SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * प्यास और धैर्य * निर्भर करता है कि कितना ताप नीचे है, कितनी आग नीचे है। लंबी यात्रा है। बड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। पानी गरम होगा, गरम अगर आप राख रखे बैठे हों, तो कभी नहीं पहुंचेगा। अंगारे हों, होगा, गरम होगा; कभी अंत में भाप बनेगा। प्रोसेस, प्रक्रिया पर लेकिन राख से ढंके हों, तो बड़ी देर लगेगी। ज्वलित अग्नि हो, | | जोर दें। और अगर अंत पर जोर देना हो, तो कहें कि पानी कभी भभकती हुई लपटें हों, तो जल्दी घटना घट जाएगी। भी भाप बने, कितनी ही देर लगे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, भाप तो कितनी त्वरा है भीतर, कितनी अभीप्सा है, कितनी आग है | | तो क्षणभर में बन जाती है। पानी छलांग लगा लेता है। घटना को घटाने की, उतने जल्दी घट जाएगी। लेकिन घटना एक | पर ये दोनों एक ही प्रक्रिया के हिस्से हैं। इसलिए मैं दोनों को ही क्षण में घटेगी। जोड़कर इकट्ठा कहता हूं। अनंत हो प्रतीक्षा, तो क्षणभर में घट जाता पानी गरम होता रहेगा, गरम होता रहेगा, निन्यानबे डिग्री पर भी है। क्षण में घटाना हो, तो अनंत की तैयारी चाहिए। और इनमें पानी पानी ही है। अभी भाप नहीं बना। एक सेकेंड में सौ डिग्री, विरोध नहीं है। पानी छलांग लगा लेगा। छलांग कीमती है। जब तक पानी था. पानी नीचे की तरफ बहता है। जैसे ही भाप बना, ऊपर की तरफ उठना शुरू हो जाता है। सारी दिशा बदल जाती है। चौथा प्रश्न: क्या गुरु के जाल में फंसना, तड़पना, जब तक पानी था, तब तक दिखाई पड़ता था, पदार्थ था। जैसे ही | मर जाना, रूपांतरण की प्रक्रिया के अनिवार्य अंग हैं? छलांग लगती है, अदृश्य हो जाता है, वायवीय हो जाता है, आकाश में खो जाता है। जब तक दिखाई पड़ता था. जमीन उसको नीचे की तरफ खींच सकती थी। गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव था। जैसे ही भाप + श्चित ही। फंसना पड़े, तड़पना भी पड़े और मरना भी बना, गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो जाता है; आकाश की तरफ उठने IUI पड़े। लेकिन जिस अर्थ में आपने पूछा है, उस अर्थ में लगता है। कोई दूसरे जगत के नियम काम करने शुरू कर देते हैं। नहीं। पूछने वाले को तो ऐसा लगता है, बेचैनी है, एक क्षण में घटना घटती है, लेकिन तो भी झेन फकीरों को | भय है; फंसने से भय है, डर है। जन्मों-जन्मों तक और एक जीवन में भी वर्षों तक गरमी पैदा करने | ___ डर किस बात का है ? डर किसको है? वह जो अहंकार है हमारे के उपाय करने पड़ते हैं। भीतर, सदा डरता है कि कहीं फंस न जाएं। और यह जो अहंकार दूसरे फकीर हैं, सूफियों का एक समूह है इस्लाम में, वे अनंत | है, कहीं भी नहीं फंसने देता। लेकिन तब हम पूरे जीवन से वंचित प्रतीक्षा में मानते हैं। वे क्षण की बात ही नहीं करते हैं। वे कहते हैं, रह जाते हैं। अनंत प्रतीक्षा करनी है। बैठे रहो, प्रतीक्षा करो। जागते रहो, प्रतीक्षा एक यवक ने मझे आकर कहा कि प्रेम तो मझे करना है, लेकिन करो। कभी अनंत जन्म में घटेगी। | फंसना नहीं है। कोई झंझट में नहीं पड़ना चाहता हूं। अब यह बड़े मजे की बात है। ये दोनों बिलकुल विपरीत प्रेम करना हो, तो फंसना ही पड़े। क्योंकि वह प्रेम घटेगा ही तब, साधना-पद्धतियां हैं, अतियां हैं। लेकिन झेन फकीर भी पहुंच जाता जब आप डूबेंगे। आप ऐसे दूर अपने को सम्हालकर खड़े रहे संतरी है और सूफी फकीर भी पहुंच जाता है। और मजे की बात यह है | की तरह, तो वह घटना ही घटने वाली नहीं है। कि झेन फकीर जब पहुंचता है, तो उसको भी वर्षों तक श्रम करके और बचेगा भी क्या! बचाने को है भी क्या आपके पास? यह क्षणभर की घटना पर पहुंचना पड़ता है। और जब सूफी फकीर | | जो बचने की तलाश चल रही है, यह कौन है जो बचना चाहता है ? पहुंचता है, तो वह भी अनंत प्रतीक्षा करके क्षणभर की घटना पर | | यह जो इतना डरा हआ प्राण है. इसको बचाकर भी क्या करिएगा? पहुंचता है। घटना तो वही है। इसको स्वतंत्र रखकर भी क्या प्रयोजन है ? और जो स्वतंत्रता इतनी तो दो बातें हो गईं। पानी को हम गरम करते हैं, सौ डिग्री पर भयभीत हो, वह स्वतंत्रता है भी नहीं। पानी भाप बन जाता है; एक। और पानी को गरम करना पड़ता है; | - मुल्ला नसरुद्दीन एक रात देर से घर लौटा। पत्नी ने शोरगुल दो। इनमें से जिस पर आप जोर देना चाहें। शुरू कर दिया। और उसने कहा कि फिर देर से आए? और हजार अगर आपको गरमी पर जोर देना है, तो आप कह सकते हैं, बार कह दिया कि देर से आना बंद हो! कहां थे? तो नसरुद्दीन ने 273
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy