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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * बुद्ध का अनुमान भी नहीं लगता कि बुद्ध क्या रहे होंगे! धम्मपद | मुझसे लोग पूछते हैं कि आप क्यों गीता पर बोल रहे हैं? प्यारा है, तो अब बुद्ध की खोज करो। वह एक तरह का जाल है। जो मैं गीता पर बोल रहा हूं, वह सीधे और बुद्ध कोई ऐसी बात थोड़े ही हैं कि एक दफा होकर नष्ट हो | ही बोल सकता हूं क्योंकि मैं ही बोल रहा हूं, गीता सिर्फ बहाना है। गए। रोज बुद्ध होते रहते हैं। अनेक लोगों में बुद्धत्व की घटना आखिर गीता का बहाना लेने की जरूरत भी क्या है? घटती है। इसलिए कभी पृथ्वी खाली नहीं होती। बुद्ध सदा मौजूद तुम्हारी वजह से वह मुसीबत उठानी पड़ रही है। वह मैं सीधे ही होते हैं। तो जरूरत नहीं है कि पच्चीस सौ साल पीछे अब जाओ, | | बोल सकता हूं। लेकिन तुम्हें पुराने नाम का मोह है; कृष्ण का मोह तब कहीं बुद्ध मिलेंगे। धम्मपद वाले बुद्ध न मिलें, तो कोई और | है। अगर कृष्ण मार्का लगा हो, तो तुम को लगेगा कि ठीक है। बात बुद्ध मिल जाएगा। उसी को हम गुरु कहते हैं। ठीक होनी चाहिए। धम्मपद पढ़ा; गीता पढ़ी। गीता पढ़कर रस आया, तो अब कृष्ण __ जो मैं कह रहा हूं, वह मैं कह रहा हूं। कृष्ण को किनारे रखकर की तलाश करो। कृष्ण सदा मौजूद हैं। वही गुरु का अर्थ है। कह सकता हूं। क्या अड़चन है! कृष्ण को भी बीच में लूं, तो भी गुरु का अर्थ है, अब हम उसको खोजेंगे, जिनसे ऐसे शास्त्र | जो मुझे कहना है, वही मैं कहूंगा। कृष्ण उसमें कुछ उपद्रव खड़ा निकले हैं। अब हम, जो निकला है, उससे राजी नहीं रहेंगे। अब नहीं कर सकते। पर उनके नाम का उपयोग तुम्हारी वजह से है। हम गंगोत्री की तलाश करेंगे, जहां से गंगा निकलती है। तुम्हें पुराने जालों का मोह है; और मुझे मछलियों से मतलब है। लोग गंगोत्री की यात्रा पर जाते हैं। पूरी गंगा का चक्कर लगाकर तुम पुराने में फंसते हो कि नए में, इससे क्या! तुम्हारा अगर पुराने गंगोत्री तक पहुंचते हैं। ऐसे ही शास्त्रों की पूरी यात्रा करके गुरु तक जाल से ही मोह है, तो ठीक है। पहुंचना होता है। गीता पर, कुरान पर, बाइबिल पर, ताओ तेह किंग पर, जो गुरु का अर्थ है, जहां से शास्त्र निकलते हैं। गुरु का अर्थ है, | हजारों वर्ष तक चर्चा चलती है, उसका प्रयोजन यही है कि लोग जिसने जाना, जिसने जीया सत्य को; और अब जिससे सत्य पुराने के मोह में हैं। ठीक है। उनको कष्ट भी न हो और धीरे-धीरे बहता है। उनको जब समझ में आ जाएगा, तो पुराने का मोह भी छूट जाएगा। और गुरु से कभी पृथ्वी खाली नहीं होती। कहीं न कहीं कोई न शास्त्र से गुरु, और गुरु से स्वयं-ऐसी यात्रा है। शास्त्र ले कोई बुद्ध है ही। कहीं न कहीं कोई न कोई कृष्ण है ही। कहीं न कहीं जाएगा गुरु तक; और गुरु पहुंचा देगा स्वयं तक। और जब तक कोई न कोई क्राइस्ट है ही। स्वयं का शून्य न आ जाए, तब तक समझना कि अभी मंजिल नहीं तकलीफ हमारी यह है कि आप पुराने लेबल से जीते हैं, कि उस आई। पर कृष्ण लिखा हुआ हो। वह नहीं मिलेगा। कि उस पर महावीर अब हम सूत्र को लें। लिखा हो, तो हम मानेंगे। महावीर जिस पर लिखा था, वह एक हे अर्जुन, इस संसार में क्षर अर्थात नाशवान और अक्षर अर्थात दफा हो चुका। अब गुरु तो मिल सकता है, लेकिन पुराने नाम से | अविनाशी, ये दो प्रकार के पुरुष हैं। उनमें संपूर्ण भूत प्राणियों के नहीं मिलेगा। शरीर तो क्षर अर्थात नाशवान और कटस्थ जीवात्मा अक्षर अर्थात नाम भर मिटते हैं। नाम बदलते चले जाते हैं। और अगर शास्त्र | अविनाशी कहा जाता है। तथा उन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही को सहानुभूति से समझा हो, उसकी कविता को भीतर पच जाने | है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सब का धारण-पोषण करता है दिया हो, उसका गीत आपमें गूंजने लगा हो, तो आप समझ जाएंगे एवं अविनाशी ईश्वर और परमात्मा, ऐसा कहा गया है। कि नामों का कोई मूल्य नहीं है। तो फिर कृष्ण को पकड़ लेना कहीं । क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूं और भी आसान है। | माया में स्थित अक्षर अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूं, इसलिए __ और गीता अगर कृष्ण तक न ले जाए, तो गीता का कोई भी सार | | लोक में और वेद में पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूं। नहीं है। इसीलिए सदियों-सदियों तक गीता की, वेद की, कुरान यह सूत्र पुरुषोत्तम की व्याख्या है। पुरुषोत्तम शब्द हमें परिचित की. बाइबिल की हम चर्चा करते हैं। वह चर्चा इसीलिए है। वह है। लेकिन कृष्ण का अर्थ खयाल में लेने जैसा है। एक तरह का जाल है। कृष्ण कह रहे हैं कि तीन स्थितियां हैं। एक विनाशशील जगत 256
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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