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________________ - वैराग्य और अभ्यास - बुद्ध कहते थे, जब शरीर आकर्षक मालूम पड़े, तो थोड़ा भीतर | मैं कल जीना चाहूं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे पाए बिना मेरा गौर करना कि है क्या वहां? तो शायद शरीर का जो राग है, वह जीवन व्यर्थ है। टूट जाए और वैराग्य उत्पन्न हो। वैराग्य का अर्थ है, वस्तुओं के लिए नहीं, पर के लिए नहीं, बुद्ध को वैराग्य उत्पन्न होने की जो बड़ी कीमती घटना है, वह दूसरे के लिए नहीं, अब मेरा आकर्षण अगर है, तो स्वयं के लिए मैं आपसे कहूं। है। अब मैं उसे जान लेना चाहता हूं, जो सुख पाना चाहता है। बुद्ध के पिता ने बुद्ध के महल में उस राज्य की सब सुंदर स्त्रियां | | क्योंकि जिन-जिन से सुख पाना चाहा, उनसे तो दुख ही मिला। इकट्ठी कर दी थीं। रात देर तक गीत चलता, गान चलता, मदिरा | अब एक दिशा और बाकी रह गई कि मैं उसको ही खोज लूं, जो बहती, संगीत होता और बुद्ध को सुलाकर ही वे सुंदरियां सुख पाना चाहता है। पता नहीं, वहां शायद सुख मिल जाए। मैंने नाचते-नाचते सो जातीं। एक रात बुद्ध की नींद चार बजे टूट गई। बहुत खोजा, कहीं नहीं मिला; अब मैं उसे खोज लूं, जो खोजता एर्नाल्ड ने अपने लाइट आफ एशिया में बड़ा प्रीतिकर, पूरा वर्णन | था। उसे और पहचान लूं, उसे और देख लूं। किया है। वैराग्य का अर्थ है, विषय से मुक्ति और स्वयं की तरफ यात्रा। चार बजे नींद खुल गई। पूरे चांद की रात थी। कमरे में चांद की | चित्त दो यात्राएं कर सकता है। या तो आपसे पदार्थ की तरफ, किरणें भरी थीं। जिन स्त्रियों को बुद्ध प्रेम करते थे, जो उनके | और या फिर पदार्थ से आपकी तरफ। आपसे पदार्थ की तरफ जाती आस-पास नाचती थीं और स्वर्ग का दृश्य बना देती थीं, उनमें से | हुई जो चित्त की धारा है, उसका नाम राग है। पदार्थ से आपकी कोई अर्धनग्न पड़ी थी; किसी का वस्त्र उलट गया था; किसी के तरफ लौटती हुई जो चेतना है, उसका नाम वैराग्य है। मुंह से घुर्राटे की आवाज आ रही थी; किसी की नाक बह रही थी; कभी आपने ऐसा अनुभव किया, जब पदार्थ से आपकी चेतना किसी की आंख से आंसू टपक रहे थे; किसी की आंख पर कीचड़ आपकी तरफ लौटती हो? सबको छोटा-छोटा अनुभव आता है इकट्ठा हो गया था। वैराग्य का। लेकिन थिर नहीं हो पाता। थिर इसलिए नहीं हो पाता बुद्ध एक-एक चेहरे के पास गए और वही रात बुद्ध के लिए घर कि वैराग्य का हम कोई अभ्यास नहीं करते हैं। राग का तो अभ्यास से भागने की रात हो गई। क्योंकि इन चेहरों को उन्होंने देखा था; करते हैं। वैराग्य का क्षण भी आता है, तो चूंकि अभ्यास नहीं होता, ऐसा नहीं देखा था। लेकिन ये चेहरे असलियत के ज्यादा करीब थे। इसलिए खो जाता है। जिन चेहरों को देखा था, वे मेकअप से तैयार किए गए चेहरे थे, करीब-करीब ऐसे जैसे आपने कबूतर पालने वाले लोगों को तैयार चेहरे थे। ये चेहरे असलियत के ज्यादा करीब थे। यह शरीर देखा होगा, अपने घर पर एक छतरी लगाकर रखते हैं। कबूतर की असलियत है। आता है, तो छतरी पर बैठ पाता है। हमारे ऊपर भी वैराग्य का लेकिन जैसी शरीर की असलियत है, वैसे ही सभी सुखों की कबूतर कई बार आता है, लेकिन कोई छतरी नहीं होती, जिस पर असलियत है। और एक-एक सुख को जो एक्सरे मेडिटेशन करे, | बैठ पाए। फिर उड़ जाता है। अभ्यास, छतरी का बनाना है कि जब एक-एक सुख पर एक्सरे की किरणें लगा दे, ध्यान की, और वैराग्य का कबूतर आए, जब वैराग्य का पक्षी आए अपनी तरफ एक-एक सख को गौर से देखे. तो आखिर में पाएगा कि हाथ में उडकर. तो हमारे पास उसके बैठने की. बिठाने की. निवास की सिवाय दुख के कुछ बच नहीं रहता। और जब आपको एक सुख जगह हो। की व्यर्थता में समस्त सुखों की व्यर्थता दिखाई पड़ जाए, और जब अभ्यास वैराग्य को थिर करने का उपाय है। वैराग्य तो सबके एक सुख के डिसइलूजनमेंट में आपके लिए समस्त सुखों की | भीतर पैदा होता है, अभ्यास थिर करने का उपाय है। वैराग्य तो कामना क्षीण हो जाए, तो आपकी जो स्थिति बनती है, उसका नाम सबके ऊपर आता है, अभ्यास उसे रोक लेने का उपाय है, उसे वैराग्य है। प्राणों में आत्मसात कर लेने का उपाय है। वैराग्य का अर्थ है, अब मुझे कुछ भी आकर्षित नहीं करता। अभी हमारी जैसी स्थिति है, वह ऐसी है कि राग का तो हम वैराग्य का अर्थ है, अब ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए मैं कल अभ्यास करते हैं। राग का हम अभ्यास करते है। हर राग व्यर्थ होता जीना चाहूं। वैराग्य का अर्थ है, ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके लिए है, लेकिन अभ्यास जारी रहता है। और वैराग्य कभी-कभी आता 253
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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