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________________ गीता दर्शन भाग-3 तो ईश्वर नहीं है। इन दोनों के बीच में गैप है, जो आपको दिखाई दो चीजों के बाबत हमें बड़ी सफाई है। एक तो शरीर के बाबत नहीं पड़ रहा है। इस निष्पत्ति तक पहुंचने के लिए उतने आधार | | बहुत साफ स्थिति है कि शरीर है। वह पदार्थ का समूह है। वह काफी नहीं हैं। इस निष्पत्ति पर तो वही पहुंच सकता है, जो यह भी | पंचभूत कहें, या जितने भूत हों उतने कहें, उन सब का समूह है। कह सके कि जो भी संभव था, वह सब मैंने देख लिया; जो भी उसके बाबत बहुत स्थिति साफ है। आत्मा है, उसके बाबत भी अस्तित्व था, वह मैंने पूरा छान डाला; कोना-कोना जहां तक | स्थिति साफ है कि वह पदार्थ नहीं है। इतना तो साफ है नकारात्मक, असीम का विस्तार था, मैंने सब पा लिया, देख लिया। अब एक | कि वह पदार्थ नहीं है। वह चैतन्य है, वह कांशसनेस है। यह मन रत्तीभर अस्तित्व नहीं बचा है छानने को, इसलिए मैं कहता हूं कि क्या है दोनों के बीच में? ईश्वर नहीं है। तब उसकी बात में कोई तर्कयुक्तता हो सकती है। यह मन दोनों के मिलन से उत्पन्न हुई एक बाइ-प्रोडक्ट है। यह लेकिन सदा शेष है। मन पदार्थ और चेतना के मिलन से पैदा हुई एक उत्पत्ति है। वस्तुतः तो अर्जुन के इस संदेह में वास्तविकता है। फिर भी कहीं कोई देखा जाए, तो शरीर का भी बहुत गहन अस्तित्व है और आत्मा का गहरी भूल है। भी। मन का गहन अस्तित्व नहीं है। दूसरी बात वह कहता है कि वायु की तरह है। और ठीक उसने | मन ऐसा है. जैसे कि मैं आपको एक जंगल में मिल जाऊं। और उपमा ली है। ठीक उसने उपमा ली है। लेकिन फिर भी उपमा में हम दोनों के बीच मैत्री का जन्म हो। आप भी बहुत हैं, मैं भी बहुत कुछ बुनियादी भूलें हैं, वह खयाल में ले लें, तो कृष्ण का उत्तर हूं, लेकिन यह मैत्री हम दोनों के बीच एक संबंध है। यह मैत्री पदार्थ समझना आसान हो जाएगा। भी नहीं है, और यह मैत्री आत्मा भी नहीं है। क्योंकि अकेले दो एक तो बुनियादी भूल यह है कि वायु पदार्थ है, मन पदार्थ नहीं पदार्थों के बीच यह घटित नहीं हो सकती, इसलिए पदार्थ तो नहीं है। वायु पदार्थ है, मन पदार्थ नहीं है। अर्जुन के वक्त में तो वायु है। और अकेली दो आत्माओं के बीच भी घटित नहीं हो सकती को पकड़ना मुश्किल था, अब मुश्किल नहीं है। अगर आज अर्जुन बिना शरीरों को बीच में माध्यम बनाए, तो यह सिर्फ आत्मा भी नहीं सवाल पूछता, तो वायु की उपमा नहीं ले सकता था। आज तो | है। लेकिन शरीर और आत्मा मौजूद हों, तो मैत्री नाम का एक विज्ञान ने सुलभ कर दिया है। हम चाहें तो वाय को ठंडा करके पानी | संबंध, एक रिलेशनशिप घटित हो सकती है। . बना ले सकते हैं। और ज्यादा ठंडा कर सकें, तो ठोस पत्थर की ___ मन वस्तु नहीं है, संबंध है। मन पदार्थ नहीं है, संबंध है। इसे तरह वायु जम जाएगी। थोड़ा ठीक से समझ लें; क्योंकि संबंध को पदार्थे से तुलना देने क्योंकि विज्ञान कहता है, प्रत्येक पदार्थ की तीन अवस्थाएं हैं। में बड़ी भूल हो जाएगी। पदार्थ को कभी तोड़ा नहीं जा सकता। जैसे बर्फ, पानी, भाप। इसी तरह प्रत्येक पदार्थ की तीन अवस्थाएं आप कहेंगे, तोड़ा जा सकता है; हम एक पत्थर के दस टुकड़े कर हैं। और प्रत्येक पदार्थ एक अवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश कर | सकते हैं। आपने पदार्थ नहीं तोड़ा, सिर्फ पत्थर तोड़ा है। पदार्थ सकता है। वायु भी एक विशेष ठंडक पर जल की तरह हो जाती तोड़ने का मतलब यह है कि पत्थर को आप इतना तोड़ें, इतना तोड़ें है; और एक विशेष ठंडक पर पत्थर की तरह जम जाएगी। पदार्थ | |कि पत्थर शून्य में विलीन हो जाए। आप नहीं तोड़ सकते। विज्ञान की तीन अवस्थाएं हैं। कहता है, कोई पदार्थ तोड़ा नहीं जा सकता इस अर्थ में। नष्ट नहीं खैर, अर्जुन को उसका कोई पता नहीं था। अगर आज कोई | किया जा सकता। अर्जुन की तरफ से पूछता, तो वायु का उदाहरण नहीं ले सकता था। ___ लेकिन संबंध नष्ट किया जा सकता है। मेरे और आपके बीच क्योंकि वायु अब बिलकुल मुट्ठी में पकड़ी जा सकती है; ठंडी | की मैत्री के नष्ट होने में कौन-सी कठिनाई है! मैत्री नष्ट हो सकती करके पानी बनाई जा सकती है; बर्फ की तरह जमाई जा सकती है। है; बिलकुल नष्ट हो सकती है। अस्तित्व में फिर वह कहीं ढूंढ़े से उसे कोई आदमी हाथ में लेकर चल सकता है। न मिलेगी। पदार्थ की तुलना मन से देने में एक बुनियादी भूल हो गई। मन | ___ संबंध नष्ट हो सकते हैं, पदार्थ नष्ट नहीं होता। वायु पदार्थ है, तो सिर्फ विचार है। मन है क्या, इसे हम थोड़ा ठीक से समझ लें, | मन संबंध है। मन संबंध है शरीर और आत्मा के बीच। शरीर और तो बहुत साफ हो जाएगी बात। आत्मा के बीच जो दोस्ती है, उसका नाम मन है। शरीर और आत्मा 2381
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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