SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-3 गक्ति कैसाथ दोनों नहीं, जहां द्वंद्व नहीं; जहां अद्वय है, जहां अद्वंद्व है, जहां अद्वैत कठिन है, अगर आदमी अपने बलबूते लड़े। कठिन है, अगर है। उसकी एक झलक, और सारी प्रकृति शांत हो जाती है। अपने पर ही भरोसा रखकर लड़े। अगर सोचता हो कि मैं ही पार फिर कृष्ण कहते हैं कि तू उस झलक को पा ले और फिर तू बात कर लूंगा, तो कठिन है। करना साधुता की। करने की जरूरत न रहेगी; तू साधु हो जाएगा। लेकिन कृष्ण कहते हैं, कठिन नहीं भी है, संभव भी है, अगर तू साधु हो ही जाएगा। उसकी नजर पड़ी, कि तू बदला; तेरी नजर कोई मेरा सहारा ले ले। अगर कोई दिन-रात मुझे ही भजे, अगर उस पर पड़ी, कि तू बदला। एक दफा उस दर्शन को...। । कोई दिन-रात मुझको ही समर्पित रहे, अगर कोई मेरे ही हाथ में यह दर्शन शब्द बड़ा अदभुत है। इसका अर्थ है, एक दफा सारी बात छोड़ दे और कहे कि ठीक, अब तुम्ही नाव को खेओ। उसका दीदार, उसका दर्शन, एक दफे वह दिख जाए, बस। और अब मैं छोड़ता हूं; अब तुम मुझे ले चलो, जहां ले चलना हो। अगर उसे देखने के लिए इन तीन के ऊपर जाना जरूरी है। | कोई मुझ पर भरोसा कर सके, ट्रस्ट कर सके, तो बड़ी सरल है। इसलिए कष्ण कहते हैं. मैं इन तीनों के पार हैं। इन तीनों तक है। प्रकृति है, ऐसा तू जानना। और जब इन तीनों के पार उठे, तब तू | खुद आदमी लड़ने की कोशिश करे, तो लड़ाई बहुत कठिन है; . मुझे देख, और जान पाएगा। जीतना करीब-करीब असंभव है; हारना ही सुनिश्चित है। विराट के साथ हार असंभव है; विराट के साथ जीत सुनिश्चित है। लेकिन विराट के हाथों में अपने को छोड़ने के लिए कृष्ण कहते दैवी होषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। हैं, दिन-रात मुझे ही भजे। क्या मतलब होगा दिन-रात भजने का? मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ।। १४ ।। क्या कोई आदमी कृष्ण-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण कहता रहे? कई लोग यह अलौकिक अर्थात अति अदभुत त्रिगुणमयी मेरी कह रहे हैं। कुछ दिखाई नहीं पड़ता कि कुछ हुआ हो। योगमाया बड़ी दुस्तर है, परंतु जो पुरुष मेरे को ही निरंतर नहीं; भजना इतनी साधारण बात नहीं है। इसका यह मतलब भी भजते हैं, वे इस माया का उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात नहीं है कि कोई कृष्ण-कृष्ण न कहे। भजना बहुत भाव की दशा है। संसार से तर जाते हैं। भजने का अर्थ है, एक अंतःस्मरण। जहां भी, जो भी दिखाई पड़ जाए, उसमें कृष्ण का ही स्मरण। फूल दिखे, तो पहले फूल का खयाल न आए, पहले खयाल कृष्ण का आए। फिर कृष्ण फूल में न स्तर है, कठिन है, आडुअस है, अलौकिक है, बड़ी | खिल जाए; फिर फूल कृष्णरूप हो जाए। भोजन को बैठे, तो पहले ५ शक्ति है प्रकृति की, क्योंकि है तो परमात्मा की ही खयाल भोजन का न आए, कृष्ण का आए। पेट में भूख लगे, तो शक्ति। कठिन है, क्योंकि हम उसी शक्ति से निर्मित | पहले खयाल यह न आए कि मुझे भूख लगी है; पहले खयाल आ हैं, हमारा सब कुछ। सिर्फ हमारे भीतर जो परमात्मा है, उसे | जाए, कृष्ण को भूख लगी है। ऐसा रोएं-रोएं में, उठते-बैठते, छोड़कर। चलते-सोते; सांझ जब रात बिस्तर पर गिरने लगें, तो ऐसा खयाल __ हमारा शरीर, हमारा मन, हमारी बुद्धि, हमारा सब कुछ प्रकृति न आए कि मैं सोने जा रहा हूं; ऐसा खयाल आए कि मेरे भीतर वह से ही निर्मित है। जब हम मिट्टी से लड़ते हैं, तो हम मिट्टी को ही जो कृष्ण है, अब विश्राम को जाता है। लड़ा रहे हैं। हम प्रकृति से ही प्रकृति को लड़ा रहे हैं। तो हम न जीत और यह शब्द से नहीं, यह भाव से। मैं तो आपसे कहूंगा, तो पाएंगे। बहुत दुस्तर हो जाएगी बात। शब्द से ही कहूंगा। लेकिन यह भाव से खयाल आए। घर में कृष्ण कहते हैं, विचित्र है, अदभुत है, अलौकिक है, असाधारण आपके एक बच्चा पैदा हो, तो ऐसा न लगे कि बच्चा पैदा हुआ है; है यह शक्ति! क्योंकि शक्ति तो आखिर परमात्मा की ही है। माना ऐसा लगे कि कृष्ण आए, या परमात्मा आया। कोई भी नाम से कोई कि कितनी ही छोटी लहरें हों, फिर भी हैं तो सागर की। यह अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि सभी नाम उसी के हैं। लेकिन भाव यह सोचकर कि लहरें हैं, उनसे जूझ मत जाना। हमें डुबाने को तो वे हो कि परमात्मा है। सभी स्थितियों में-सुख में, दुख में, विपदा लहरें भी काफी हैं। क्योंकि हम तो लहरों में भी और छोटी लहर हैं। में, संपदा में सभी स्थितियों में उसका ही स्मरण बना रहे। सभी 388|
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy