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________________ गीता दर्शन भाग-7 * अभी हमारा चेहरा गुणों की तरफ है। कभी इस गुण में, कभी | जारी रहती है। उचित यही होगा कि समझें कि जिन गुणधर्मों से, उस गुण में, कभी तीसरे गुण में हम उलझे हैं। और गुण का जो|| जिस प्रकृति के तत्व से वासना उठती थी, वे तत्व क्षीण हो गए, खेल है, जाल है, वह जाल हम अपना समझ रहे हैं। | जल गए। जब वे जग रहे थे तत्व, सजग थे, तेज थे, दौड़ते थे, तब रामकृष्ण के पास एक भक्त आता था। और वह भक्त जब आप उनका पीछा कर रहे थे। तब भी आप कर्ता नहीं थे। और अब काली के दिन आते, तो कई बकरे कटवाता था। बड़ा समारोह | | भी आप कर्ता नहीं हैं। लेकिन वासना के दिन में समझा था कि मैं मचाता था। उसकी बड़ी गणना थी भक्तों में, बड़े भक्तों में। फिर कर्ता हूं। मैं हूं जवान। और बुढ़ापे के दिन में समझ रहे हैं कि मैं हूं अचानक उसने पूजा-भक्ति सब छोड़ दी, बकरे कटने बंद हो गए। त्यागी, मैं हूं ब्रह्मचारी। दोनों भ्रांतियां हैं। तो एक दिन रामकृष्ण ने उससे पूछा कि क्या हुआ? क्या | अगर आप देख पाएं कि सारा खेल प्रकृति का है और आप भक्ति-भाव जाता रहा? क्या अब काली में श्रद्धा न रही? उसने | | उसके बीच में सिर्फ खड़े हैं देखने वाले की तरह, एक क्षण को भी कहा, नहीं, यह बात नहीं। आप देखते नहीं, दांत ही सब गिर गए। | कर्तृत्व आपका नहीं है; आप मुक्त हो गए। यह जानते ही कि मैं - वह आदमी बड़ा ईमानदार रहा होगा। वह बकरे वगैरह काली | कर्ता नहीं हूं, बंधन गिर गए। यह पहचानते ही कि मैंने कभी कुछ के लिए कोई काटता है! काली तो बहाना है, तरकीब है। बकरे तो नहीं किया है, सारे कर्मों का जाल टूट गया। अपने ही दांतों के लिए काटे जाते हैं। लेकिन उसने कहा कि दांत कर्म आपको नहीं बांधे हुए हैं। लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते ही न रहे, दांत ही गिर गए, अब क्या काटना और क्या नहीं काटना! | हैं कि जन्मों-जन्मों के कर्म पकड़े हुए हैं। कोई कर्म आपको नहीं किसके लिए काटना? पकड़े हुए है, कर्ता पकड़े हुए है। कर्ता के छूटते ही सारे कर्म छूट लेकिन वह आदमी ईमानदार रहा होगा। उसने एक बात तो कम | जाएंगे। क्योंकि जिसने किए थे, जब वह ही न रहा, तो कर्म कैसे से कम समझी कि यह सब दांतों के लिए चल रहा था। | पकड़ेंगे? कर्म नहीं पकड़ता, कर्ता पकड़ता है। और कर्ता के कारण बुढ़ापे में लोग शीलवान हो जाते हैं। बुढ़ापे में लोग सच्चरित्रता | | जन्मों-जन्मों के कर्म इकट्ठे रहते हैं, उनका बोझ आप ढोते हैं। की बात करने लगते हैं। बुढ़ापे में दूसरे लोगों को समझाने लगते। कई लोग मुझसे यह भी पूछने आते हैं कि पिछले किए हुए कर्मों हैं कि जवानी सब रोग है। जब वे जवान थे, तो उनके घर के | को कैसे काटें? बड़े-बूढ़े भी उन्हें यही समझा रहे थे कि जवानी सब रोग है। उन्होंने | एक तो उनको किया नहीं कभी। अब उनको काटने का कर्म उनकी नहीं सुनी। उनके बेटे भी उनकी नहीं सुनेंगे। करने की कोशिश चल रही है! उनको कैसे काटें? जिनको किया और बड़ा मजा यह है कि जब आपने अपने बाप की नहीं सुनी, | | ही नहीं, उनको अनकिया कैसे करिएगा? वह भ्रांति थी कि आपने तो आप किस भ्रांति में हैं कि अपने बेटे को सोच रहे हैं, सुन ले। | किया। अब आप एक नई भ्रांति चाहते हैं कि उनको हम काटने का किसी बेटे ने कभी नहीं सुनी। क्योंकि जवानी सुनती ही नहीं। और कर्म कैसे करें! पहले संसारी थे, अब संन्यासी कैसे हों? बुढ़ापा बोले चला जाता है। बुढ़ापा समझाए चला जाता है। क्योंकि | संन्यास का कुल मतलब इतना है कि करने को कुछ भी नहीं है, बुढ़ापा अब कुछ और कर नहीं सकता। करने के दिन गए। वह जिन सिर्फ देखने को है। अब करने वाला मैं नहीं है, सिर्फ देखने वाला तत्वों से करना निकलता था, वे क्षीण हो गए। हूं। फिर जो भी हो रहा हो, उसे देखते रहना है सहज भाव से, उसमें और बड़े मजे की बात है, जब आप नहीं कर सकते, तब भी कोई बाधा नहीं डालनी है। आपको यह खयाल नहीं आता कि शरीर के गुणधर्म क्षीण हो गए | शास्त्र कहते हैं कि ज्ञानी अगर ब्राह्मण की भी हत्या कर दे. तो हैं, जिससे आप नहीं कर सकते हैं। जब आप कर सकते थे, तब | उस पर कोई पाप नहीं है। अंबेदकर ने बड़ा एतराज उठाया। क्योंकि आप सोचते थे, मैं कर रहा हूं। और जब आप नहीं कर सकते, तब | यह बात बड़ी अजीब है; और भी कोई सोचेगा, तो एतराज आप सोचते हैं कि मैंने त्याग कर दिया। जब आप नहीं कर सकते, | | उठाएगा। इस तरह की छूट ज्ञानी को देनी कैसे संभव है? कानून तब आप सोचते हैं, मैंने त्याग कर दिया! | सबके लिए है; नियम सबके लिए है। बूढ़े अक्सर सोचते हैं कि वे ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो गए हैं। और इसमें कहा है कि ज्ञानी अगर ब्राह्मण की भी हत्या कर दे, अन्यथा उपाय क्या था? मजबूरी को ब्रह्मचर्य समझ लें, तो भ्रांति उसे कोई पाप नहीं है! और अज्ञानी? किसी शास्त्र में लिखा नहीं 1114
SR No.002410
Book TitleGita Darshan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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