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________________ < गीता दर्शन भाग-3> खड़ा है, हम जा रहे होते हैं, हम चल रहे होते हैं। हमारी स्थिति | जैसे आदमी को उस परम चेतना की स्थिति में, उस समाधि की दशा करीब-करीब वैसी है, जैसी ट्रेन में कभी छोटा बच्चा पहली दफा में, वर्तमान, अतीत, भविष्य का फासला गिर जाता है। बैठता है, तो उसे लगता है कि पास के वृक्ष पीछे जा रहे हैं। ट्रेन | समझें कि मैं एक बहुत बड़े दरख्त पर ऊपर बैठ गया हूं। आप चलती है आगे की तरफ, बच्चा ही आगे जा रहा है, लेकिन | दरख्त के नीचे बैठे हैं। मैं आपसे चिल्लाकर कहता हूं कि एक खिड़कियों से पीछे की तरफ भागते हुए वृक्ष दिखाई पड़ते हैं। और | बैलगाड़ी रास्ते पर आ रही है। आप कहते हैं, मझे नहीं दिखाई पता लगता है कि वृक्ष पीछे जा रहे हैं। पड़ती; भविष्य में होगी। लेकिन मुझे दिखाई पड़ती है। मैं थोड़ा हम सब कहते हैं कि समय जा रहा है। लेकिन असलियत | आपसे ऊंचाई पर बैठा हआ है। मैं कहता है, भविष्य में नहीं है, बिलकुल उलटी है। हम जा रहे हैं; समय अपनी जगह खड़ा है। वर्तमान में है। बैलगाड़ी आ गई है रास्ते पर। आप कहते हैं, कहीं इसे थोड़ा समझना पड़ेगा। नहीं दिखाई पड़ती। अभी नहीं आई है; भविष्य में है। समय अपनी ही जगह खड़ा है। समय कहीं नहीं जाता। समय फिर थोड़ी देर में बैलगाड़ी आपके सामने आ जाती है। आप जाएगा कैसे? जाएगा कहां? कल निकल गया, अब वह कहां कहते हैं, आ गई। वर्तमान हो गई। फिर थोड़ी देर बाद बैलगाड़ी . जाएगा? कहीं अस्तित्व में कोई जगह होनी चाहिए न! कल जो बीत | | आगे निकल जाती है। आप कहते हैं, अतीत हो गई; अब दिखाई गया, वह कहां इकट्ठा होगा? और कल जो अभी नहीं आया है, नहीं पड़ती। लेकिन मैं आपसे ऊपर के दरख्त से कहता हूं कि अभी वह कहां से आ रहा है? आने के लिए उसे कहीं होना चाहिए; और भी वर्तमान है; दिखाई पड़ती है। जाने के लिए भी कहीं पहुंच जाना चाहिए। इसका तो मतलब यह जितनी चेतना की ऊंचाई होगी, उतना ही वर्तमान, अंतीत और होगा कि पीछे एक अतीत इकट्ठा हो रहा है करोड़ों, अरबों, खरबों | भविष्य का फासला गिरता जाएगा। और जिस दिन कृष्ण जैसी परम वर्षों का। सब इकट्ठा होगा वहां। और आगे, भविष्य आगे है, वह | ऊंचाई होती है चेतना की, उस दिन सब चीजें जो हो गईं, दिखाई चला आ रहा है। पड़ती हैं; सब चीजें जो होने वाली हैं, दिखाई पड़ती हैं; सब चीजें यह नहीं हो सकता। न तो भविष्य आ रहा है, न अतीत चला जो हो रही हैं, दिखाई पड़ती हैं। गया है। सिर्फ हम गुजर रहे हैं। जैसे एक आदमी रास्ते से गुजर रहा इस अनुभव के आधार पर ही समस्त ज्योतिष का विकास हुआ है। लेकिन ट्रैफिक, वन वे ट्रैफिक है। क्योंकि हम समय में पीछे | था। लेकिन अब तो बाजार में कोई चार आने देकर ज्योतिषी को नहीं जा सकते हैं, इसलिए हमें लगता है कि जो चला गया, वह खो | दिखा रहा है। वह बेचारा कुछ बहुत नहीं बता सकता। उसे कुछ गया। चूंकि हम समय में आगे छलांग नहीं लगा सकते हैं, इसलिए पता नहीं है। हमें लगता है कि भविष्य अभी आया नहीं है। भविष्य आ चुका है | ज्योतिष का सारा विकास समाधिस्थ चेतना से हुआ था। उन उतना ही; भविष्य मौजूद है। लोगों को, जिनको समय के सब फासले मिट गए थे, जिन्हें सब मैं निकल रहा हूं एक रास्ते से। आगे का मकान मुझे दिखाई नहीं दिखाई पड़ रहा था। ज्योतिष ज्योतिर्मय चेतना के अनुभव से पड़ रहा है अभी, लेकिन वह अपनी जगह मौजूद है। थोड़ी देर बाद निकला था। मैं उसके सामने पहुंचूंगा। वह मुझे दिखाई पड़ेगा। पीछे का मकान, कृष्ण कहते हैं, मुझे सब दिखाई पड़ता है। लेकिन जो अज्ञानी जो थोड़ी देर पहले मुझे दिखाई पड़ता था, अब दिखाई नहीं पड़ हैं, वे मुझे नहीं देख पा रहे हैं, मैं उन सबको देख रहा हूं। रहा; वह खो गया। लेकिन खो कहीं नहीं गया; वह अपनी जगह । अब कृष्ण को भलीभांति दिखाई पड़ रहा है कि कौरव हार मौजूद है। | जाएंगे। यह बैलगाड़ी कृष्ण के लिए सामने आ गई है। अर्जुन को समय चलता नहीं, समय की चलने की धारणा ट्रेन में गुजरने दिखाई नहीं पड़ रहा है कि कौरव हार जाएंगे कि पांडव जीत जाएंगे। जैसी धारणा है, जैसे वृक्ष चलते हुए मालूम पड़ते हैं। आदमी | यह दुर्योधन को भी नहीं दिखाई पड़ रहा है कि कौरव हार जाएंगे चलता है, समय नहीं चलता है। | और पांडव जीत जाएंगे। अब यह अर्जुन भी डरा है कि पता नहीं इसलिए कृष्ण जब कहते हैं, मैं सब जानता हूं, वह जो पीछे, हम हार न जाएं! अभी कौरव भी इस खयाल में हैं कि हम जीत वह जो आगे, वह जो अभी; उसका कुल मतलब यह है कि कृष्ण लेंगे, क्योंकि शक्ति हमारे पास ज्यादा है। एक आदमी वहां मौजूद 442
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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