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________________ धर्म का सार : शरणागति स्वभावतः, हमारा अहंकार इसी तरह के मतलब लेता है। वह मतलब की बातें पकड़ लेता है। वह कहता है, किसी की शरण मत ओ। तो वह कहता है, ठीक यही तो हम कहते हैं, किसी की शरण जाने की कोई जरूरत नहीं है। उस युवक ने देखा कि यह क्या हो रहा है ! हजारों भिक्षु, और बुद्ध के चरणों में सिर रखते हैं, और कहते हैं, बुद्धं शरणं गच्छामि, बुद्ध की शरण जाता हूं। उस युवक ने बुद्ध के पास आकर कहा, माफ करिए! आप तो कहते हैं, अप्प दीपो भव, अपने प्रकाश स्वयं बनो; खुद खोजो सत्य को । और ये लोग क्या कर रहे हैं! ये कहते हैं, बुद्धं शरणं गच्छामि ; हम बुद्ध की शरण जाते हैं ! तो बुद्ध ने कहा, तू पहले शरण जा, तभी तो तू हो पाएगा। अभी तू है ही नहीं। अभी जिसे तूने समझा है मैं, वही तो तेरे होने में बाधा है । उस मैं को हम तोड़ दें। हां, उस दिन मैं मना कर दूंगा कि अब शरण मत जा, जिस दिन तेरे भीतर कोई शरण जाने को न बचे। उस दिन मैं कहूंगा, अब शरण जाने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन जब तक तेरे भीतर कोई शरण जाने के लिए बचा है, तब तक तू शरण जा । इन दोनों बातों में बुद्ध ने कहा, कोई विरोध नहीं है। कृष्ण ने कहा है, शरण । कृष्ण की पूरी गीता का सार है, शरणागति । महावीर ने ठीक उलटी बात कही है। महावीर ने कहा है, अशरण; किसी की शरण मत जाना। शब्द बिलकुल उलटे मालूम पड़ते हैं। लेकिन महावीर कहते हैं, अशरण तभी पूरा होगा, जब मैंन बचे। लेकिन मैं अगर भीतर है, तो अशरण कभी पूरा नहीं हो सकता। कृष्ण भी यही कहते हैं, शरणागति से मैं मिट जाएगा। और तब तो शरण जाने को कोई नहीं बचता । किसकी जाओगे ? कौन जाएगा? दोनों खो जाते हैं। बूंद सागर में गिर जाती है और एक हो है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, जो शरण चला जाता है, वह सब कुछ पा लेता है। साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः । प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ।। ३० ।। और जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव के सहित तथा अधियज्ञ के सहित सब का आत्मरूप मेरे को जानते हैं, वे > 451 युक्तचित्त वाले पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही जानते हैं अर्थात प्राप्त होते हैं। छो टा-सा सूत्र; आखिरी और बहुत कीमती । कृष्ण कहते हैं, जो सब भूतों में मुझे ही जानते हैं, वे अंधकार में भी मुझे ही जानते हैं। हम सबने सुना है कि परमात्मा प्रकाश-स्वरूप है। हम सबने सुना है कि परमात्मा जीवन स्वरूप है। हम सबने सुना है कि परमात्मा आनंद स्वरूप है। कृष्ण यहां कहते हैं, लेकिन जो मुझे सबमें देख लेता है, वह अंधकार में भी मुझे ही देखता है। वह दुख में भी मुझे ही देखता है, वह मृत्यु में भी मुझे देखता है। और ध्यान रहे, जब तक मृत्यु में भी परमात्मा न दिखे, तब तक अमृत उपलब्ध नहीं होता है। और ध्यान रहे, जब तक दुख में भी परमात्मा न दिखे, तब तक आनंद उपलब्ध नहीं होता है। और ध्यान रहे, जब तक अंधकार भी प्रकाश न हो जाए, तब तक परमात्मा उपलब्ध नहीं होता है। यह तो हम नासमझों की मांग है कि हे प्रभु, हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ ले चल। यह तो हम नासमझों की मांग है। क्योंकि हम जिंदगी को दो हिस्सों में तोड़कर देखते हैं। हम कहते हैं, हे प्रभु, हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चल । हम कहते हैं, हे प्रभु, हमें भय से अभय की ओर ले चल । दुख से सुख की ओर ले चल, आनंद | की ओर ले चल | ये तो हमारी प्रार्थनाएं हैं, उनकी प्रार्थनाएं, जिन्हें | कुछ भी पता नहीं है, जो जिंदगी को दो टुकड़ों में तोड़ लेते हैं। कृष्ण का वचन बड़ा अदभुत है। हम सबने सुना है ऋषि का वचन, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल । और कृष्ण कहते हैं, जो सब भूतों में मुझे देखते हैं, वे अंधकार में भी मुझे ही देखते हैं। अगर ठीक प्रार्थना हो, तो वह ऐसी होगी कि हे प्रभु, अंधकार में भी मुझे तू दिखाई पड़े। दुख में भी तू मुझे दिखाई पड़े। मृत्यु में भी तू मुझे दिखाई पड़े। अमृत की मेरी चाह नहीं मृत्यु में भी तू मुझे दिखाई पड़े। आनंद की मेरी चाह नहीं; दुख में भी तू ही मुझे मिले। प्रकाश की मेरी मांग नहीं; अंधकार भी मेरे लिए प्रकाश | यह मांग पहली मांग से ज्यादा गहरी है; और कृष्ण जो कहते हैं, उसके अनुकूल है। क्योंकि जगत में तत्व एक है, दो नहीं । और जिसे हम अंधकार कहते हैं, वह केवल प्रकाश का एक रूप है। और जिसे हम मृत्यु कहते हैं, वह अमृत का एक रूपांतरण है। और
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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