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________________ परमात्मा की खोज > के दो प्रकार हैं। है। वह गणित की भाषा है। अगर मैं आपसे कहूं कि हत्या हो गई; तो आप पूछेगे, कहां और कृष्ण जो भाषा बोल रहे हैं, वह लोक-भाषा है। कृष्ण की बात कब? आप दो शब्द पठेंगे, कहां और कब? कहां का मतलब है, सब की समझ में आ सकती है। लोक-भाषा में बोलने का एक किस स्थान में, एक्जेक्ट प्लेस, कौन-सी जगह। अगर मैं कहूं, | | खतरा है कि चीजें कभी बहुत तर्कबद्ध और सूक्ष्म नहीं हो सकतीं। नहीं; जगह कोई भी नहीं है, सिर्फ फलां आदमी की हत्या हो गई | | लेकिन सूक्ष्म और तर्कबद्ध और गणित की भाषा में बोलने का है। तो आप कहेंगे कि गलत कह रहे हैं। क्योंकि बिना किसी जगह | दूसरा खतरा है कि चीजें किसी की समझ में नहीं आतीं; समझ के में हुए हत्या नहीं हो सकती। जगह तो चाहिए। लेकिन अकेली बाहर खो जाती हैं। जगह में भी हत्या नहीं हो सकती, टाइम भी चाहिए। तो आप पूछते । तो जिनकी दृष्टि केवल तत्व-अन्वेषण की है, वे तो गणित की हैं, कब ? व्हेन? किस समय हुई? अगर मैं कहूं, नहीं, समय में | भाषा भी बोल सकते हैं। इसलिए आइंस्टीन का खयाल है कि नहीं हुई। स्थान में तो हुई, समय में नहीं हुई। तो आप कहेंगे, नहीं | | भविष्य की विज्ञान की भाषा, आम भाषा नहीं रहेगी, सिर्फ गणित हो सकती है। किसी भी वस्तु को होने के लिए दो आयामों में स्थान | की भाषा हो जाएगी। अंकों में बात होगी, शब्दों में नहीं। क्योंकि चाहिए, समय और स्थान, क्षेत्र। शब्दों में गड़बड़ होती है। प्रतीकों में बात होगी, शब्दों में नहीं। पूछा जा सकता है कि इस पंच महाभूत की धारणा में आकाश | क्योंकि शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं। को तो गिनाया, स्पेस को; टाइम को, काल को क्यों नहीं गिनाया? लेकिन कृष्ण जो बोल रहे हैं, वह तत्व-अन्वेषण के लिए नहीं, तो एक और मजे की बात आपसे कहना चाहता हूं कि आइंस्टीन तत्व-साधना के लिए बोल रहे हैं। अर्जुन को समझ में आ सके, के पहले तक ऐसा खयाल था कि टाइम और स्पेस दो चीजें हैं, उस भाषा में बोल रहे हैं। तो उन्होंने लोक-प्रचलित पंच महाभूत वैज्ञानिकों को। लेकिन आइंस्टीन ने यह सिद्ध करने का भगीरथ की बात कही। लेकिन उस पंच महाभूत की बात में पूरी वैज्ञानिक प्रयास किया, और बात सिद्ध हो गई, कि टाइम और स्पेस दो चीजें दृष्टि है। नहीं हैं। एक ही चीज है, टाइम-स्पेस या स्पेस-टाइम-कंटीनम। ये|| आधारभूत तो एक ही है, अग्नि, तेज। इसलिए अग्नि को देवता दो चीजें नहीं हैं। समय और स्थान एक ही चीज के दो पहलू हैं। | कहा। इसलिए सारे जगत में अग्नि की पूजा हुई। अभी भी पारसी ___ इसलिए कृष्ण के समय तक भी यह खयाल था कि समय अलग अपने मंदिर में चौबीस घंटे अग्नि को जलाए हुए है। शायद उसे नहीं है। समय भी स्थान का ही एक हिस्सा है। इसलिए अलग से | | ठीक पता भी नहीं कि किसलिए जलाए हुए है। रीति है, प्रचलित उसे नहीं गिनाया गया। पंच महाभूत में अवकाश देने के लिए है, जलाए हुए है। उसका मंदिर तो अग्नि का ही मंदिर है। लेकिन जरूरी—आकाश; अस्तित्व के लिए आधारभूत-अग्नि; और खयाल नहीं है कि क्यों? प्रकट अस्तित्व के तीन रूप-पृथ्वी, जल और वायु; इन पंच | __ अग्नि जीवन का आधारभूत तत्व है; वही देवता है। उससे ही महाभूतों की धारणा है। जीवन का सब रूप विकसित होता है। मंदिर में अग्नि जलाकर लेकिन कृष्ण जैसे व्यक्ति जब बात करते हैं, तो जिनसे बात | | बैठने से कुछ हल न होगा। इस जीवन में सब तरफ अग्नि को ही करते हैं, उनके ही शब्दों का उपयोग करते हैं। यही उचित भी है। | जलते हुए देखने से अग्नि के देवता का दर्शन होता है। इसीलिए आज कठिनाई हो गई है। आइंस्टीन मजाक में कहा करता ___ जहां भी जो कुछ है, वह अग्नि का ही रूप है। और उस अग्नि था कि मेरी बात को समझने वाले इस जमीन पर बारह लोगों से के तीन रूप हैं प्रकट–ठोस, फिर जलीय, फिर वायवीय। और ज्यादा नहीं हैं। वह भी अनुमान था उसका कि बारह लोग इस जमीन | | उसकी जगह जिसमें मिली है, समय और स्थान, उसका नाम पर हैं साढ़े तीन अरब आदमियों में, जो मेरी बात समझ सकते हैं। | आकाश है। इन पंच महाभूतों की कृष्ण ने बात कही। इनसे प्रकृति हालांकि उसकी पत्नी ने शक जाहिर किया है कि बारह लोग भी हो बनी है। और तीन और अंतर-रूपों की बात कही। और इन आठों सकते हैं। | को इकट्ठा गिनाया। तीन कहा-मन, बुद्धि, अहंकार। क्या बात है? आइंस्टीन की बात को समझने के लिए बारह | - सबसे ज्यादा पहली चीज कही, पृथ्वी। और सबसे अंतिम चीज लोग! आइंस्टीन जो भाषा बोल रहा है, उस भाषा में सारी कठिनाई | कही, अहंकार। पृथ्वी सबसे मोटी और स्थूल चीज है। अहंकार 341
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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