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________________ - गीता दर्शन भाग-3> आपको बल्ब दिखाई पड़ रहा है। बल्ब एक चीज है। मैं दिखाई पड़ कि एक टांग पर खड़ा है; कि कांटे बिछाए है; कि शरीर को सता रहा हूं। यह टेबल, कुर्सी, तख्त दिखाई पड़ रहा है; ये सब चीजें रहा है, धूप में खड़ा है; कि पानी में गला रहा है शरीर को। तपस्वी हैं। आपको प्रकाश नहीं दिखाई पड़ रहा है; केवल प्रकाशित चीजें दिखाई पड़ जाता है। लेकिन कृष्ण कहते हैं, मैं तपस्वी नहीं हूं; दिखाई पड़ रही हैं। प्रकाश जिनके ऊपर आकर लौट रहा है, वे | तपस्वियों में तेज! लोग दिखाई पड़ रहे हैं। प्रकाश आपको दिखाई नहीं पड़ रहा है। यह तेज क्या है? आमतौर से हम सबने अपनी-अपनी घरेलू प्रकाश आज तक किसी मनुष्य को साधारणतः दिखाई नहीं पड़ा है, व्याख्याएं कर रखी हैं। तेज से हम क्या मतलब समझते हैं? हम जिस तरह हम सोचते हैं। प्रकाश अदृश्य चीज है। समझते हैं कि चेहरे पर कुछ रौनक दिखाई पड़े, तो तेज हो गया। तो कृष्ण कहते हैं, सूर्यो, ताराओं, चंद्रों में मैं प्रकाश। सूरज | | कि स्वास्थ्य दिखाई पड़े, तो तेज हो गया। कि आदमी शक्तिशाली नहीं, चांद नहीं, तारा नहीं; जो तुम्हें दिखाई पड़ता है, वह नहीं। मैं दिखाई पड़े, तो तेज हो गया। वह प्रकाश हं. जिसके कारण तम्हें दिखाई पडता है. लेकिन जो तम्हें | जो आपको दिखाई पडे, वह तो तेज होगा ही नहीं। क्योंकि कष्ण कभी दिखाई नहीं पड़ता। प्रकाश अदृश्य उपस्थिति है। सिर्फ प्रेजेंस बात कर रहे हैं अदृश्य की। तपस्वियों में तेज! इसकी खोज की . है। कभी दिखाई नहीं पड़ता। विधि है। आप सोचते होंगे, अंधे को नहीं दिखाई पड़ता। मैं कह रहा हूं, | अगर किसी तपस्वी में तेज देखना हो, तो तपस्वी पर ध्यान आंख वालों को भी प्रकाश नहीं दिखाई पड़ता। अंधे और आंख करना पड़ता है। महावीर बैठे हैं आपके सामने, आप भी उनके वालों में फर्क यह नहीं है कि एक को प्रकाश दिखाई पड़ता, और सामने बैठ गए हैं और महावीर को देखें। कि बुद्ध बैठे हैं। देखें, एक को प्रकाश नहीं दिखाई पड़ता। फर्क इतना है, एक को और देखते चले जाएं अपलक। एक ऐसी घड़ी आएगी कि महावीर प्रकाशित चीजें दिखाई पड़ती हैं, एक को प्रकाशित चीजें नहीं खो जाएंगे, सिर्फ तेज-पुंज रह जाएगा। तभी आप समझना। दिखाई पड़तीं। प्रकाश तो दोनों को नहीं दिखाई पड़ता है। | अन्यथा नहीं। महावीर बचेंगे ही नहीं। कोई रूपरेखा न बचेगी। कोई प्रकाश तो उसे दिखाई पड़ता है. जो इन आंखों को छोड़कर शरीर, देह न दिखाई पड़ेगी। आदमी खो जाएगा बिलकुल, सिर्फ भीतर की और भी अंतरतम की आंखें हैं, उनको खोलता है, उसे | तेज-पुंज रह जाएगा, सिर्फ आभा। प्रकाश दिखाई पड़ता है। फिर चांद-तारे नहीं दिखाई पड़ते। यह भी | ___ और ऐसी आभा, जिसमें स्रोत नहीं होता। दीए में आभा होती बड़े मजे की बात है। | है, तो दीए में स्रोत होता है। उसके चारों तरफ आभा होती है, एक जब तक चांद-तारे दिखाई पड़ते हैं, तब तक प्रकाश दिखाई नहीं | सेंटर होता है। तेज अगर महावीर में दिखाई पड़ेगा, तो उसमें कोई पड़ता; और जिस दिन प्रकाश दिखाई पड़ता है, उस दिन चांद-तारे | न दीया होगा, न तेल होगा, न बाती होगी, न कोई स्रोत होगा। सिर्फ दिखाई नहीं पड़ते। उस दिन यह सारा जगत प्रकाश ही रह जाता है। केंद्ररहित परिधि होगी। फिर कोई प्रकाशित वस्त नहीं रह जाती. कोई आब्जेक्ट नहीं रह इसलिए हम महावीर बद्ध.कष्ण और क्राइस्ट और नानक और जाता। सिर्फ प्रकाश का सागर. सिर्फ अनंत प्रकाश। न कोई सर्य कबीर के आस-पास सिर के वह जो गोल घेरा बनाते हैं. वह कोई जिससे निकलता है, न कोई और विषय जिस पर पड़ता है, सिर्फ कैमरे की पकड़ में आने वाली चीज नहीं है। प्रकाश ही प्रकाश रह जाता है। और बड़े मजे की बात है। हम जो भी करते हैं, वह गलत ही इसलिए कृष्ण कहते हैं, चांद-ताराओं में, सूर्यों में अर्जुन, तू करते हैं। असल में हम इतने गलत हैं कि हमसे ठीक कुछ हो नहीं मुझे प्रकाश जान। चांद-तारे तुझे दिखाई पड़ते हैं, मैं तुझे दिखाई | सकता। अगर वह गोल घेरा बनाना हो, तो कृपा करके भीतर नहीं पड़ता। महावीर को खड़ा मत करो, सिर्फ गोल घेरा रहने दो। क्योंकि दोनों तपस्वियों में तेज। घटनाएं एक साथ कभी नहीं घटी। जिनको महावीर दिखाई पड़े, सोचने जैसा है, तपस्वियों में तेज! तपस्वी तो दिखाई पड़ते हैं उनको वह आभा नहीं दिखाई पड़ी। और जिनको आभा दिखाई सभी को। और तपस्वी को देखना बहुत कठिन नहीं है। बड़ी छोटी पड़ी, उनको महावीर दिखाई नहीं पड़े। ये दोनों एक साथ नहीं परीक्षाएं हैं. उससे पता चल जाता है। आदमी उपवास कर रहा है। घटतीं। यह असंभव है। ये कभी घटती ही नहीं। क्योंकि वह आभा 358
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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