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________________ * शोषण या साधना * रहा है। कौन-सा काम है, जो वह कर सकता है और मैं नहीं कर सकता! तो मैंने उससे कहा, अच्छा, सौ डालर दांव पर। वह कौन-सा काम है ? उसने कहा कि मैं एक सर्टिफिकेट ला सकता हूं कि मैं भिखारी हूं, पर आप सर्टिफिकेट नहीं ला सकते। एण्ड्र कार्नेगी ने अपने संस्मरण में लिखा है, सौ डालर मैंने उसे दिए, लेकिन फिर मैं सोचता रहा कि सर्टिफिकेट मैं ला सकू या न ला सकू, भिखारी तो मैं भी हूं। अरबों रुपए मेरे पास हैं, इससे क्या फर्क पड़ता है! भीख तो जारी है, अभी भी मांग तो जारी है, अभी भी मैं खोज तो रहा ही हूं। कोई मुझे सर्टिफिकेट नहीं देगा, क्योंकि अगर मैं भिखारी हूं, तो इस जगत में कोई भी समृद्ध नहीं है। दस अरब रुपए एण्ड्र कार्नेगी छोड़कर मरा है। पर उसने लिखा है कि भिखारी तो मैं हूं, उस आदमी ने बात तो ठीक ही कही है। क्योंकि अभी भी मेरी मांग है, आकांक्षा है। मेरा भिक्षा का पात्र अभी भी हाथ में है। अभी भी मुझे कुछ मिल जाए, तो मैं सब खोने को तैयार हूं, कुछ मिल जाए तो अपने को और लगाने को तैयार हूं। एण्डू कार्नेगी जब मरा, तो मरने के दो दिन पहले जो आदमी उसकी जीवन-कथा लिख रहा था, उससे उसने पूछा कि अगर तुम्हें परमात्मा यह मौका दे, तो तुम एण्ड्र कार्नेगी के सेक्रेटरी होकर उसकी आत्म-कथा लिखना पसंद करोगे? या तुम एण्डु कार्नेगी बनना पसंद करोगे और एण्डू कार्नेगी तुम्हारी आत्मकथा लिखे ? तो उस सेक्रेटरी ने कहा, क्षमा करें; आप बुरा न मानें; एण्डू कार्नेगी बनना मैं कभी पसंद नहीं करूंगा। मैं ठीक हूं कि आपकी आत्म-कथा लिख रहा हूं। तो एण्ड कार्नेगी ने कहा, इसका क्या कारण है? तो उसने कहा कि देखें, मैं आता हूं ग्यारह बजे; पांच बजे मेरी छुट्टी हो जाती है। आपके दफ्तर के क्लर्क आते हैं दस बजे, पांच बजे उनकी छुट्टी हो जाती है। चपरासी आता है नौ बजे, पांच बजे उसकी भी छुट्टी हो जाती है। आपको मैं सुबह सात बजे से दफ्तर में रात ग्यारह बजे तक देखता हूं। चपरासी से गई बीती हालत आपकी है। एण्डू कार्नेगी भगवान मुझे कभी न बनाए। वह मैं नहीं होना चाहता। एण्डू कार्नेगी ठीक ही कह रहा है कि मैं भी भिखारी तो हूं ही। सब पाकर भी अगर आत्मा न मिले, तो भिखमंगेपन का अनुभव होगा। और सब खो जाए, आत्मा बच जाए, तो भीतर के सम्राट का पहली दफा अनुभव होता है। आज इतना ही। 365/
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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