SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * गीता दर्शन भाग-7 * से पैदा होकर ब्राह्मण समझ लेता है, उसे कुछ पता ही नहीं है। किसी व्यक्ति में डाला जा सकता है। ब्राह्मण तो पैदा होगा गुरु की सन्निधि में। वह दुबारा उसका जन्म बहुत बार ऐसा होता है; आपको पता भी नहीं होता है कि होगा, वह ट्वाइस बॉर्न होगा। इसलिए हम उसे द्विज कहते हैं, | बहुत-से विचार आप में किस भांति प्रवेश कर जाते हैं। बहुत बार जिसका दूसरा जन्म हो गया। और दूसरे जन्म के बाद वह अधिकारी ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति के पास आप जाते हैं और आपके होगा कि गुरु उसे जो गुह्य है, जो छिपा है, वह दे। जो नहीं दिया विचार तत्काल बदलने लगते हैं; बुरे या अच्छे होने लगते हैं। जा सकता सामान्य को, वह उसे दे। वह उसकी धरोहर होगी। । संतों के पास अक्सर अनुभव होगा कि उनके पास जाकर आपके इसलिए बहुत सैकड़ों वर्ष तक हिंदुओं ने चेष्टा कि उनके शास्त्र | विचारों में एक झोंका आ गया; कुछ बदलाहट होग लिखे न जाएं, कंठस्थ किए जाएं। क्योंकि लिखते ही चीज सामान्य | के पास जाकर भी एक झोंका आता है; कुछ बदलाहट हो जाती है। हो जाती है, सार्वजनिक हो जाती है। फिर उस पर कब्जा नहीं रह संत किसी भावना में जीता है। उस भावना में वह इतनी सघनता जाता। फिर नियंत्रण रखना असंभव है। | से जीता है कि जैसे ही आप उसके पास जाते हैं, आपके मस्तिष्क में और जब लिखे भी गए शास्त्र, तो मूल बिंदु छोड़ दिए गए हैं। | उसकी चोट पड़नी शुरू हो जाती है। वहां एक सतत वातावरण है। इसलिए आप शास्त्र कितना ही पढ़ें, सत्य आपको नहीं मिल बुरा आदमी भी एक भावना में जीता है। वह उसकी एकाग्रता है। सकेगा। सब शास्त्र पढ़कर आपको अंततः गुरु के पास ही जाना | उसके पास आप जाते हैं कि चोट पड़नी शुरू हो जाती है। पड़ेगा। भीड़ में जब भी आप जाते हैं, तभी आप लौटकर अनुभव करेंगे तो सभी शास्त्र गुरु तक ले जा सकते हैं; बस। और सभी शास्त्र | कि मन उदास हो गया, थक गया; जैसे आप कुछ खोकर लौटे हैं। आप में प्यास जगाएंगे और बेचैनी पैदा करेंगे, और चाबी कहां है, क्योंकि भीड़ एक उत्पात है; उसमें कई तरह के मस्तिष्क हैं, कई इसकी चिंता पैदा होगी। और तब आप गुरु की तलाश में निकलेंगे, | तरह की एकाग्रताएं हैं। वे सब एक साथ आपके ऊपर हमला कर जिसके पास चाबी मिल सकती है। देती हैं। आध्यात्मिक विज्ञान तो और भी खतरनाक है। क्योंकि आपको | इसलिए सदियों से साधक एकांत की तलाश करता रहा है। खयाल ही नहीं कि आध्यात्मिक विज्ञान क्या कर सकता है। अगर | एकांत की तलाश, आप जानकर हैरान होंगे, जंगल और पहाड़ के कोई व्यक्ति थोड़ी-सी भी एकाग्रता साधने में सफल हो जाए, तो | लिए नहीं है। एकांत की तलाश आपसे बचने के लिए है। वह कोई वह दूसरे लोगों के मनों को बिना उनके जाने प्रभावित कर सकता जंगल की खोज में नहीं जा रहा है, न पहाड़ की खोज में जा रहा है। है। आप छोटे-मोटे प्रयोग करके देखें, तो आपको खयाल में आ | वह आपसे दूर हट रहा है। वह आपसे बच रहा है। नकारात्मक है जाएगा। खोज। पहाड़ क्या दे सकते हैं! पहाड़ कुछ नहीं दे सकते। लेकिन रास्ते पर जा रहे हों, किसी आदमी के पीछे चलने लगे; कोई आप बहुत कुछ छीन सकते हैं। तीन-चार कदम का फासला रखें। फिर दोनों आंखों को उसकी पहाड़ों के पास कोई मस्तिष्क नहीं है। इसलिए पहाड़ों के पास चेथी पर, सिर के पीछे थिर कर लें। एक सेकेंड भी आप एकाग्र आप निश्चित रह सकते हैं। वे न तो बुरा देंगे, न भला देंगे। जो नहीं हो पाएंगे कि वह आदमी लौटकर पीछे देखेगा। | आपके भीतर है, वही होगा। लेकिन आदमियों के पास आप किया नहीं; सिर्फ आंख...। निश्चित नहीं रह सकते। क्योंकि पूरे समय उनके विचार आप में लेकिन ठीक रीढ़ के आखिरी हिस्से से मस्तिष्क शुरू होता है। | प्रवाहित हो रहे हैं—वे न भी बोलें तो भी, वे न भी चाहें तो भी। मस्तिष्क रीढ़ का ही विकास है। जहां से मस्तिष्क शुरू होता है, | उनका कचरा आप में बह रहा है; आपका कचरा उनमें बह रहा है। वहां बहुत संवेदनशील हिस्सा है। आपकी आंख का जरा-सा भी | तो जब भी आप भीड़ में जाते हैं, आप कचरे से भरकर लौटते प्रभाव, और वह संवेदना वहां पैदा हो जाती है; सिर घुमाकर देखना हैं। एक कनफ्यूजन, एक भीतर भीड़ पैदा हो जाती है। जरूरी हो जाएगा। अगर आपको थोड़ी सी भी एकाग्रता अनुभव हो जाए, तो आप और अगर आप दस-पांच लोगों पर प्रयोग करके समझ जाएं किसी के भी विचार बदल सकते हैं। बड़ी ताकत है विचार बदलने कि यह हो सकता है, तो उस संवेदनशील हिस्से से कोई भी विचार | में। तर्क करने की जरूरत नहीं है। विवाद करने की जरूरत नहीं है। 234
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy