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________________ गीता दर्शन भाग-3 . कृष्ण कहते हैं, जिनके मन में काम-द्वेष नहीं है, जो किसी के अज्ञात, अनंत शक्ति सब किए चली जाती है। मैं व्यर्थ अपने को लिए घृणा से नहीं भरे हैं, वे सरलता से ही मेरे भजन में लीन हो | बीच में क्यों लिए फिरूं! मैं अपने को छोड़ दूं; मैं बह जाऊं। इस पाते हैं। और उन ज्ञानियों को मैं उपलब्ध होता हूं। अनंत के साथ संघर्ष छोड़ दूं; इस अनंत के साथ सहयोगी हो (वर्षा जारी है और भगवान श्री अपना बोलना जारी रखते हैं।) जाऊं; इस अनंत के चरणों में अपने को डाल दूं और कह दूं, जो इधर घंटेभर अज्ञानी मत बनें। घंटेभर के लिए कम से कम ज्ञानी | तेरी मर्जी। बन जाएं। और एक क्षण के लिए भी कोई ज्ञान का आनंद ले ले, | एक बार भी अगर कोई पूर्ण हृदय से कह पाए, जो तेरी मर्जी, तो दबारा अज्ञानी होने की उसकी तैयारी न होगी। वह हर जगह प्रभ उसके जीवन से दुख विदा हो जाता है। मेरी मर्जी दुख है; उसकी के स्मरण को खोज पाएगा। मर्जी कभी भी दुख नहीं है। बूंद आपके ऊपर गिर रही है, वह सिर्फ पानी नहीं है, वह ऐसा नहीं कि फिर पैर में कांटे न गड़ेंगे, और ऐसा भी नहीं कि परमात्मा भी है। क्योंकि परमात्मा के सिवाय इस जगत में कुछ भी फिर कोई बीमारी न आएगी, और ऐसा भी नहीं कि फिर मृत्यु न नहीं है। जब बूंद आपके सिर पर गिरे और आपकी आंखों से नीचे आएगी। लेकिन मजे की बात यह है कि कांटे तो फिर भी पैर में उतरे, तो जानना कि परमात्मा अपनी पूरी शीतलता को लेकर गड़ेंगे, लेकिन कांटे नहीं मालूम पड़ेंगे। बीमारी तो फिर भी आएगी, आपके ऊपर गिरा है और नीचे उतरा है। और आप पाएंगे कि यहां लेकिन आप अछूते रह जाएंगे। मौत तो फिर भी घटेगी, लेकिन आप बैठे-बैठे इस वर्षा के क्षण में भी एक प्रार्थना की गहराई आपके नहीं मर सकेंगे। घटनाएं बाहर रह जाएंगी, आप पार हो जाएंगे। हृदय तक पहुंच गई है। और वह गहराई काम की हो जाएगी। ये | असल में मैं के अतिरिक्त इस जगत में और कोई दुखं नहीं है, कपड़े तो सूख जाएंगे, उस गहराई का सूखना मुश्किल है। और कोई पीड़ा नहीं है। और हम इतने मैं से भरे हैं कि अगर परमात्मा हमारे भीतर प्रवेश भी करना चाहे. तो जगह न मिल सकेगी। रोएं-रोएं से मैं बोल रहा है। वह मैं ही हमें समर्पित नहीं जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये। होने देता। वह मैं ही हमें कहीं शरण, सिर नहीं रखने देता। वह मैं ते ब्रह्म तद्विदः कृत्स्नमध्यात्म कर्म चाखिलम् ।। २९ ।। | कहता है कि तुम, और सिर झुकाओगे? वह मैं कहता है, सारी और जो मेरे शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए। दुनिया से हम ही सिर झुकवा लेंगे। यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को तथा संपूर्ण अध्यात्म __ मैं नेपोलियन बोनापार्ट के बचपन की कुछ किताबें देखता था। को और संपूर्ण कर्म को जानते हैं। नेपोलियन बोनापार्ट जब पढ़ता था, तो अपनी एक स्कूल की एक्सरसाइज कापी में, एक छोटी-सी कापी में उसने एक वाक्य लिखा है। भूगोल के बाबत जानकारी ले रहा था। किसलिए? जो मेरी शरण होकर! भगोल के बाबत जानकारी ले रहा था कि सारी दनिया जीतनी है. इस छोटे-से शब्द शरण में, धर्म का समस्त सार तो भूगोल तो जानना ही पड़ेगा। बचपन से ही नेपोलियन के दिमाग समाया हुआ है। यह शरण इस पूरब में खोजी गई | | में सारी दुनिया को जीतने का खयाल था, तो भूगोल की जानकारी समस्त साधनाओं की आधारभूत बात है। जरूरी थी। एक बड़ी मजेदार घटना घटी। और इस जिंदगी में बड़ी जो मेरी शरण होकर! मजेदार घटनाएं घटती ही हैं। जिंदगी बड़ी गहरी मजाक है। शरण होने का अर्थ है, जो अपने को इतना असहाय पाता है, | सेंट हेलेना का छोटा-सा द्वीप है, बहुत छोटा। तो नक्शे पर इतना हेल्पलेस। और जो पाता है, मेरे किए कुछ भी न हो सकेगा। नेपोलियन बोनापार्ट ने उसके चारों तरफ एक गोल लकीर खींच दी और जो पाता है, मेरे किए कभी कुछ हुआ नहीं। और जो पाता है | और लिख दिया, यह इतनी छोटी जगह है कि इसे जीतने की कोई कि मैं हूं न होने के बराबर, नहीं ही हूं। जो पाता है, मैं कुछ भी नहीं जरूरत नहीं। और मजे की बात यह है कि नेपोलियन जब हारा, तो हूं। न श्वास मेरे कारण चलती है, न खून मेरे कारण बहता है; न सेंट हेलेना के द्वीप में ही बंद किया गया, कैदी किया गया। जिस बादल मेरे कारण इकट्ठे होते हैं, न वर्षा मेरी वजह से होती है। जगह को उसने जीतने के लिए छोड़ रखा था कि बेकार है; एक 448
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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