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________________ * गीता दर्शन भाग-7 * की बात है। अनुभव करें कि आप झुक रहे हैं। फिर आपका सिर जमीन को उस संसार-वक्ष की तीनों गणरूप जल के द्वारा बढी हई एवं छने लगे। विषय-भोगरूप कोंपलों वाली देव, मनुष्य और तिर्यक आदि | तो आप ठीक उस अवस्था में आ गए जिस अवस्था में बच्चा योनिरूप शाखाएं नीचे की ओर हैं। ऊपर सर्वत्र भी फैली हुई हैं। | गर्भ में होता है। ऐसा ही बच्चा सिकुड़ा हुआ गर्भ में होता है। घुटने नीचे-ऊपर दोनों तरफ फैली हुई हैं। तथा मनुष्य-योनि में कर्मों के | उसके छाती से लगे होते हैं, सिर नीचे झुका होता है, पैर उसके पीछे अनुसार बांधने वाली अहंता, ममता और वासनारूप जड़ें भी नीचे | | मुड़े होते हैं। और ऊपर सभी लोकों में व्याप्त हो रही हैं। इसलिए मुसलमानों का नमाज पढ़ने का ढंग बड़ा वैज्ञानिक है। वासना नीचे की तरफ भी बह रही है, ऊपर की तरफ भी बह रही वह पद्मासन और सिद्धासन से भी ज्यादा कीमती है। क्योंकि कोई है; सभी दिशाओं में बह रही है। इसलिए ज्यादा इस बात का विचार बच्चा गर्भ में पद्मासन और सिद्धासन लगाकर नहीं बैठता। इसलिए करना जरूरी नहीं है कि वासना कहां बह रही है, ज्यादा विचार पद्मासन और सिद्धासन में वह सरलता नहीं है, वह स्वाभाविकता करना इस बात का कि वासना उदगम से संबंधित है! नहीं है, वह सहजता नहीं है, जो नमाज की क्रिया में है। आप अपने संबंध में सोचें, शायद ही आपको कभी खयाल फिर नमाज पढ़ने वाला नमाजी बार-बार झुकता है, और झुकने आता हो उदगम का। शायद ही आप कभी बैठकर सोचते हों कि का अभ्यास करता है। फिर-फिर नीचे झुकता है। फिर उठता है, गर्भ की अवस्था में मैं कैसा था! सोचें आप, तो जो भी सुनेगा वह फिर झुकता है। वह झुकने की कला है। इसलिए मस्जिद से आपको पागल कहेगा। आप खुद भी सोचेंगे, क्या व्यर्थ की बात निकलते हुए मुसलमान में जैसी विनम्रता दिखाई पड़ेगी, किसी हिंदू सोच रहे हैं! शायद कभी-कभार आपको मृत्यु का खयाल आ भी | में किसी मंदिर से निकलते वक्त दिखाई नहीं पड़ती। उसकी सारी जाता हो, लेकिन जन्म का कभी नहीं आता। नमाज ही झुकने की कला है। मृत्यु आगे है; वह शाखाओं का अंतिम हिस्सा है। जन्म पीछे कठिन था मोहम्मद को अरब के रेगिस्तान के खूखार लोगों को है; वह आपके गहन में छिपा है। इस तरफ थोड़ा प्रयोग करें। बड़े धार्मिक बनाना। नमाज की प्रक्रिया ने साथ दिया। हिंदुओं को प्राचीन समय में एक विशेष ध्यान की पद्धति सिर्फ इसके लिए ही | सहिष्णु बनाना, उदार बनाना बहुत कठिन नहीं है। प्रकृति बड़ी उदार खोजी गई थी, वह मैं आपको कहूं। उसे प्रयोग करें; आप बहुत है यहां। सब चीजें उपलब्ध हैं। आज नहीं हैं, तो कल थीं। जिंदगी चकित होंगे। बहुत बड़ा संघर्ष नहीं है। ऐसी जगह बैठ जाएं जहां बहुत प्रकाश न हो, धुंधलका हो या लेकिन जहां मोहम्मद ने लोगों को झुकना सिखाया, वहां जीवन अंधेरा हो। जगह शांत हो, कोई शोरगुल न हो। क्योंकि गर्भ बड़ा संघर्ष था, बड़ा भयंकर संघर्ष था। जीने का मतलब ही दूसरे बिलकुल शांत जगह है। वहां कोई शोरगुल प्रवेश नहीं कर सकता, को मारना, दूसरे को मिटाना था। और विस्तार रेगिस्तान का जलता कोई आवाज वहां प्रवेश नहीं कर सकती। सुख से बैठ जाएं। और हुआ, जहां हरियाली दिखाई भी न पड़े, वहां आदमी अगर अकड़ बैठे इस भांति कि धीरे-धीरे आपका सिर झुकता जाए, और जमीन | | जाए, अहंकारी हो जाए, क्रूर और कठोर हो जाए, तो स्वाभाविक छूने लगे। दोनों पैर मोड़कर बैठ जाएं, जैसा सूफी फकीर बैठते हैं, | है। वहां नमाज की प्रक्रिया ने और झुकने ने उन खूखार लोगों को या मुसलमान नमाज पढ़ते वक्त बैठते हैं; उनके बैठने का आसन | भी बहुत विनम्र बना दिया। गर्भासन है। दोनों घुटने मोड़ लें और जैसा मुसलमान नमाज पढ़ते आप देखें प्रयोग करके। कमरा अंधेरा हो, और ठीक इस हालत हैं, वैसे बैठ जाएं। फिर आंख बंद कर लें और सिर को | | में हो जाएं, जैसे आप फिर से छोटे बच्चे हो गए हैं और गर्भ में आहिस्ता-आहिस्ता झुकाते जाएं। प्रवेश कर गए हैं। श्वास धीरे-धीरे कम हो जाएगी। आसन ही ऐसा इतने धीमे-धीमे झुकाएं कि आप झुकाव को अनुभव कर सकें। है कि श्वास तेज नहीं हो सकती। पेट दबा होगा, छाती दबी होगी, क्योंकि झुकना बड़ी कीमती बात है। एकदम से झुक जाएंगे, तो सिर झुका होगा, श्वास तेज नहीं हो सकती; श्वास धीमी होती आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप झुके। बहुत धीमे, जितने धीमे जाएगी। उसको साथ दें, और धीमा हो जाने दें। ऐसी घड़ी आएगी कर सकें, उतने धीमे-धीमे सिर को झुकाते जाएं, और झुकने को जब श्वास बिलकुल लगेगी कि चलती है या नहीं चलती। क्योंकि 176/
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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