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________________ * गीता दर्शन भाग-7 . खयाल करें। जो पाना है, उसकी फिक्र छोड़ें; जो पाया ही हुआ था | भरा है। उसी रास्ते से गुजरने में डर लगता है, फिर से उन्हीं बिंदुओं और जिसको हमने किसी तरह खोया है, जो विस्मृत हो गया है, को छूने में। उसकी पुनः स्मृति करें। और ध्यान रखें, आप पूरी पीड़ा से गुजरेंगे, गुजरना ही पड़ेगा। जितने आप पीछे जाएंगे, उतने ही आप आगे जाएंगे, क्योंकि आपके सारे दुख फिर से पुनर्जीवित होंगे, सब घाव फिर हरे होंगे। गति वर्तुलाकार है। और जिस दिन आप पीछे बिंदु पर पहुंच जाएंगे, | क्योंकि कोई घाव मिटता नहीं; वह बना है। उस दिन आप अंतिम मंजिल पर भी पहुंच गए। अगर आप दस वर्ष के थे और आपके पिता ने आपको पीटा था, ___जहां जड़ें हैं, वहीं वृक्ष के अंतिम फूल हैं। वृक्ष में जब फूल लगते तो वह चोट अब भी वहां बनी है। जब आप पीछे लौटना शुरू हैं, तो अंतिम क्या होता है? अंत में वृक्ष के फूल गिरने लगते हैं। करेंगे, गर्भ का प्रयोग करेंगे, आप पुनः दस वर्ष के होंगे, वह चोट वर्तुल पूरा हो गया। बीज हमने बोया था। बीज से वृक्ष बड़ा हुआ; | फिर हरी होगी। पिता फिर आपको पीटेंगे। फिर वही पीड़ा, फिर फिर फूल लगे, फल लगे, बीज फिर आ गए। वर्तुल पूरा हुआ। वही अहंकार को लगी चोट, असमर्थता, असहाय अवस्था, फिर और जैसे ही बीज फिर आ गए, फल टूटने लगते हैं, फूल टूटने | सब भीतर प्रकट होगा। फिर वही आंसू, फिर वही रोना, वह सब लगते हैं, बीज वापस जमीन में गिरने लगते हैं। फिर पैदा होगा। जहां से यात्रा शुरू हुई थी, यात्रा वहीं पूरी हो गई। बीज से लेकिन यह पैदा कर लेना बड़ा कीमती है। क्योंकि अब आप प्रारंभ, बीज पर अंत। परमात्मा से प्रारंभ, परमात्मा पर अंत। प्रथम सचेतन रूप से इससे गुजर रहे हैं। और एक बार जिस अनुभव से ही अंतिम है। आप सचेतन गुजर जाएं, वह आपकी स्मृति से मुक्त हो जाता है। हमारा मन लेकिन आगे की तरफ दौड़ता है। पीछे की तरफ | संस्कार इसी तरह क्षीण होते हैं, कर्म इसी तरह लय होते हैं। जिस रास्ता ही नहीं मालूम पड़ता। शायद हम भयभीत हैं। क्योंकि पीछे | पीड़ा को भी आप छिपाए हैं, उसको फिर से भोग लें; और आप की तरफ लौटने में जो हमने बहुत-से दुख छिपा रखे हैं, वे उभरेंगे। | हलके हो जाएंगे। यही भय है। जो दुख छिपा रखे हैं, वे उभरेंगे। उनसे हमें फिर | तो डरें मत। पीछे उतरने का डर छोड़ें। थोड़े दुख पीछे के भोगें। गुजरना होगा। उनसे गुजरने में पीड़ा है। और आप पाएंगे, आप हलके होते हैं। एक बार यह खयाल आ गया, मैंने सुना है, एक सांझ मुल्ला नसरुद्दीन अपने मकान के सामने | तो फिर आप सारे दुख भोगकर वापस गर्भ तक पहुंच सकते हैं। बहुत उदास बैठा है। उसकी पत्नी पूछती है कि नसरुद्दीन, इतने __मूल ऊपर की ओर, पीछे की ओर, प्रथम में छिपा है। लंबी यात्रा उदास! क्या बात है? नसरुद्दीन ने कहा कि सुबह जब मैं बाजार | की है आपने। और इस यात्रा से बचने का एक सुगम उपाय है कि गया, तो मेरे खीसे में सौ का नोट था। फिर मैंने एक खीसे को | | आप भविष्य में सपने देखते रहें। तो आपका अतीत बड़ा होता जाता छोड़कर सब खीसे देख लिए, नोट का कहीं कोई पता नहीं चल रहा | है। लौटना उतना ही मुश्किल होगा। जितनी देर करेंगे, उतनी ही है। तो उसकी पत्नी ने कहा, उस एक को क्यों छोड़ रखा है? कठिनाई होगी। नसरुद्दीन ने कहा कि डर लगता है; अगर उसको देखा और वहां | लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, अभी हमारी उम्र नहीं; अभी भी न पाया तो! एक ही आशा बची है। और हिम्मत नहीं पड़ती उस तो जवान हैं। अभी क्या ध्यान, अभी क्या समाधि, अभी क्या खीसे में हाथ डालने की। सोचना परमात्मा को! आएगा समय, रिटायर होंगे, काम-धंधे से आप भयभीत हैं खद के भीतर जाने में। भविष्य में आशाएं बांध छुटकारा होगा, फुर्सत होगी; तब! रखी हैं। वहां आशाओं की सुविधा है, क्योंकि कल्पना फैलाने का | उन्हें पता नहीं; जितनी देर होगी, उतना कठिन होता जाता है। कोई अंत नहीं है; सपने देखने में कोई कठिनाई नहीं है। सपनों को | | क्योंकि अतीत रोज बड़ा होता जा रहा है। उतना ही बोझ, उतने ही सुंदर बनाना आपके हाथ में है; उनको रंगते जाना, रंगीन करते दुख, उतनी ही पीड़ाएं, उतनी ही जलन, ईर्ष्याएं, इकट्ठी होती जाती जाना भी आपकी सुविधा है। अतीत—आप कुछ कर नहीं सकते। हैं। पीछे लौटना उतना ही मुश्किल हो जाएगा। दरवाजे उतने ही बंद अतीत ठोस है, सत्य है, वह हो चुका। और आप उससे गुजर चुके हो जाएंगे; भय और ज्यादा लगेगा। और आप जानते हैं कि पीड़ा थी, बड़ा दुख था। वह सब दुख वहां जितनी जल्दी ह्ये सके, उतना उचित है। और किसी दिन-अब | 1781
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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