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________________ गीता दर्शन भाग-3 लेकिन गहरे, अल्टिमेट नियम का उसे कोई भी अहसास नहीं है। अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते । । ३५ ।। इस वक्तव्य ने अर्जुन के अर्जुन की स्थिति बहुत साफ की है। हे महाबाहो, निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में और कृष्ण के लिए अब उसकी स्थिति को हल करना प्रतिपल होने वाला है, परंतु हे कुंतीपुत्र अर्जुन, अभ्यास अर्थात आसान होता चला जाएगा। सबसे बड़ी कठिनाई यह है, वह स्थिति के लिए बारंबार यत्न करने से और वैराग्य से कठिनाई है, डायग्नोसिस की, निदान की। और जहां तक शरीर की वश में होता है। डायग्नोसिस, बीमारियों का पता लगाने का सवाल है, हम उपाय कर सकते हैं। लेकिन जहां तक मन की बीमारियों का सवाल है, उनको कन्फेस करवाना पड़ता है। और कोई उपाय नहीं है। उनको कष्ण ने अर्जुन की मनोदशा को देखकर कहा, निश्चय बीमार से ही स्वीकृति दिलवानी पड़ती है। y० ही अर्जुन, मन बड़ी मुश्किल से वश में होने वाला है। फ्रायड एक काम करता रहा है—करीब-करीब कृष्ण वही काम - यह जो कहा, निश्चय ही, यह मनुष्य के मन की स्थिति कर रहे हैं— फ्रायड एक काम करता रहा है, और फ्रायड के पीछे के लिए कहा है। निश्चय ही, जैसा मनुष्य है, ऐज वी आर, जैसे चलने वाले मनसविदों का जो समूह है, साइकोएनालिस्ट्स का, वे हम हैं; हमें देखकर, निश्चय ही मन बड़ी मुश्किल से वश में होने भी एक काम करते रहे हैं। वे मरीज को पर्दे के पीछे एक कोच पर | वाला है। जैसा आदमी है, अगर हम उसे वैसा ही स्वीकार करें, तो लिटा देते हैं। और उससे कहते हैं, जो तुझे बोलना है बोल। कुछ | शायद मन वश में होने वाला ही नहीं है। भी छिपाना मत, जो तेरे मन में आए, बोलते जाना। कभी वह गीत लेकिन-और उस लेकिन में गीता का सारा सार छिपा हैगाता है। कभी गालियां बकता है। कभी भजन बोलने लगता है। लेकिन अर्जुन, अभ्यास और वैराग्य से मन वश में हो जाता है। जो तेरे मन आए, बस मन में आए, उसको तू शब्द देते जाना। तू | जैसा मनुष्य है, अगर हम उसे अनछुआ, वैसा ही रहने दें, और यह भी मत फिक्र करना कि वह ठीक है कि गलत। चाहें कि मन वश में हो जाए, तो मन वश में नहीं होता है। क्योंकि पर्दे के पीछे छिपा हुआ मनोवैज्ञानिक बैठा रहता है। वह आदमी | जैसा मनुष्य है, वह सिर्फ मन ही है। मन के पार उसमें कुछ भी नहीं पर्दे के पार अनर्गल—हमें अनर्गल दिखाई पड़ता है बाहर से, | है। मन के पार उसका कोई भी अनुभव नहीं है। मन को वश में उसके भीतर तो उसकी भी संगति है—वह बोलता चला जाता है। करने की कोई भी कीमिया, कोई भी तरकीब उसके हाथ में नहीं है। जैसा हम सब अंदर बोलते रहते हैं, अगर जोर से बोल दें, बस वैसे | लेकिन-और लेकिन बहुत महत्वपूर्ण है; और ये दो शब्द, ही। वह बोलता चला जाता है। अभ्यास और वैराग्य गीता के प्राण हैं लेकिन अभ्यास और एक-दो दिन, तीन दिन तो थोड़ा रोकता है, कोई-कोई बात छिपा | | वैराग्य से मन वश में हो जाता है। अभ्यास और वैराग्य का आधार जाता है। लगता है कि नहीं बोलनी चाहिए, तो छिपा लेता है। आपको समझा दूं, फिर हम अभ्यास और वैराग्य को समझेंगे। लेकिन तीन-चार दिन में वह धीरे-धीरे राजी हो जाता है, हल्का हो ___ अभ्यास और वैराग्य का पहला आधार तो यह है कि मनुष्य जाता है, बहने लगता है, और बोलने लगता है। फिर मनोवैज्ञानिक | जैसा है, उससे अन्यथा हो सकता है। पीछे बैठकर खोज करता रहता है कि उसके मन का सार मिल जाए। - मन की बात ही नहीं कर रहे वे। वे कह रहे हैं, मन को छोड़ो। कृष्ण भी अर्जुन से ऐसी बातें कह रहे हैं कि अर्जुन के मन का तुम जैसे हो, ऐसे में मन वश में नहीं होगा। पहले हम तुम्हें ही थोड़ा सार मिल जाए। अर्जुन का मन साफ प्रकट हो जाए। इस वक्तव्य बदल लें। पहले हम तुम्हें ही थोड़ा बदल लें, फिर मन वश में हो में अर्जुन के मन का सार साफ हुआ है, अर्जुन के मन का निदान | | जाएगा। अभ्यास और वैराग्य इस बात की घोषणा है कि मनुष्य हुआ है। अब कृष्ण चिकित्सा में ज्यादा व्यवस्था से लग सकते हैं। | जैसा है, उससे अन्यथा भी हो सकता है। मनुष्य जैसा है, उससे | भिन्न भी हो सकता है। मनुष्य जैसा है, वैसा होना एकमात्र विकल्प | नहीं है, और विकल्प भी हैं। हम जैसे हैं, यह हमारी एकमात्र स्थिति श्रीभगवानुवाच | नहीं है, और स्थितियां भी हमारी हो सकती हैं। असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् । अगर हम एक बच्चे को जंगल में छोड़ दें पैदा हो तब, तो क्या 244|
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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