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________________ *गीता दर्शन भाग-7 * तीसरा प्रश्नः आपने कहा कि प्राण यदि प्रभु के लिए धैर्य के लिए राजी है, क्या वह दुखी होगा? क्योंकि दुखी तो अधीर समग्ररूपेण आतुर हो जाएं, तो एक क्षण में मिलन होता है। घटित हो सकता है। और आप यह भी कहते हैं कि दुखी जल्दी में होता है। सिर्फ जो आनंद में है, वह धीरे चलता इस मिलन के लिए अनंत धैर्य अपेक्षित है। ये दोनों है। सम्राट जब चलता है, तो तेजी से नहीं चलता। सम्राट अगर अति स्थितियां हैं! तेजी से चले, तो उससे पता चलता है कि सम्राट होने की कला उसे नहीं आती। तेजी से तो वह भागता है, जिसको कुछ पाना है। जिसके पास नहीं ; ये दोनों एक ही स्थिति के दो रूप हैं। या एक ही | सब है, वह क्यों भागे? भाग-दौड़ कमी की खबर देती है। अनंत UI स्थिति के दो चरण हैं। धैर्य का अर्थ है कि मेरे पास सब है, जल्दी कुछ भी नहीं है। अगर समझें! निरंतर मैं कहता हूं कि उसे पाने के लिए अनंत | प्रभु भी मिलेगा, तो वह अतिरिक्त है। इसे थोड़ा समझ लें। धैर्य चाहिए। और निरंतर यह भी कहता हूं कि उसे एक क्षण में पाया । मेरे पास सब था और अगर प्रभु मिलेगा, तो वह अतिरिक्त है। जा सकता है। दोनों बातें विपरीत मालूम पड़ती हैं। क्योंकि अगर वह न मिलता तो कोई कमी न थी। वह मिल गया, तो मैं पूरे से भी उसे एक ही क्षण में पाया जा सकता है, तो अनंत धैर्य की जरूरत ज्यादा पूरा हो जाऊंगा। लेकिन पूरा मैं था, क्योंकि मुझे कोई जल्दी क्या? तब तो क्षणभर भी धैर्य रखने की जरूरत नहीं है। जिसे एक न थी; न कोई प्रयोजन था; न कोई भाग-दौड़ थी। क्षण में ही पाया जा सकता है, उसे हम अभी ही पा लें। पूरे धैर्य का अर्थ यह होता है कि आप जैसे हैं, उससे राजी हैं। __ और जब मैं कहता हूं कि उसको अनंत धैर्य रखें, तो ही पा | वह तथाता की घड़ी है। आप पूरी तरह राजी हैं कि ठीक, सब ठीक सकेंगे, तब आपको लगता है कि अनंत धैर्य रखने का मतलब ही है। और यह सब ठीक किसी सांत्वना के लिए नहीं कि अपने को यह हुआ कि एक क्षण में पाना तो संभव नहीं; अनंत जन्म में भी | समझाने के लिए। ठीक तो कुछ भी नहीं है, लेकिन अपने को पा लें, तो जल्दी पाया। समझा रहे हैं कि सब ठीक है। जानते हैं, ठीक कुछ भी नहीं है। दोनों बातें विपरीत लगती हैं, पर ये दोनों बातें विपरीत नहीं हैं। | लेकिन कह रहे हैं कि सब ठीक है, ताकि मन माना रहे। और जीवन का गणित पहेली जैसा है। ये दोनों बातें परिपूरक हैं। नहीं, वैसा सब ठीक नहीं। कुछ भी गैर-ठीक मालूम नहीं होता। समझने की कोशिश करें! सब ठीक है। कहीं कोई असंतोष नहीं है। और कुछ पाने की दौड़ __उसे एक क्षण में पाया जा सकता है, अगर आप में अनंत धैर्य | भी नहीं है। और प्रभु जब मिले, तब उसकी मरजी पर हम छोड़ हो। और अगर आप में धैर्य की कमी हो, तो उसे अनंत काल में सकते हैं समय को। हमारी तरफ से समय हम देते नहीं। आज न भी नहीं पाया जा सकता। क्योंकि आपका धैर्य ही उसे पाने की | | मिले, तो हम सांझ को पश्चात्ताप न करेंगे, रोएंगे न, धोएंगे न, योग्यता है। तो जितना धैर्य हो, उतने जल्दी वह घटित होता है। । | चिल्लाएंगे न, कि दिन निकल गया और आज तक...। एक दिन अनंत धैर्य का अर्थ है. एक ही क्षण में घटित हो जाएगा। क्योंकि खराब हुआ। कोई कमी नहीं रही; आप पूरा धैर्य रखे हुए हैं। अनंत धैर्य का अर्थ - कल फिर राह देखेंगे। उस राह में कहीं भी धूमिलता न आएगी; है कि अगर वह कभी भी न घटे, तो भी मैं धीरज खोने वाला नहीं उस प्रतीक्षा में हम कहीं भी चाह को न जुड़ने देंगे, जल्दबाजी न हूं। अनंत धैर्य का मतलब यह है कि वह कभी भी न घटे—कभी जुड़ने देंगे, अधैर्य न जुड़ने देंगे। ऐसा अनंत धैर्य हो, तो परमात्मा भी-तो भी मैं प्रतीक्षा करूंगा। ऐसा जिसका मन हो, उसके लिए क्षणभर में मिल जाता है। इसी क्षण घट जाएगा। क्योंकि इसको अब प्रतीक्षा कराने का कोई मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, आप कहते हैं क्षणभर में प्रयोजन ही न रहा। बात ही खतम हो गई। यह तैयार है। मिल जाता है, लेकिन मिलता क्यों नहीं? और जो इतने धैर्य के लिए तैयार है, क्या वह अशांत होगा? | उनका जो कहना है, मिलता क्यों नहीं? वही बाधा है। अगर क्योंकि अशांत तो अधैर्य के साथ जुड़ा है। इतना धैर्य वाला व्यक्ति | क्षणभर में मिल जाता है, तो अभी मिलना चाहिए! और जो इतनी तो परिपूर्ण शांत होगा, तभी इतना धैर्य रख सकेगा। और जो इतने | जल्दी में है कि अभी मिलना चाहिए. उसका मन इतने तनाव से भरा 2701
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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