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________________ < मुखौटों से मुक्ति - दाम से भी चलता है; कोई हर्जा नहीं! उसके भीतर कुछ बचा भी | तो देवता के पीछे से घटनाएं घटती हैं, इसमें कोई शक नहीं है। है, यह संदिग्ध है। सब सड़ चुका होगा कभी का। लेकिन उसके घटने का कारण बहुत दूसरा है। वह दया है किन्हीं लेकिन आदमी कितना कुशल है। उसने नारियल खोजा; उसने | शुभ आत्माओं की। सिंदूर खोजा। सिंदूर-खून। खून अपने प्राणों का जो लगाए; वह लेकिन कृष्ण जिस परम उपलब्धि की बात कर रहे हैं, उसके प्रतीक है कि अपने खून को जो चढ़ा दे। तो उसने देखा, खून से लिए तो देवताओं के पास जाने से नहीं होगा। क्योंकि कोई कितनी मिलती-जुलती चीज बाजार में कोई मिलती है ? मिलता है। सिंदूर । ही शुभ आत्मा क्यों न हो, किसी को परमात्मा नहीं दिला सकती। मिल गया। उसने सिंदूर लगा दिया। नारियल चढ़ा दिया। हां, धन दिला सकती है। वह कोई बड़ी कठिन बात नहीं है। दो-चार-आठ आने में निपटाकर वह अपने घर वापस आया। नौकरी दिला सकती है। किसी की शादी करवा सकती है। किसी निश्चित, यह पूजा परमात्मा तक नहीं पहुंचती। यह पूजा सिर्फ की बीमारी ठीक करवा सकती है। वह कोई कठिन बात नहीं है। जो हमारी वासनाओं की सेवा है। और यह आपको कहूं कि इसमें आदमी कर सकता है, वही अच्छी आत्मा भी कर सकती है, कभी-कभी परिणाम आते हैं, इसलिए और कठिनाई है। ऐसा नहीं सरलता से। है कि यह चूंकि बिलकुल थोथी है, इसमें कभी परिणाम नहीं आते। लेकिन परमात्मा से कोई अच्छी आत्मा आपको मिलवा नहीं इसमें परिणाम आते हैं। उसी से तो झंझट है। अगर परिणाम सकती। परमात्मा से मिलने तो आपको ही जाना पड़ेगा। और चौथे बिलकुल न आते होते, तो आदमी कभी का ऊब गया होता। तरह के ज्ञानी होकर जाना पड़ेगा, तो ही आप पहुंच पाएंगे। परिणाम आते हैं। वासनाओं से हटे चित्त, आसक्तियों से टूटे चित्त, ज्ञान में थिर. परिणाम इसलिए आते हैं कि जब भी आप किसी देवता की पूजा | हो, समर्पित एकीभाव से प्रभु की तरफ भजन करे, दौड़े, गति करे, 'शुरू करते हैं, या कोई देवता निर्मित कर लेते हैं...। अक्सर देवता तो एक दिन भक्त भगवान हो जाता है। इस तरह निर्मित होते हैं, कोई आदमी मरा, कोई संत मरा, कोई सब भक्त भगवान हैं। उन्हें पता हो, न पता हो। फर्क पता होने फकीर मरा. कोई महात्मा मरा: वेदी बन गई: मर्ति बन गई। कछ का और न पता होने का है। लेकिन कोई भक्त भगवान से वंचित आस-पास पूजा-प्रार्थना शुरू हो गई। देवता निर्मित हो गया। नहीं है। प्रत्येक भक्त भगवान है। कभी जब ऐसा कोई देवता निर्मित हो जाता है, तो परिणाम भी आज इतना ही। आते हैं। क्योंकि बहुत-से अच्छे लोग, जिनकी आत्माएं लेकिन उठेंगे नहीं पांच मिनट। यह प्रार्थना किसी आर्त कारण से आस-पास भटकने लगती हैं, अशरीरी हो जाती हैं, आपके द्वारा नहीं की जा रही है। ये संन्यासी किसी दुख में नहीं हैं। और न ये किसी की गई प्रार्थनाओं में सहायता पहुंचा सकते हैं। वह सहायता उनकी लोभ और किसी मांग के लिए परमात्मा से प्रार्थना कर रहे हैं। एक दया से निकलती है। लेकिन आपको मिल जाती है सहायता. तो इनका आनंद का भाव है उसे धन्यवाद देने के लिए। आप भी आप सोचते हैं कि देवता ने सहायता की, तो प्रार्थना करता चला सम्मिलित हो जाएं। और प्रार्थना में भी जो कंजूसी करे, उससे कंजूस जाऊं, करता चला जाऊं। आदमी खोजना बहुत मुश्किल है। थोड़ी कंजूसी न करें। आपके हर देवता के आस-पास ऐसी आत्माएं मौजूद हैं, जो आपको सहायता कर सकती हैं। भले लोगों की आत्माएं हैं। देखें, एक आदमी परेशान आया है, उसकी लड़की की शादी नहीं हो रही है। कोई मूर्ति सहायता नहीं करेगी, कोई नारियल सहायता नहीं करेगा। लेकिन उस मूर्ति और उस मंदिर के वातावरण में निवास करने वाली कोई भली आत्मा सहायता कर सकती है। और वह सहायता आपको मिल जाए, तो आपका तो गणित पूरा हो गया कि मेरी मांग पूरी हुई, मेरी प्रार्थना पूरी हुई, देवता सच्चा है। अब तो इसको कभी छोड़ना नहीं है। फिर आप उसको पकड़े चले जाते हैं। भी उसमें 423
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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