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________________ गीता दर्शन भाग-3 हैं, तब पानी की तरह हो जाता है। और अगर आप कुछ धन पाने में समर्थ हो गए, कुछ पद पाने में सफल हो गए, कुछ स्कूल से शिक्षा जुटा ली, कुछ कूड़ा-कबाड़ इकट्ठा करने में अगर आप सफल हो गए, तो फिर आपका पानी बिलकुल बर्फ, ठोस पत्थर के बर्फ की तरह जम जाता है, फ्रोजन। फिर वह साफ दिखाई पड़ने लगता है। दिखाई ही नहीं पड़ने लगता है, गड़ने लगता है दूसरों को । और जब तक अहंकार दूसरे को गड़ने न लगे, तब तक आपको मजा नहीं आता। तब तक मजा आ नहीं सकता। जब तक आपका अहंकार दूसरे की छाती में चुभने न लगे, तब तक मजा नहीं आता। मजा तभी आता है, जब दूसरे की छाती में घाव बनाने लगे। और दूसरा कुछ भी न कर पाए, तड़फकर रह जाए, और आपका अहंकार उसकी छाती में घाव बनाए। तब आप बिलकुल विनम्र हो सकते हैं। तब आप कह सकते हैं, मैं तो कुछ भी नहीं हूं। भीतर मजा ले सकते हैं उसकी छाती में चुभने का, और ऊपर से हाथ जोड़कर कह सकते हैं कि मैं तो कुछ भी नहीं हूं, सीधा-सादा आदमी हूं! यह जो हमारे संकल्पों की, अहंकारों की, वासनाओं की अंतर्धारा है, इस अंतर्धारा को ही विसर्जित कोई करे, तो संन्यास उपलब्ध होता है। इसलिए संन्यास एक विज्ञान है। एक-एक इंच विज्ञान है। संन्यास कोई ऐसी बात नहीं है कि आप कहीं अंधेरे में पड़ी कोई चीज है कि बस उठा लिए। संन्यास एक विज्ञान है, एक साइंस है। और आपके पूरे चित्त का रूपांतरण हो, एक-एक इंच आपका चित्त बदले, आधार से बदले शिखर तक, तभी संन्यास फलित होता है। आधार क्या है? आधार है फल की आकांक्षा । प्रक्रिया क्या है? प्रक्रिया है संकल्प । उपलब्धि क्या है ? उपलब्धि है अहंकार। ये तीन शब्द खयाल ले लें : फल की आकांक्षा, संकल्प की प्रक्रिया, अहंकार की सिद्धि । आधार में फल की आकांक्षा, मार्ग में संकल्पों की दौड़, अंत में अहंकार की सिद्धि । यह हमारा गृहस्थ जीवन का रूप है। जो भी ऐसे जी रहा है, वह गृहस्थ है। जो इन तीन के बीच जी रहा है, वह गृहस्थ है। जो इन तीन के बाहर जीना शुरू कर दे, वह संन्यस्त है। कहां से शुरू करेंगे? वहीं से शुरू करें, जहां से कृष्ण कहते हैं। फल की आकांक्षा से शुरू करें, क्योंकि वहां लड़ाई सबसे आसान है। क्योंकि अभी बादल है वहां, पानी भी नहीं बना है। बर्फ बन गया, तो बहुत मुश्किल हो जाएगा। फिर बर्फ को पहले पिघलाओ, पानी बनाओ। फिर पानी को गर्म करो, भाप बनाओ। और तभी भाप से मुक्त हुआ जा सकता है, आकाश में छोड़कर आप भाग सकते हो कि अब छुटकारा हुआ। वहीं से शुरू करें। बहुत कुछ तो आपके भीतर बर्फ बन चुका होगा। अभी उसके | साथ हमला मत बोलें। बहुत कुछ अभी पानी होगा। प्रक्रिया चल रही होगी बर्फ बनने की, अभी उसको भी मत छुएं। अभी तो उन बादलों की तरफ देखें, जिनको आप पानी बना रहे हैं । जिन आकांक्षाओं को अभी आप नए संकल्प दे रहे हैं, उनकी तरफ देखें । उन आकांक्षाओं के प्रति सजग हों और लौटकर पीछे देखें कि इतनी आकांक्षाएं पूरी कीं, पाया क्या? इतने फल पाए, फिर भी निष्फल हैं। अगर पचास साल की उम्र हो गई, तो लौटकर पीछे देखें कि पचास साल में इतना पाने की कोशिश की, इतना पा भी लिया, फिर भी पहुंचे ? पाया क्या? और अगर पचास साल और मिल जाएं, तो भी हम क्या करेंगे? हम वही पुनरुक्त कर रहे हैं। जिसके पास दस रुपए थे, उसने सौ कर लिए हैं। सौ की जगह वह हजार कर लेगा। हजार होंगे, दस हजार कर लेगा। दस हजार होंगे, लाख कर लेगा। लेकिन दस हजार जब कोई सुख न दे पाए ! और जब एक रुपया पास में था, तो खयाल था कि दस रुपए भी हो जाएं, तो बहुत सुख आ जाएगा। दस हजार भी कोई सुख न ला पाए, तो | दस लाख भी कैसे सुख ला पाएंगे? लौटकर पीछे देखें। और अपने अतीत को समझकर, अपने भविष्य को पुनः धोखा न देने दें। नहीं तो भविष्य रोज धोखा देता | है। भविष्य रोज विश्वास दिलाता है कि नहीं हुआ कल, कोई बात नहीं; कल हो जाएगा। वही उसका सीक्रेट है आपको पकड़े रखने का। कहता है, कोई फिक्र नहीं; हजार रुपए हो सका, हजार में कभी होता ही नहीं; लाख में होता है। जब लाख हो जाएंगे, तब यही मन कहेगा, लाख में कभी होता ही नहीं; दस लाख में होता है। यह मन कहे चला जाएगा। इस मन ने कभी भी नहीं छोड़ा कि कहना बंद किया हो। जिनको पूरी पृथ्वी का राज्य मिल गया, उनसे भी इसने नहीं छोड़ा कि तुम तृप्त हो गए हो। उनको भी कहा कि इतने से क्या होगा? | अभी देख रहे हैं आप, अमेरिका और रूस के बीच एक | जी-जान की बाजी चली पिछले दो-तीन वर्षों में कि चांद पर पहुंच जाएं। इस जमीन पर साम्राज्य बढ़ाकर देख लिया, कुछ बहुत रस मिला नहीं। अब चांद पर साम्राज्य बढ़ाना है। चांद पर झंडा गाड़ 16
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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