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________________ संकल्प —– संसार का या मोक्ष का लेकिन वह ब्राह्मण की लड़की है। पड़ोस में जो व्यक्ति है, वह ब्राह्मण तो है ही नहीं, हिंदू भी नहीं है। यह प्रेम चलाया नहीं जा सकता। यह विवाह हो नहीं सकता। तो सब तरफ से मां-बाप ने रोक लगा दी और दोनों के मकान के बीच छत पर एक बड़ी दीवार खड़ी कर दी, जिससे कि आर-पार देखा न जा सके। जिस दिन दीवार बनी है, उसी दिन से उसकी आंखें चली गई हैं। मैंने उसको पूछा कि तेरे भीतर क्या भाव है? उसने कहा कि जिसे देखने के लिए जीती हूं, अगर उसे न देख सकूं, तो इन आंखों का कोई अर्थ नहीं है। चिकित्सक इसका इलाज न कर सकेंगे। क्योंकि इसकी देखने की इच्छा वापस लौट गई है। आंखें निर्जीव पड़ी रह गई हैं। आंखों से देखने की इच्छा का जो प्रवाह है, वही आंखों में जीवन देता है। मैंने उनके मां-बाप को कहा कि उपाय एक ही है, वह दीवार बीच से गिरा दो। और जो-जो बंधन खड़े किए हैं; वह हटा लो । या फिर यह लड़की अंधी रहेगी, इसे स्वीकार कर लो। उनको बात समझ में आ गई, जो कि बड़ा चमत्कार है। क्योंकि मां-बाप की समझ में कुछ आ जाए ! वे राजी हो गए। दीवार नहीं गिरानी पड़ी; उनके राजी होते से ही, मेरे सामने ही बैठे-बैठे उस लड़की की आंखें वापस आ गईं। फिर से देखने की इच्छा प्रवाहित हो गई। आप आंखों को पकड़े हैं, क्योंकि देखना चाहते हैं। कान को पकड़े हैं, क्योंकि सुनना चाहते हैं। हाथ को पकड़े हैं, क्योंकि छूना चाहते हैं। आपकी चाह आपकी इंद्रियों के और आपके बीच सेतु है। इसलिए बुद्ध ने कहा है कि आंखें मत फोड़ो; कान बंद करने से कुछ भी न होगा। चाह को गिरा दो, चाह को हटा दो, तो इंद्रियों से संबंध धीरे-धीरे अपने आप छूट जाता है। ध्यान रहे, आप आमतौर से यही सुनते रहे हैं कि इंद्रियों ने आपको बांधा है, इंद्रियां दुश्मन हैं। और कृष्ण बिलकुल उलटी बात कह रहे हैं। कृष्ण कह रहे हैं कि आपने इंद्रियों को चाहा है; उनका उपयोग किया है। आपने ही उनको खींचा और आकर्षित किया है, इसलिए वे हैं। और जिस दिन आप निर्णय करेंगे, जिस दिन आपका रुख बदल जाएगा, आपकी धारा भीतर बहने लगेगी, उसी दिन इंद्रियां तिरोहित हो जाएंगी। इंद्रियों को दोष मत । दोष किसी का भी नहीं है। आपका संकल्प है। आपकी चेतना ने इस शरीर में रहना चाहा है, इसलिए शरीर में है । जिस दिन नहीं रहना चाहेगी, उसी दिन शरीर छूट जाएगा। अगर यह बात खयाल में आ जाए, तो इंद्रियों से जो दुश्मनी चलती है, वह बंद हो जाए। वह मूढ़तापूर्ण है। उसका कोई भी मूल्य नहीं है। और वह गलत है। उसके परिणाम भयानक हैं। क्योंकि आप इंद्रियों से लड़ने में शक्ति गंवा देते हैं। और लड़ाई वहां | अर्थहीन है। लड़ाई कहीं और होनी चाहिए। लड़ाई होनी चाहिए कि मेरा इंद्रियों को पकड़ने का रुख कम हो जाए। मन सहित पांचों इंद्रियों को वही आकर्षण करता है । जैसे कि वायु गंध के स्थान से गंध जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादिकों का स्वामी जीवात्मा भी जिस पहले शरीर को त्यागता है, उससे इन मन सहित इंद्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होना है, उसमें जाता है। जब आप मरते हैं, तब भी आप सूक्ष्म इंद्रियों को अपने साथ ले जाते हैं। जैसे हवा फूलों की गंध को अपने साथ ले जाती है। फूल को तो नहीं ले जा सकती; फूल तो पीछे रह जाता है, लेकिन हवा का झोंका फूल की गंध को अपने साथ ले जाता है। आपकी चेतना शरीर को तो नहीं ले जा सकती, लेकिन शरीर को पकड़ने की जो | वासना है, उसको गंध की तरह अपने साथ ले जाती है। उसी वासना के आधार पर, उसको हिंदुओं ने सूक्ष्म इंद्रियां कहा | है। आंख स्थूल इंद्रिय है; देखने की वासना सूक्ष्म इंद्रिय है। जीभ स्थूल इंद्रिय है; स्वाद की आकांक्षा सूक्ष्म इंद्रिय है। फूल तो पड़े रह जाते हैं। आप जानकर चकित होंगे कि हिंदू मरे हुए आदमी के शरीर की हड्डियां जब मरघट से उठाकर लाते हैं, तो उनको फूल कहते हैं। | बिलकुल प्यारा शब्द है। फूल पड़े रह जाते हैं, लेकिन गंध आपके साथ चली जाती है। और वह जो गंध आपके साथ चली जाती है, वह नए जन्मों की तलाश करती है । वह नए शरीर खोजती है, नए गर्भ खोजती है। और जैसी आपकी वासना होती है, वैसा गर्भ आपको उपलब्ध हो जाता है। जो आप होना चाहते हैं, जो आप होना चाहने की कामना इकट्ठी करते रहे हैं, वही संगृहीभूत हो जाती है, वही क्रिस्टलाइज हो जाती | है। नई देह का निर्माण... आप नई देह को पकड़ लेते हैं। यह तब तक चलता रहेगा, जब तक हवा गंध को ले जाती रहेगी। यह उस दिन बंद हो जाएगा, जिस दिन हवा फूल को ही नहीं छोड़ेगी, गंध को भी छोड़ देगी। हवा खाली उड़ जाएगी। बुद्ध ऐसे ही उड़ते हैं। महावीर ऐसे ही उड़ते हैं। फूल भी छोड़ 209
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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