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________________ << ज्ञान विजय है - एक नव-संन्यास में दीक्षित संन्यासिनी ने—वह अमेरिका से | प्रौढ़ व्यक्ति जानता है कि सब उत्तर मनुष्य के द्वारा निर्मित हैं आई है-उसने मुझसे पूछा चार-छः दिन पहले कि व्हाय आई हैव | | और अस्तित्व निरुत्तर है। अस्तित्व निरुत्तर है, इसीलिए अस्तित्व कम टु यू-मैं तुम्हारे पास क्यों आ गई? मैंने कहा कि तू मेरे पास | | रहस्य है। न आती, तो पूछ सकती थी, व्हाय आई हैव नाट कम टु यू? इसका रहस्य का मतलब होता है, निरुत्तर। जहां से कोई उत्तर कभी नहीं क्या मतलब है! किसी और के पास पहुंचती, तो तू पूछती कि आएगा। अल्टिमेट आंसर कोई भी नहीं है. कोई चरम उत्तर नहीं है। व्हाय? आपके पास क्यों आ गई? यह प्रश्न तो कहीं भी सार्थक | कोई नहीं कह सकता कि बस, यह उत्तर हो गया, दिस इज़ दि हो सकता था-कहीं भी–इसलिए व्यर्थ है। आंसर। कोई ऐसा नहीं है। देयर आर आंसर्स, बट नो आंसर। उत्तर समझें। यह प्रश्न कहीं भी सार्थक हो सकता था, इसलिए व्यर्थ | | हैं, लेकिन कोई उत्तर नहीं है, जो कह दे कि बस, यह उत्तर हो गया; है। जो प्रश्न किसी जगह सार्थक होता है, सब कहीं नहीं, वही | अब कोई सवाल उठने का सवाल न रहा। कुतूहल पैदा होता ही सार्थक है। जो प्रश्न सभी जगह लग सकता है, उसका कोई अर्थ | | चला जाएगा। और हर नया उत्तर नए प्रश्नों के कुतूहल पैदा कर नहीं रह जाता। उसका कोई भी अर्थ नहीं रह जाता। जाता है। प्रौढ़ व्यक्ति जानता है, जगत ऐसा है। इसलिए प्रौढ़ सभ्यताओं ___ जब कोई व्यक्ति इस रहस्य को समझ लेता है कि किसी प्रश्न ने विज्ञान को जन्म नहीं दिया, प्रौढ़ सभ्यताओं ने धर्म को जन्म का कोई अंतिम उत्तर नहीं है, तब वह प्रश्न ही छोड़ देता है। उस दिया। जब भी सभ्यता अपने प्राथमिक चरण में होती है, तो विज्ञान प्रश्न-गिरी हुई स्थिति का नाम, विज्ञान-ज्ञान से तृप्त हो जाना है। को जन्म देती है; और जब सभ्यता अपने शिखर पर पहुंचती है, तो वह व्यक्ति प्रौढ़ हुआ। उस व्यक्ति का अब कोई कुतूहल न रहा। धर्म को जन्म देती है। धर्म उस प्रौढ़ मस्तिष्क की खबर है, जो अब वह राह से गुजर जाता है बिना पूछे, क्योंकि वह जानता है कि कहता है, चीजें ऐसी हैं—थिंग्स आर सच। पूछ-पूछकर भी कुछ नहीं पाया जा सकता है। और सब उत्तर सिर्फ कुतूहल व्यर्थ है, बचकाना है। बच्चे करें, ठीक। कुतूहल | नए प्रश्नों को जन्म देने वाले सिद्ध होते हैं। न वह अब यह पूछता बचपन है। है कि मैं कौन हूं? न वह अब यह पूछता है कि तू कौन है? वह तो जब कृष्ण कहते हैं, ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है जो, जिसके अब पूछता ही नहीं। कोई प्रश्न न रहे। उसका यह मतलब नहीं है कि जिसको सब उत्तर क्या होगा? जब कोई नहीं पूछता है, तब कौन-सी घटना मिल गए। सब उत्तर कभी किसी को मिलने वाले नहीं हैं। और घटेगी? जब चित्त कोई भी प्रश्न नहीं पछता. तब बडे रहस्य की अगर किसी दिन सब उत्तर मिल गए, तो उससे खतरनाक कोई | | बात है। जब कोई भी प्रश्न नहीं होता चित्त में, सब प्रश्न गिर जाते स्थिति न होगी। जिस दिन सब उत्तर मिल जाएंगे, उस दिन मरने के | | हैं, तब चित्त इतना मौन होता है, इतना शांत होता है कि किसी दूसरे सिवाय कोई उपाय नहीं रह जाएगा। और जिस दिन सब उत्तर मिल मार्ग से जीवन के रहस्य के साथ एक हो जाता है। उत्तर नहीं जाएंगे, उसका यही अर्थ होगा कि परमात्मा सीमित है, अनंत नहीं मिलता, लेकिन जीवन मिल जाता है। उत्तर नहीं मिलता, लेकिन है, असीम नहीं है। जो असीम है सत्य, उसके बाबत सब उत्तर कभी | | अस्तित्व मिल जाता है। वही उत्तर है। रहस्य के साथ आत्मसात हो नहीं मिल सकते। जाता है। और सब उत्तर टेंटेटिव हैं, सब उत्तर कामचलाऊ हैं। कल नए एक ढंग है, पूछकर जानने का; और एक ढंग है, न पूछकर प्रश्न खड़े हो जाएंगे और सब उत्तर बिखर जाते हैं। जब न्यूटन एक | जानने का। न पूछकर जानने का ढंग, धर्म का ढंग है। पूछकर उत्तर देता है, तो बिलकुल सही मालूम पड़ता है। बीस-पच्चीस | | जानने का ढंग, विज्ञान का ढंग है। साल बीत नहीं पाते हैं कि दूसरा आदमी नए सवाल खड़े कर देता | लेकिन कृष्ण कहते हैं, ज्ञान-विज्ञान दोनों से जो तृप्त हो गया। है और न्यूटन के सब उत्तर बिखर जाते हैं। फिर आइंस्टीन उत्तर देता | प्रौढ़ हो गया, मैच्योर हुआ, अब पूछता ही नहीं। क्योंकि कहता है, है, पुराने उत्तर बिखर जाते हैं। अब तो हर दो साल में उत्तर बिखर सब पूछना बच्चों का पूछना है। और सब उत्तर थोड़े ज्यादा उम्र के जाते हैं, नए सवाल खड़े हो जाते हैं। सब पुराने उत्तर एकदम गिर | बच्चों के द्वारा दिए गए उत्तर हैं। और कोई फर्क नहीं है। थोड़ी छोटी जाते हैं। उम्र के बच्चे सवाल पूछते हैं; थोड़ी बड़ी उम्र के बच्चे सवालों का 169
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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