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________________ * श्रद्धा का अंकुरण * कंठ बड़ा ऊपर है, उससे कुछ हृदय बदलता नहीं। और कंठ में | मैं बहुत खोजा, कोई एकाध अज्ञानी मिल जाए। वह मिलता ही नहीं। जिनके ज्ञान अटक जाता है, उनकी फांसी लग जाती है। फांसी में | | सब ज्ञानी हैं! और छोटे-मोटे ज्ञानी नहीं हैं; सब ब्रह्मज्ञानी हैं! लटके रहते हैं वे। उनको वहम भी होता है कि ज्ञान है, और ज्ञान | एक मित्र आए थे कुछ दिन हुए। मैंने उनसे पूछा कि बहुत दिन होता नहीं। बोलने के लिए हो सकता है। दूसरे को बताने के लिए | से दिखाई नहीं पड़ते हैं। क्या करते रहे? हो सकता है। खुद के जीवन के लिए उसका कोई संबंध नहीं होता। उन्होंने कहा, कुछ नहीं। नौकरी-चाकरी मैंने सब छोड़ दी है। जानने का अर्थ स्मृति नहीं है। जानने का अर्थ है, अनुभव। तो | अब तो लोगों को ब्रह्मज्ञान समझाने में लगा रहता हूं। कृष्ण कहते हैं, जो मैं तुझे रहस्य बताऊंगा, काश! तू उसे जान ले, मैंने कहा, तुम्हें हो गया? अनुभव कर ले, तो दुख के सागर से मुक्त हो जा सकता है। उन्होंने कहा, होगा क्यों नहीं? आज तीस साल से सत्संग के पर जानना और जानने में फर्क है। एक जानना है, वह हम सब | सिवाय कुछ किया ही नहीं है। ऐसा एक गुरु नहीं है भारत में, जानते हैं। एक आदमी कहता है, ईश्वर है। जाना उसने बिलकुल जिसके चरणों में मैं नहीं बैठा हूं। सब मुझे हो गया है। अब तो नहीं है। इससे तो बेहतर वह नास्तिक है, जो कहता है, मुझे कुछ | दूसरों को मेरे द्वारा हो रहा है। कई लोग आने लगे हैं, और उनको पता नहीं चलता ईश्वर का। मैं कैसे मानूं? यह नास्तिक शायद | ज्ञान वितरित कर रहा हूं। किसी दिन आस्तिक भी हो जाए! लेकिन वह जो पहला आस्तिक | जिनके पास नहीं है, वे भी वितरित कर सकते हैं। वितरित करने है, जो कहता है, ईश्वर है। क्योंकि उसने सुना है; क्योंकि उसके में कोई कठिनाई नहीं है। खोपड़ी पर बोझ हो जाता है सुन-सुनकर, घर में कहा गया है; क्योंकि परंपरा से बात चली आई है। क्योंकि उसको बांटकर हल्कापन आ जाता है। लेकिन वह ज्ञान नहीं है; वह . उसके पिता ने, उसके गुरु ने कहा है। क्योंकि शास्त्र में पढ़ा है। या जानना नहीं है। भय की वजह से, या मौत के डर से, या सहारे के लिए, वह माने | कृष्ण कहते हैं, जान लेगा अगर तू, तो दुख से मुक्त हो जाएगा। चला जा रहा है। लेकिन वह कहता है, मैं जानता हूं, ईश्वर है। यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा और सब गोपनीयों का भी राजा एवं जानने शब्द का प्रयोग जरा सोचकर करना, ईमानदारी से करना। | अति पवित्र, उत्तम, प्रत्यक्ष फल वाला और धर्मयुक्त है, साधन और जो आदमी जानने का ईमानदार अर्थ सीख जाए, उसकी जिंदगी करने को बड़ा सुगम और अविनाशी है। में क्रांति हो जाती है। लेकिन हम सब बेईमान हैं। जानने के संबंध दो बातें। कृष्ण कहते हैं, श्रेष्ठतम है यह ज्ञान। इससे श्रेष्ठ और में हम बिलकुल बेईमान हैं। कुछ भी नहीं है। यह राजविद्या है; समस्त विद्याओं में श्रेष्ठ। आप जरा एक बार अपनी खोपडी में वापस खोज-बीन करना। क्योंकि और विद्याओं से आदमी अपने अलावा कछ भी जान ले. कितना है, जो आप जानते हैं? तब आपको पता चलेगा कि खुद को नहीं जान पाता। और विद्याओं से आदमी अपने को संभावना जीरो हाथ लगने की है। जीरो भी लग जाए, तो बहुत है। | छोड़कर सब कुछ पा ले, अपने को नहीं उपलब्ध हो पाता। और पाएंगे कि सब सुना हुआ है। जोर से पकड़े बैठे हैं, और डरते भी जब मैं अपने को ही न जान पाऊं, सब भी जान लं: और अपने को हैं कि जांच-पड़ताल की और अगर पता चल गया कि अपना जाना न उपलब्ध हो सकू, और सब पा लूं; तो भी उस पाने और जानने हुआ नहीं है। तो डरते भी हैं। तो जांच-पड़ताल भी नहीं करते। और का अर्थ क्या है? ऐसे लोगों के पास जाते रहते हैं, जो आपकी इस नासमझी को इसलिए कृष्ण कहते हैं, यह परम ज्ञान है, राजविद्या है; दि मजबूत करते रहते हैं। वे कहते हैं, सुनते रहो। सुनते-सुनते हो सुप्रीम नालेज, आर दि सुप्रीम साइंस, परम विज्ञान है। इससे तू जाएगा। स्वयं को जान लेगा। और जो स्वयं को जान लेता है, वह सब जान सुनते-सुनते सिर्फ बहरे हो जाएंगे। और सुनते-सुनते सुनना भी लेता है। बंद हो जाएगा। और सुनते-सुनते आपको वहम पैदा होगा, इलूजन | | साधन करने को बड़ा सुगम और अविनाशी है। पैदा होगा कि सब जान लिया। और यह जो ज्ञान है, यह सनातन है। यह न कभी पैदा हुआ है हमारा मुल्क ऐसे ही ज्ञान से पीड़ित और परेशान है! हम अज्ञान | और न कभी इसका अंत होगा। इसलिए इस ज्ञान से जो संयुक्त हो से इतने पीड़ित नहीं हैं। हमारे मुल्क में अज्ञानी तो कोई है ही नहीं। जाता है, वह भी अविनाशी हो जाता है। और एक बड़ी कीमती बात 177
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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