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________________ - गीता दर्शन भाग-3 इसलिए कृष्ण बड़ी सरलता से कह पाते हैं कि मैं ही हूं सृजन, मैं अपने को भला कहने की बात तो बड़ी आसान है। अपने को ही प्रलय। सब मुझसे ही पैदा होता और मुझमें ही लीन हो जाता है। महात्मा कहने की बात तो बड़ी आसान है। लेकिन अपने को यहां हमने परमात्मा को अविभाजित, अनडिवाइडेड जाना है। दुरात्मा कहने की हिम्मत बड़ी है। और ध्यान रहे, अगर हम परमात्मा को अविभाजित न जानें, तो कृष्ण कहते हैं, दोनों ही मैं हूं। वह जो तुम्हें अच्छा लगता है, वह हमारे भीतर अविभाजित श्रद्धा होने की कोई संभावना नहीं है। और | भी मैं हूं। वह जो तुम्हें बुरा लगता है, वह भी मैं हूं। दोनों ही मैं हूं। हमने एक बार जगत को दो हिस्सों में तोड़ा कि हमारे भीतर का जिसको यह समग्र स्वीकृति, यह टोटल एक्सेप्टेबिलिटी समझ हृदय भी दो हिस्सों में टूट जाएगा। | में आ जाए, वही कृष्ण के तत्व-दर्शन को ठीक से समझ पाएगा। इसलिए पश्चिम में आज जो मनोवैज्ञानिकों के सामने सबसे | ___ इसलिए कृष्ण के साथ बहुत अन्याय भी हुआ है। क्योंकि कृष्ण बड़ी बीमारी है, वह है, स्प्लिट पर्सनैलिटी, व्यक्तित्व का टूटा हुआ का व्यक्तित्व समाहित, समग्र को इकट्ठा लिए हुए है। तो किसी को होना, विखंडित होना। लेकिन पश्चिम के मनोवैज्ञानिक को भी कोई शक होता है कि कृष्ण दोनों काम कैसे कर पाते हैं। इनकंसिस्टेंट खयाल नहीं है कि मनुष्य का मन दो में क्यों टूट गया। और यह | मालूम पड़ते हैं, असंगत मालूम पड़ते हैं। एक तरफ परमात्मा की पश्चिम में ही विखंडित, स्लिट पर्सनैलिटी क्यों पैदा हुई? उसका | बात करते हैं, दूसरी तरफ युद्ध में उतार देते हैं। परमात्मवादी को तो कारण उसके खयाल में नहीं है। पैसिफिस्ट होना चाहिए, उसको तो शांतिवादी होना चाहिए। उसका कारण है कि निष्ठा जब दो में टूट जाए, और निष्ठा जब | अशांति तो दुष्टों का काम है, युद्ध तो दुष्टों का काम है! ' विभाजित हो, तो भीतर हृदय भी दो में टूट जाता है और विभाजित __ कृष्ण कैसे आदमी हैं! एक तरफ परमात्मा की बात, और दूसरी हो जाता है। जब निष्ठा एक में हो और अविभाज्य हो. तो निष्ठावान तरफ अर्जन को यद्ध में जाने की प्रेरणा। ये दनिया के जितने हृदय भी अविभाजित हो जाता है और एक हो जाता है। एक | शांतिवादी हैं, उनको बड़ी बेचैनी होगी। वे तो कहेंगे, कृष्ण जो हैं, परमात्मा, तो भीतर एक आत्मा का जन्म होता है। और अगर दो | ठीक आदमी नहीं हैं। कृष्ण को तो मौका चूकना नहीं था। अर्जुन शक्तियां हमने स्वीकार की, तो भीतर भी चित्त डांवाडोल, और दो | भाग रहा था, शांतिवादी बन रहा था। फौरन रास्ता बनाना था कि में टूट जाता है। और आज तो हालत ऐसी है कि स्वीकृत हो गया | भाग जा। आगे-आगे दौड़ना था। लोगों से कहना था, हटो! अर्जुन है पश्चिम में कि हर आदमी खंड-खंड होगा। को निकल जाने दो, यह शांतिवादी हो गया है। एक आदमी तो एक मनोवैज्ञानिक के पास गया और उसने कहा | कृष्ण बेबूझ हैं। क्योंकि कृष्ण कहते हैं, दोनों ही मैं हूं, युद्ध भी कि कोई तरकीब करो कि मेरी पर्सनैलिटी को स्लिट कर दो, मेरे | मैं और शांति भी मैं। दोनों ही मैं हूं, अंधेरा भी मैं, प्रकाश भी मैं। व्यक्तित्व को दो हिस्सों में तोड़ दो। मनोवैज्ञानिक हैरान हुआ। और जब दोनों की तरह तू मुझे देख पाएगा, तभी तू मुझे देख उसने कहा, तुम पागल तो नहीं हो? क्योंकि हमारे पास तो जो लोग | पाएगा। अगर तू बांटकर देखेगा, आधे को देखेगा, चुनकर देखेगा, आते हैं, वे इसलिए आते हैं कि हम उनके व्यक्तित्व को इकट्ठा कैसे तो तू मुझे कभी नहीं देख पाएगा। कर दें! तुम्हारा दिमाग ठीक तो है न! तुम यह क्या कह रहे हो कि परमात्मा में चुनाव नहीं किया जा सकता। यू कैन नाट चूज। तुम्हारे व्यक्तित्व को दो हिस्सों में तोड़ दें! तुम्हारा प्रयोजन क्या है? | और अगर आपने चुनाव किया, तो वह परमात्मा आपके घर का उस आदमी ने कहा, मैं बहुत अकेलापन अनुभव करता हूं। दो | होममेड परमात्मा होगा, घर का बनाया हुआ। वह परमात्मा असली हो जाऊंगा, तो कम से कम कोई साथ तो होगा! आई फील टू मच | नहीं होगा। लोनली, बहुत अकेला लगता हूं। तो मुझे दो हिस्सों में तोड़ दो। तो परमात्मा तो जैसा है, उसके लिए वैसे ही होने के लिए राजी होना कम से कम मेरा एक हिस्सा तो मेरे साथ हो सकेगा! | पड़ेगा। अगर वह प्रलय है तो सही। अगर वह मृत्यु है तो सही। पश्चिम में दोनों घटनाएं घटी हैं। आदमी बिलकुल अकेला है, | राजी हैं। अगर आपने कहा कि नहीं, हम तो जरा परमात्मा के चेहरे और टूट गया है। और इस टूटने की जड़ उस विचार में है, जिसमें | पर रंग-रोगन करेंगे। हम तो जरा शक्ल को संदर बनाएंगे। मेकअप हमने जगत को ही दो हिस्सों में तोड़ दिया। में हर्ज भी क्या है ? हम थोड़ा इसकी शक्ल को ठीक कर लें। अगर कृष्ण कहते हैं, दोनों ही मैं हूं। बुरा भी मैं हूं, भला भी मैं हूं। | आपने ऐसा किया, तो जो आपके हाथ में लगेगा, वह आपके हाथ 352
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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