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________________ * गीता दर्शन भाग-4* कृष्ण उत्तर दे रहे हैं अर्जुन के प्रश्नों का। उस उत्तर में वे कह रहे में गाड़ो, तो वृक्ष निकल आता है। तो बीज अव्यक्त था जरूर, हैं कि यह तो नष्ट होता ही रहता है। यह बहुत विचार की बात है। लेकिन व्यक्त होने को आतुर था। बीज के भीतर भी आतुरता थी वे अर्जुन से कह रहे हैं कि तू इसकी फिक्र करता है कि सामने जो प्रकट होने की। छिपी थी, दिखाई नहीं पड़ती थी, लेकिन थी, आदमी खड़े हैं, मर जाएंगे? ये बहुत बार मर चुके, ये फिर जन्म | बिल्ट-इन थी कहीं। एक-एक पत्ता वृक्ष का छिपा था भीतर बीज लेंगे, ये फिर मरते रहेंगे। यह मरना और जन्म लेना प्रकृति का के और आतुर था कि प्रकट हो जाऊं। पानी गिरे, कोई खाद डाल हिस्सा है। और इन आदमियों की तो बात ही छोड़, यह पूरी प्रकृति के, कोई मिट्टी में दबा दे, टूट जाऊं, खिलं, बड़ा हो जाऊं। और भी न मालूम कितनी दफे बन चुकी है और न मालूम कितनी दफे फिर एक बीज करोड़ बीज बन जाए। वे करोड़ बीज भी कहीं भीतर मिट चुकी है। अनंत है यह प्रक्रिया। यह सब होता ही रहा है। बनता | छिपे हैं। ही रहता है, मिटता ही रहता है। वासना बनाती है, फिर वासना ही | तो बीज अव्यक्त है, अनमैनिफेस्ट है, लेकिन फिर व्यक्त तो हो मिटा देती है। तू इसकी चिंता में मत पड़। और तू इसकी चिंता को | | ही जाता है। इसलिए इसे पूर्ण अव्यक्त नहीं कहा जा सकता। जो धर्म मत समझ। तू यह मत सोच कि मैं इनको मारने से बच | व्यक्त हो ही जाता है, वह कोई ज्यादा अव्यक्त नहीं है। जाऊंगा, तो ये मरेंगे नहीं। | एक सूफी फकीर हुआ है, बायजीद। एक धनपति उसके पीछे कृष्ण कहते हैं, तू सिर्फ निमित्त है, मृत्यु तो होकर ही रहेगी। तू पड़ा है। रोज उसके पैर दाबता है और कहता है, राज बता दो। टेल अपने को कर्ता मत मान। तू मारने वाला है, ऐसा भी मत मान। और | | मी दि सीक्रेट। तुम्हारे जीवन का राज बता दो। बायजीद उससे तू भाग जाएगा, तो तू बचाने वाला है, ऐसा भी मत मान। तू कर्ता कहता है, जो राज है, अगर वह बता दिया जाए, तो राज कैसे नहीं है। इनकी मृत्यु इनकी जन्म की घड़ी में ही लिखी है। ये जिस रहेगा? सीक्रेट का मतलब ही यह है कि जिसे मैं तुझे बताऊंगा दिन जन्मे, उसी दिन मृत्यु को साथ लेकर जन्मे हैं। मृत्यु इनके भीतर नहीं। जिसे मैंने कभी किसी को नहीं बताया। तभी तो वह राज है, ही बड़ी हो रही है। तू शायद निमित्त बनेगा इनकी मृत्यु के प्रकट अन्यथा फिर राज कैसे रहेगा? होने का। तू नहीं बनेगा, तो कोई और बनेगा। कोई भी नहीं बनेगा, | | लेकिन वह आदमी मानता ही नहीं। वर्ष बीतने को आ गया। वह तो भी मृत्यु घटित होगी। मृत्यु से बचने का उपाय नहीं, क्योंकि ये है कि रोज पैर दबाए जाता है। वह कहता है बायजीद को कि बता जन्म गए। जो जन्म गया, वह मरेगा ही। और इनकी तो बात ही | दो राज। तो बायजीद ने एक दिन कहा कि तो ठीक है, आज बताए छोड़ तू, यह जो पूरा ब्रह्मांड तुझे दिखाई पड़ता है, यह भी बनता देता हूं, लेकिन एक शर्त रहेगी। क्या तुम मेरे राज को राज रखोगे? और बिखरता रहता है। आदमी ही पैदा नहीं होता, तारे भी पैदा होते | | किसी को बताओगे नहीं? विल यू मेनटेन दि सीक्रेट ऐज सीक्रेट? रहते और बिखरते रहते हैं। तारे ही पैदा नहीं होते और बिखरते। कसम खाओ कि क्या तुम राज को राज रखोगे और किसी को रहते, यह पूरा अस्तित्व भी फैलता और सिकुड़ता है, बनता और बताओगे नहीं। मिटता है, व्यक्त होता और अव्यक्त होता रहता है। तू इस चिंता में ___ उस आदमी ने कहा, कसम परमात्मा की कि राज को राज रखूगा मत पड़। और किसी को बताऊंगा नहीं। बायजीद ने कहा, शाबाश, अगर तू लेकिन कृष्ण कहते हैं, मैं तुझे उसकी भी खबर देता हूं, उस | अपनी कसम रख सकता है, तो मैं भी अपनी कसम रखंगा और अव्यक्त से भी परे...जिस अव्यक्त से यह ब्रह्मांड पैदा होता है, राज को बताऊंगा नहीं। और अगर मैं ही तोड़ दूंगा, तो तेरा कैसे अदृश्य से, अगोचर से यह ब्रह्मांड पैदा होता है, वह भी अव्यक्त | भरोसा करूं कि त नहीं बताएगा। पूरा अव्यक्त नहीं है। तो जो प्रकट हो जाए, वह अप्रकट नाम मात्र को था, जस्ट फार यह बहुत सूक्ष्म दर्शन की बात है, बारीक है, नाजुक भी। | दि नेम्स सेक। बीज नाम मात्र को अप्रकट है। इतनी तो तैयारी दिखा कृष्ण कहते हैं, जिसे मैंने अभी अव्यक्त कहा एक क्षण पहले, | रहा है प्रकट होने की। ऐसा आतुर है। नाम मात्र को अव्यक्त है। अनमैनिफेस्टेड, वह भी पूर्ण अव्यक्त नहीं है, क्योंकि मैनिफेस्ट तो | तो अभी जिस अव्यक्त की बात कही, कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, हो ही जाता है, प्रकट तो हो ही जाता है। वह अव्यक्त माना है। लेकिन नाम मात्र को, क्योंकि व्यक्त हो बीज है, बीज में वृक्ष अव्यक्त है, माना। लेकिन बीज को जमीन जाता है। माना कि अदृश्य है, लेकिन दृश्य हो जाता है। 100
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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