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________________ * समर्पण की छलांग * सकता। थोड़ा अविश्वास है, तो मुझसे संबंध भी नहीं बनता। और गलत निर्णय भी बल देता है। कुछ तो तय हुआ। उस तय होने के थोड़ा विश्वास है, तो मुझसे संबंध टूटता भी नहीं। यह बड़ी दुविधा साथ आपके भीतर इंटीग्रेशन पैदा होता है, अखंडता आती है। की स्थिति है। मझसे संबंध टे, तो किसी और से बन सके। हो | | लेकिन अनिर्णय, कुछ भी तय नहीं, इनडिसीसिवनेस, तो आप सकता है, कहीं और विश्वास घटित हो जाए। वहां भी जाना नहीं धीरे-धीरे भीतर बिखर जाते हैं। भीतर आत्मा संगृहीत नहीं हो पाती; हो पाता, क्योंकि थोड़ा विश्वास यहां है। खंड-खंड हो जाती है। यह खंडित स्थिति छोड़ें। यह ऐसी हालत है, जैसे किसी वृक्ष की हम आधी जड़ें बाहर तो जब तक, पहली तो बात, तसल्ली की खोज बंद कर दें। न निकाल लें और आधी जमीन में रहने दें। तो न तो वृक्ष में फूल लगें, । बंद कर सकते हों, तो खोज को पूरा करें। समर्पण कर दें। न न फल आएं, न पत्तों में हरियाली रहे और न वृक्ष मरे। समर्पण होता हो, तो असमर्पण का पूरा दुख भोग लें। मध्य में मत कभी आप अस्पतालों में जाएं; हिंदुस्तान के अस्पतालों में भी | | रहें। मध्य से कोई कभी ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ है। छलांग अब वैसी हालत आती जाती है। यूरोप और अमेरिका में तो बहुत | केवल अति से ही लग सकती है। है। लोग सौ वर्ष के हो गए हैं, सवा सौ वर्ष के हो गए हैं; और लटके हैं अस्पतालों में। उनको मरने नहीं दिया जाता और जीने का उनका कोई उपाय नहीं रहा है। तो किसी को आक्सीजन दी जा रही | दूसरा प्रश्नः दूसरों के अनुभव काम नहीं आते, ऐसा है; किसी के हाथ-पैर उलटे बांधे हुए हैं; उनको दवाइयां पिलाई | आपने कहा। फिर आप जैसे पुरुषों के बोलने में जाती हैं। सार्थकता क्या है कि जिसके लिए लोक प्रार्थना वे मुरदा जिंदा हैं। न तो मर सकते हैं, क्योंकि ये डाक्टर मरने न | करता है? देंगे। और न जी सकते हैं, क्योंकि डाक्टरों के हाथ के बाहर है उनको जीवन देना। जीवन उनके भीतर से बह चुका है। पर मौत को भी नहीं आने दिया जा रहा है। न सरों के अनुभव काम नहीं आते, इसका अर्थ है कि इस अधूरी अवस्था में लटके लोग पश्चिम में आवाज उठा रहे ५ दूसरों के अनुभव आपके अनुभव नहीं बन सकते हैं, हैं अथनासिया की। वे कहते हैं कि हमें मरने का हक होना चाहिए। दूसरे की प्रतीति आपकी प्रतीति नहीं बन सकती है। और जब हम लिखकर दे दें कि हम मरना चाहते हैं, तो हमें बचाने | लेकिन दूसरे का संपर्क संक्रामक हो सकता है। दूसरे की सन्निधि की कोशिश बंद हो जानी चाहिए। लेकिन अभी तक कोई राज्य | संक्रामक हो सकती है। अगर आप दूसरे के प्रति खुले हों, तो जैसे इतनी हिम्मत नहीं कर पाता कि मरने का हक दे। बीमारियां पकड़ सकती हैं आपको, वैसे ही स्वास्थ्य भी पकड़ . डाक्टर भी जानते हैं कि यह आदमी मर जाए तो अच्छा। लेकिन | सकता है। फिर भी उसे दवाइयां दिए जाते हैं जिंदा रखने के लिए; क्योंकि अनुभव दूसरे के काम नहीं आते। अगर आप कृष्ण के पास हों, उनको उनके अंतःकरण की पीड़ा है। अगर हम दवा न दें और यह | तो कृष्ण के अनुभव आपके अनुभव नहीं बन सकते। लेकिन कृष्ण आदमी मरे, तो उनको जिंदगीभर लगेगा कि हमने मारा। की मौजूदगी में अगर आप समर्पित हों, तो आपके अपने जीवन का जो व्यक्ति थोड़ा-सा विश्वास करता है और थोड़ा-सा | | विकास शुरू हो जाता है। उस विकास में कभी अनुभव घटित अविश्वास, वह अस्पतालों में लटके हुए इन व्यक्तियों की भांति | | होंगे। वे अनुभव कोई दूसरा आपको नहीं दे सकता, लेकिन दूसरे हो जाता है; न जी सकता है, न मर सकता है; न दूर जा सकता है, | की मौजूदगी कैटेलिटिक एजेंट का काम कर सकती है। उससे न पास आ सकता है। स्फुरणा हो सकती है। वह प्रेरणा बन सकती है। उससे धक्का लग तो या तो छलांग लगा लें; या समझें कि यह खाई आपके लिए सकता है। नहीं है। कहीं और कोई खाई होगी। तो इस खाई से हट जाएं। लेकिन उसके लिए जरूरी है कि आप खुले हों। आपका हृदय निर्णायक होने की जरूरत है। अपना निर्णय लेने की जरूरत है। बंद न हो; आपके मस्तिष्क पक्षपात से न घिरे हों। आप राजी हों गलत निर्णय भी बुरा नहीं है; लेकिन अनिर्णय बुरा है। क्योंकि अनजान में जाने के लिए, अपरिचित में उतरने के लिए; जिसको 219
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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