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________________ *गीता दर्शन भाग-7 * का, तुलना का-वह खो गया। | जा सकता है, उतनी आसानी से बिना अपने को ढंके लीन होना अगर प्रज्ञावान जीवित पुरुष मिल सके, तो भाग्यशाली हैं। और कठिन है। प्रज्ञावान पुरुषों की कभी भी कमी नहीं है। अगर नहीं मिलता, तो __भागा हुआ घर गया, प्रार्थना की शाल उठाई, जाकर सिनागाग आप आंख बंद किए हैं, इसलिए नहीं मिलता। अगर नहीं मिलता, | पहुंचा। लेकिन उत्सव का दिन था और उस उत्सव के दिन नास्तिक तो आप कुछ चालाकी अपने साथ कर रहे हैं, कुछ धोखा कर रहे से नास्तिक यहूदी भी मंदिर आता है। बिलकुल भरा हुआ था। कोई हैं, इसलिए नहीं मिलता। अन्यथा प्रज्ञावान पुरुष की कोई भी कमी | आशा नहीं थी उसे कि भीतर जगह मिल जाएगी। लेकिन वह नहीं है। उनकी एक निश्चित मात्रा हमेशा पृथ्वी पर है। उस मात्रा चकित हुआ कि द्वार पर ही उसका स्वागत किया गया और उसे ले में कोई अंतर नहीं पड़ता। एक प्रज्ञावान पुरुष खोता है, तो तत्क्षण | जाकर विशिष्ट अतिथियों के स्थान पर बिठाया गया। वह और भी दूसरा प्रज्ञावान पुरुष उसकी जगह हो जाता है। | हैरान हुआ कि यह क्या हो रहा है! उसने अपनी चादर ओढ़ ली एक यहूदी फकीर मेरे पास आया। वह बड़ा चिंतित और परेशान | और चादर ओढ़ते ही उसे सुनाई पड़ा...। था। और बहुत जगह घूमकर आया था, और अनेक लोगों को कुछ ___ अभी कोई बीस साल पहले की घटना है, जब उसे सुनाई पड़ा। कहना चाहता था, लेकिन कोई उसे मिला नहीं जिससे वह कहे या सालभर पहले आकर उसने मुझे सारा ब्योरा दिया। कोई उसका भरोसा करेगा! उसने मुझसे संन्यास लिया, दीक्षा ली, उसे सुनाई पड़ा कि तू चुना गया है! छत्तीस में से एक मर गया ध्यान में लगा। फिर बाद में एक दिन उसने कहा कि अब मैं आपसे | है, उसकी जगह तुझे चुना गया है। वह कई लोगों से बताना चाहता कह सकता हूं। है कि क्या मामला है! छत्तीस कौन हैं ! कौन मर गया है! मुझे किस उस यहूदी ने मुझे कहा कि मुझे धर्म में कोई भी रुचि न थी और | लिए चुना गया है! लेकिन बस, उस आवाज के बाद उसका जीवन मैं धार्मिक आदमी भी न था। इतना ही नहीं, बल्कि मेरा स्पष्ट | बदल गया। विरोध भी रहा है। तो मैं कभी यहूदियों के मंदिर में, सिनागाग में | यहूदियों में पुराना एक नियम है। छत्तीस यहूदी सदा ही प्रज्ञावान कभी गया नहीं। मैंने कभी तालमुद पढ़ी नहीं। और कभी कोई धर्म | | पुरुष होंगे। उनमें से जब भी एक समाप्त होगा, तब तत्क्षण बाकी की बात करे, तो मुझे सिर्फ ऊब ही पैदा होती थी। किसी रबाई, | पैंतीस एक व्यक्ति को चुन लेंगे। तो छत्तीस की संख्या उनकी सदा किसी फकीर को मैंने कभी सुना नहीं। पूरी रहेगी। यहूदियों के उत्सव का दिन था एक, धार्मिक उत्सव का दिन, सभी धर्मों के भीतर उस तरह के अंतर्वतुल हैं, इनर सीक्रेट और यह युवक लौट रहा था बाजार से घर की तरफ अचानक उसे सर्किल्स हैं। उनकी संख्याओं में कभी कोई कमी नहीं होती। वे एकदम बेचैनी हुई, और उसे लगा कि मुझे सिनागाग जाना चाहिए। | हमेशा मौजूद हैं। और जब भी कहीं कोई साधक उनको खोजने को उसे खुद भी हैरानी हुई। कुछ ऐसा लगा, जैसे कोई खींचता हो, जैसे तैयार हो, तब वे खुद उस साधक की तलाश में आ जाते हैं। परवश हो गया। भागा हुआ घर गया, अपनी प्रार्थना की शाल | | तो जरूरत भी नहीं कि आप हिमालय जाएं। अगर आकांक्षा उठाई, जिसको सिर पर डालकर यहूदी प्रार्थना करते हैं...। | प्रबल हो, तो जहां आप हैं, वहीं जिस प्रज्ञावान पुरुष से आपको यह प्रार्थना की शाल यहूदियों की बड़ी कीमती है। दूसरे धर्मों के सन्निधि चाहिए, वह मौजूद होगा; वह वहीं चला आएगा। लोगों को भी इसका उपयोग करना चाहिए। पूरे शरीर को ढंक लेते | | लेकिन हम अपने ही हाथ से दरिद्र बने रहते हैं। हम हाथ भी नहीं हैं एक चादर से और भीतर प्रार्थना की धुन, आप चाहें ओंकार की फैलाते। अगर स्वर्ण की वर्षा भी हो रही हो, तो हमारी झोली बंद धुन या कोई भी धुन को भीतर पैदा करते हैं। वह धुन न केवल शरीर रहती है। के भीतर गूंजती है, बल्कि उस चादर के भीतर भी एक वातावरण ___ यह जो प्रज्ञावान पुरुष की सन्निधि खोजने की बात है, इसके लिए निर्मित करती है, और शरीर के चारों तरफ एक ऑरा निर्मित हो हमें अपनी सुरक्षा की, बचाव की पुरानी आदतें छोड़ना जरूरी हैं, जाता है। और वह धुन शरीर को चारों तरफ से घेर लेती है और | अपने को थोड़ा खोलना जरूरी है। जोखिम तो है, खतरा तो है। आप जगत के साधारण वातावरण से बिलकुल कट जाते हैं। उस | | लेकिन बिना खतरे के जीवन में कोई क्रांति भी नहीं होती। प्रार्थना की शाल के भीतर जितनी आसानी से प्रार्थना में लीन हुआ फिर प्रज्ञावान पुरुषों का साहित्य है, उनके वचन हैं, जिनको हम 356
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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