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________________ *गीता दर्शन भाग-7 * कोई परपज नहीं है। यह सिर्फ घटनाओं का जोड़ है। इसलिए यहां | आप बाइबिल पढ़ेंगे, तो बाइबिल में जो अर्थ निकलेगा, वह प्रार्थना-पजा व्यर्थ है। यहां ध्यान करने से कछ भी न होगा। यहां आपकी ही मनोदशा का होगा। गीता पढ़ेंगे, जो अर्थ निकलेगा, वह प्रार्थना किससे करिएगा? यहां कोई है नहीं, जो प्रार्थना सुनेगा। | अर्थ आपका होगा, कृष्ण का नहीं हो सकता। तो शास्त्र में कितना और मनुष्य केवल संघात है, कुछ वस्तुओं का जोड़ है। अगर उन | ही छिपा हो, वह आपको प्रकट नहीं होगा। वस्तुओं को हम अलग कर लें, तो पीछे कोई आत्मा बचेगी नहीं। - प्रज्ञावान पुरुष की सन्निधि खोजें। इसलिए गुरु का इस पूर्वीय विज्ञान जैसा आज तक विकसित हुआ है, वह आसुरी संपदा के परंपरा में इतना मूल्यवान स्थान रहा है। उसका केवल इतना अर्थ अंतर्गत ही विकसित हुआ है। भविष्य में द्वार खुल सकता है; दैवी है कि आप जीवंत सत्य को खोजें। क्योंकि उसे आप धोखा न दे संपदा का विज्ञान भी विकसित हो सकता है। या आप ऐसा समझ सकेंगे, और उसकी आप व्याख्या अपने हिसाब से न कर सकेंगे। सकते हैं कि आसुरी संपदा की जो विद्या है, उसका नाम विज्ञान है। वह आपको रोक सकेगा। जहां भूल होगी, वहां चेता सकेगा। और दैवी संपदा की जो विद्या है, उसका नाम धर्म है। प्रज्ञावान पुरुष की सन्निधि का नाम ही सत्संग है। उसका केवल ___धर्म विज्ञान है अंतर्जगत का, उस रहस्य लोक का, जिसे | इतना अर्थ है कि जो जानता है, उसके पास होना। क्योंकि बहुत-सी प्रयोगशाला में नहीं परखा जा सकता, जिसे हम अपने ही भीतर चीजें हैं, जो केवल संक्रमण से ही अनुभव में आती हैं, उन्हें कोई दे खोज सकते हैं। वह भीतर की डुबकी है। भी नहीं सकता। वे कोई भौतिक वस्तुएं नहीं कि उठाकर कोई आपको विज्ञान पदार्थों की खोज है और धर्म परमात्मा की खोज है। | दे दे। चुपचाप पास होने पर धीरे-धीरे उनका संक्रमण होता है। तो पहली बात तो आपको भी कैसे आसरीपन दिखाई पड़े, उसके लिए जरूरी है कि आप सन्निधि खोजें प्रज्ञावान पुरुष की, तो दूसरा प्रश्नः प्रज्ञावान पुरुष को हमारे जीवन का जो धीरे-धीरे उसकी आंखों से आपको भी देखने का मौका मिलेगा। आसुरीपन दिखाई देता है, वह हमें भी दिखे, इसके उसके साथ उठते-बैठते, चलते-फिरते आपको एक नए जीवन की लिए हम क्या करें? प्रतीति होनी शरू होगी। तभी तलना पैदा होती है। नहीं तो तलना भी कैसे पैदा हो! आप जहां जी रहे हैं, जिनके बीच जी रहे हैं, जिनके साथ जी रहे हैं, वे सब एक से हैं। इसलिए पहचानना बहुत 7 श्न महत्वपूर्ण है; सभी के काम का है। जिन्हें भी | | मुश्किल है। प्र जीवन में थोड़ा-बहुत रूपांतरण करना हो, उन्हें इस पर | ___ एक पागलखाने में सभी पागल हैं, वहां कोई पागल यह कभी काफी सोच-विचार करना होगा। | भी नहीं समझ सकता कि मैं पागल हूं। वहां सारे पागल उसके ही प्रज्ञावान पुरुष को हमारे जीवन का आसुरीपन दिखाई पड़ता है, जैसे हैं। अगर एक पागलखाने में ठीक आदमी पहुंच जाए, तो उस हमें भी दिखाई पड़े, इसके लिए हम क्या करें? ठीक आदमी को लगेगा कि मुझे कुछ गड़बड़ हो गई है, क्योंकि पहला काम तो यह है कि प्रज्ञावान पुरुष का सानिध्य खोजें। भीड़ और बहुमत पागलों का होगा। शास्त्र काफी नहीं है, क्योंकि शास्त्र मुर्दा है। शास्त्र बहुमूल्य है, | ऐसा अक्सर हआ है। इसलिए हमने बद्ध को. क्राइस्ट को, लेकिन पर्याप्त नहीं है। और शास्त्र में आप वही पढ़ लेंगे, जो आप | सुकरात को पागल कहा है। वह हमारे पागलों की भीड़ में एक पढ़ सकते हैं। शास्त्र को आप धोखा दे सकते हैं, शास्त्र आपको | आदमी अगर ठीक हो जाए, तो हमें उस पर शक आता है बजाय रोक नहीं सकता। शास्त्र की आप व्याख्या कर सकते हैं, वह | हम पर शक आने के। हम काफी हैं; हमारी संख्या बड़ी है। और व्याख्या आपकी अपनी होगी। शास्त्र यह नहीं कह सकता कि यह | संख्या हमें बड़ी सत्य मालूम पड़ती है। हम सभी चीजों को संख्या व्याख्या गलत है। और अर्थ और व्याख्या तो आप करेंगे। तो से तौलते हैं। करोड़-करोड़ लोग जिस बात को मानते हैं, वही हमें शास्त्र तो आपके हाथ में आप ही जैसा हो जाता है। कितना ही | ठीक मालूम पड़ती है। तो हमने जीसस को सूली पर लटका दिया, कीमती शास्त्र हो, पढ़ने वाले के हाथ में पड़ते ही पढ़ने वाले के सुकरात को जहर दिया, यही सोचकर कि ये पागल हो गए हैं, ढंग का हो जाता है। विक्षिप्त हो गए हैं। 354
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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