्ति है ही नहीं, व्यक्तित्व | का कोई भी मूल्य नहीं। मंदिर में बैठकर आप चीख-पुकार करते की कोई गरिमा नहीं है। शत्रुओं को वह नष्ट करना चाहता है। और | रहें, उससे कुछ बहुत हल होने वाला नहीं है। उतनी शक्ति सृजन निरंतर सोचता है, आज शत्रु को मारा; वह शत्रु मेरे द्वारा मारा गया, में लग जाए, तो प्रार्थना सजीव हो उठेगी। जब आप स्रष्टा होते हैं, दूसरों को भी मैं कल मारूंगा! वह सदा मारने की तैयारी में लगा | | तभी आप परमात्मा के निकट होते हैं। है। उसकी चिंतना विध्वंस की है। वह मृत्यु का आराधक है। वह | आसरी संपदा वाला व्यक्ति. मैं ऐश्वर्यवान हं. ऐश्वर्य को यमदूत है। भोगने वाला हूं और मैं सब सिद्धियों से युक्त एवं बलवान हूं और ठीक उससे विपरीत सृजन की जो आराधना है, क्रिएटिविटी, कि सुखी हूं, ऐसी मान्यता रखता है। मैं कुछ निर्मित करूं, कुछ बनाऊं; जहां कुछ भी नहीं था, वहां कुछ । सुखी तो होता नहीं, लेकिन मान्यता ऐसी रखता है कि मैं सुखी निर्मित हो; जहां जमीन खाली पड़ी थी, वहां एक पौधा उगे; कुछ | हूं; ऐसा अपने को समझाता है। यह बहुत मनोवैज्ञानिक सत्य है। बने-वह जो सृजन की आराधना है, वही ईश्वर की तरफ जाने का | हम जो नहीं होते, अपने को समझाने की कोशिश करते हैं। कमजोर मार्ग है। आदमी अपने को शक्तिशाली समझता है। कमजोर आदमी अपने इधर मैं आपको कहना चाहूं कि दुनिया के सभी धर्मों ने ईश्वर | | को समझाता है कि मैं महाशक्तिशाली हूं। को स्रष्टा कहा है। ईश्वर को स्रष्टा सिद्ध करना आसान नहीं। | मैं एक स्कूल में पढ़ता था। मेरे जो हिंदी के शिक्षक थे, वे कक्षा दुनिया की कभी सृष्टि हुई है, इसके लिए प्रमाण जुटाना आसान | में हमेशा, पहले दिन से ही आना शुरू हुए, तो अपनी बहादुरी की नहीं। और एक बात तो निश्चित है कि उस सृष्टि के क्षण में हममें | बातें करते थे, कि मैं इतना हिम्मतवर हूं, कि चाहे अमावस की रात से कोई भी नहीं था, इसलिए कोई गवाही नहीं दे सकता। और जो हो तो भी मरघट पर चला जाता हूं। भी हम कहेंगे, वह सिर्फ कल्पना होगी। क्योंकि अगर हम मौजूद दो-चार बार मैंने उनसे सुना, तो मैंने एक बार उनसे पूछा कि थे, तो सृष्टि उसके पहले ही हो चुकी थी। मुझे शक होता है। इसमें कोई बहादुरी की बात भी नहीं है। और तो सृष्टि के प्राथमिक क्षण का तो हमें कोई पता नहीं है। हम कहने की तो कोई जरूरत भी नहीं। आपके भीतर डर है। मरघट कल्पना कर सकते हैं कि परमात्मा ने बनाई, कि नहीं बनाई, कि | आप जा नहीं सकते। क्या हुआ। लेकिन वह सिर्फ मानसिक विलास होगा। ___ उनके चेहरे पर पसीना आ गया। उन्होंने कहा, तुम्हें कैसे पता लेकिन फिर भी दुनिया के अधिक धर्म परमात्मा के स्रष्टा होने चला? मैंने कहा, पता चलने की बात ही नहीं। आप इतनी दफा 378
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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