SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * संन्यास गुणातीत है * यह ऐसे ही है, जैसे मेरे हाथ में तलवार हो। तलवार के बिना मैं अब कोई उपाय नहीं है। क्योंकि अच्छा आचरण तो अब इंजेक्शन किसी की गर्दन न काट पाऊंगा। तलवार मेरे हाथ से छीन ली जाए, से भी पैदा हो सकेगा। जिसको वे कहते हैं कि बुरा आचरण मिटाने तो मैं गर्दन नहीं काट पाऊंगा। इसलिए मेरा आचरण तो भिन्न हो | का एक ही उपाय धर्म है, वह भी गलत है। जाएगा। गर्दन काटने का उपाय न होगा। लेकिन गर्दन सिर्फ पश्चिम में बहुत-से वैज्ञानिक प्रस्ताव कर रहे हैं कि अपराधियों तलवार के कारण मैं नहीं काट रहा था। तलवार तो केवल उपकरण | को दंडित करना बंद कर दिया जाए। वह भ्रांति है। अपराधियों की थी। भीतर मैं था. हिंसा से भरा हआ। भीतर मेरी वत्ति थी दसरे के रासायनिक चिकित्सा की जाए। वे अपराध करते हैं, क्योंकि उनके नष्ट करने की, वह मेरे भीतर कोई तत्व है रासायनिक, जो विक्षिप्त हालत पैदा कर देता है। तलवार भी मेरे हाथ में हो और भीतर मेरी वृत्ति न रह जाए, तो उसे बदल दिया जाए। फांसी देना फिजूल है। वर्षों तक उनको जेल मैं गर्दन नहीं काटूंगा। गर्दन काटने के लिए दो चीजें जरूरी हैं, मेरे | में रखना व्यर्थ है। उससे उनका कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं हो भीतर मूर्छा चाहिए और हाथ में तलवार चाहिए। और जब इन | रहा है। बल्कि वे और भी निष्णात और पक्के अपराधी होकर वापस दोनों का संयोग हो जाएगा, तो गर्दन कटेगी। इन दो में से एक भी | लौटेंगे। बाहर तो वे प्रशिक्षित नहीं थे, भीतर उनको बड़े गुरु हटा लिया जाए, तो आचरण बदल जाएगा। उपलब्ध हो जाएंगे। __ अगर भीतर का तत्व हटा लिया जाए, तो आचरण भी बदलेगा एक आदमी चोरी करता है। वह अकेला चोरी कर रहा है। और आत्मा भी बदलेगी। अगर बाहर का तत्व हटा लिया जाए, तो | नया-नया है। पकड़ में भी आ जाता है। जब आप उसे पांच साल केवल आचरण बदलेगा, आत्मा नहीं बदलेगी। और आत्मिक | | जेल में रख देते हैं, तो वहां हजार उस्तादों के शिक्षण में रहने का क्रांति आचरण के बदलने से नहीं होती। आत्मिक क्रांति आत्मा के | मौका मिल जाता है, जो पुराने अभ्यासी हैं। वह पांच साल की जेल बदलने से होती है। आचरण तो केवल छाया की भांति है। | के बाद ज्यादा कुशल चोर होकर बाहर निकलता है। उसे पकड़ना इस बात पर हमारा जोर नहीं है कि आपके आचरण में ब्रह्मचर्य | | और मुश्किल हो जाएगा। हो। जोर इस बात पर है कि आपके भीतर ब्रह्मचर्य हो। वह भीतर किसी को सजा देने से कोई उसके भीतर का परिवर्तन तो होता का ब्रह्मचर्य बाहर के ब्रह्मचर्य को छाया की भांति ले आएगा। | नहीं; बाहर का भी परिवर्तन नहीं होता। सिर्फ उसकी आत्मा और लेकिन रासायनिक प्रक्रियाओं से आपका आचरण बदला जा | भी कठोर हो जाती है, और भी बेशर्म हो जाती है। सकता है। भीतर आप वही होंगे, क्योंकि आपकी आत्मा कोई __ ज्यादा देर नहीं लगेगी कि वैज्ञानिक राजनीतिज्ञों को राजी कर साक्षी-भाव को उपलब्ध नहीं हो जाएगी। | लेंगे। चीन में, रूस में राजनैतिक अपराधियों के साथ ये प्रयोग और ध्यान रहे, साक्षी-भाव किसी रासायनिक द्रव्य पर निर्भर | शुरू हो गए हैं। रूस में स्टैलिन के समय तक जो भी राजनैतिक • नहीं है। ऐसा कोई रासायनिक तत्व नहीं है, जिसका इंजेक्शन देने | | विरोधी होता, उसकी वे हत्या कर डालते थे। अब वे हत्या नहीं से आप में साक्षी-भाव पैदा हो जाए। साक्षी-भाव तो आपको | | करते हैं। अब राजनैतिक विरोधी को सिर्फ अस्पताल से वे पागल साधना होगा; क्रमशः उपलब्ध करना होगा। वह लंबे संघर्ष का | | करार दे देते हैं। जो कि ज्यादा खतरनाक है। चिकित्सक लिखकर परिणाम होगा, निष्पत्ति होगी। साक्षी-भाव तो एक आंतरिक ग्रोथ, | | दे देते हैं कि इसके मस्तिष्क में खराबी है। विकास है। ___ इतना लिखना काफी है। फिर उसे पागलखाने में डाल दिया जाता रासायनिक द्रव्यों से आचरण बदला जा सकता है। इसलिए । | है। और पागलखाने में उसके मस्तिष्क का इलाज शुरू कर दिया ध्यान रखें, जो लोग धर्म को मात्र आचरण समझते हैं, उनका धर्म | जाता है। वह इलाज...। वह न तो आदमी पागल है, न उसको कोई दुनिया में ज्यादा दिन टिकेगा नहीं। क्योंकि जिन-जिन बातों को वे | | रोग है, न कोई मानसिक विक्षिप्तता है। लेकिन इलाज यह है कि धर्म कहते हैं, वह तो वैज्ञानिक कर सकेगा। ऐसा धर्म तो मरने के उसके भीतर जो-जो तत्व बगावती हैं, उनको धीरे-धीरे शांत कर कगार पर पहुंच गया है। मैं जिसे धर्म कहता हूं, वही टिक सकता | | दिया जाएगा। है भविष्य में। एक चार-छः महीने के बाद वह आदमी बाहर आ जाता है। जो लोग कहते हैं, अच्छा आचरण धार्मिकता है, उनके धर्म का उसकी जो बगावत थी, विद्रोह था, सरकार के विपरीत सोचने की 119
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy