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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 - इसे भी थोड़ा खयाल में ले लें। अन्यथा गलत छोर से आपने | स्त्री बहुपति कर सकती है, वहां स्त्री कमाने लगती है और पुरुष शुरू किया, तो आप कभी भी ठीक स्थिति में नहीं पहुंच पाएंगे। घर बैठकर खाने लगता है। वहां पुरुष कमाने नहीं जाता। सेकेंडरी ये दो ढंग हैं। स्त्रैण चित्त-स्त्रैण चित्त कहता हूं, स्त्री का चित्त हो जाता है, द्वितीय हैसियत का हो जाता है। स्त्री प्रथम हैसियत की नहीं। क्योंकि कुछ स्त्रियों के पास पुरुष का चित्त होता है। और हो जाती है। पुरुष चित्त का उपयोग करूंगा, तब भी मेरा मतलब चित्त पर आग्रह अगर ठीक समझें, तो उस समाज में पुरुष स्त्रियों जैसा व्यवहार है। क्योंकि कुछ पुरुषों के पास स्त्रियों का चित्त होता है। स्त्रैण चित्त कर रहे हैं, स्त्रियां पुरुष जैसा व्यवहार कर रही हैं। पुरुष अनाक्रामक एक में सबको देख सकता है आसानी से। हो जाते हैं, स्त्रियां आक्रामक हो जाती हैं। इसलिए स्त्री मोनोगेमस है; एक को ही पकड़ना चाहती है। यह | चित्त को समझ लेना आप। जब मैं स्त्रैण और पुरुष कह रहा हूं, दनिया में जो परिवार है. पतिव्रत धर्म है. एक पति है. यह स्त्री की तो स्त्री और परुष के शरीर से मेरा मतलब नहीं है. चित्त के ढंग से पकड़ है। स्त्री एक से ही शुरू कर सकती है। हां, बढ़ती चली जाए, मतलब है। तो ऐसी घटना आ सकती है कि एक में सबको देख ले। स्त्रैण चित्त एक पर रुकना चाहता है। इसलिए स्त्री जितना प्रगाढ़ लेकिन पुरुष अनेक से शुरू कर सकता है। और ऐसी घटना | प्रेम कर सकती है, पुरुष नहीं कर पाता। पुरुष का प्रेम बिखर जाता आ सकती है कि अनेक में एक को देख ले। पुरुष जो है वह | है। स्त्री का प्रेम एक पर, एक टूट, एक धारा में गिरता रहता है। पोलीगेमस। पुरुष चित्त और स्त्री चित्त का यह फासला, इन दो और इसीलिए सारी दुनिया में अब तक स्त्री और पुरुष के बीच हम चीजों का फासला निर्मित करता है। कभी सुलह पैदा नहीं करवा पाए। क्योंकि उनके चित्त के ढंग इतने इसलिए पुरुष बहु पर दौड़ता रहता है, अनेक पर दौड़ता रहता | | भिन्न हैं कि कभी सुलह हो पाएगी, यह कठिन दिखाई पड़ता है। है। एक से उसे तृप्ति नहीं होती। होती ही नहीं। सब-सब रूपों में, जब तक कि हम चित्त के ढंग को बदल न लें, कलह जारी रहेगी। जीवन की सब विधाओं में, सब दिशाओं में पुरुष अनेक पर दौड़ता | क्योंकि स्त्री एक को चाहती है, पुरुष अनेक को चाहता है। यह रहता है। स्त्री को एक से तृप्ति हो जाती है। और अगर स्त्री भी कलह का बुनियादी कारण है। और इसलिए स्त्री ईर्ष्यालु हो जाती अनेक पर दौड़ती है, तो उसके भीतर पुरुष चित्त की प्रधानता है, है, सदा भयभीत रहती है कि पुरुष कहीं किसी और स्त्री को न स्त्री चित्त की कमी है। चाहने लगे। ईर्ष्यालु होने के कारण उसकी सारी प्रकृति कुरूप हो पश्चिम की स्त्री ने अनेक पर दौड़ना शुरू किया है, क्योंकि | जाती है। और पुरुष झूठा हो जाता है, असत्य बोलने लगता है। पश्चिम की स्त्री धीरे-धीरे पुरुष जैसी होती जा रही है। उसकी क्योंकि उसे भय रहता है कि कहीं दूसरे की तरफ जो प्रेम से देखी साइक में, उसके चित्त में बुनियादी परिवर्तन हो रहे हैं। और बहुत गई आंख, उसकी स्त्री की पकड़ में न आ जाए। तो व्यर्थ की आश्चर्य न होगा कि थोड़े दिनों में पश्चिम का पुरुष एक पर ठहरने कहानियां गढ़ता रहता है, झूठी बातें करता रहता है। की कोशिश में लग जाए! क्योंकि प्रकृति संतुलन कभी भी नहीं यह मजबूरी है चित्त की। और इस चित्त को अगर हम ठीक से खोती है। | समझ लें, तो ही हम समझ पाएंगे कि ये जो दो छोर कृष्ण ने कहे जिन समाजों में बहुपत्नी प्रथा थी, उन समाजों में चित्त का एक हैं, ये क्यों कहे हैं। ढंग हुआ। और जिन समाजों में बहुपति प्रथा रही है, कि एक स्त्री __पुरुष अगर जाएगा, तो अनेक में एक की खोज उसके लिए बहुत-से पति कर सके, उन समाजों के पूरे चित्त की व्यवस्था बदल | | अध्यात्म में भी आसान होगी। यद्यपि आध्यात्मिक उपलब्धि पर जाती है। जिस समाज में एक स्त्री बहुत पति कर लेती है, उस पुरुष भी मिट जाता है, स्त्री भी मिट जाती है। लेकिन जब तक यह समाज में पुरुष कमजोर हो जाता है और स्त्री बलवान हो जाती है। नहीं हुआ, तब तक हमारी प्रत्येक साधना में, हमारे प्रत्येक कर्म में पुरुष स्त्रैण हो जाता है, स्त्री पुरुष-चेतना को पकड़ लेती है। हमारा चित्त मौजूद रहता है। ऐसे समाज हैं जमीन पर, जहां एक स्त्री बहुपति कर सकती है। | यही वजह है कि स्त्रियां स्टैटिक सोसायटी का आधार बन जाती लेकिन बड़े मजे की बात है, उनकी पूरी सामाजिक व्यवस्था बदल | हैं, ठहरे हुए समाज का। स्त्रियां बदलाहट बिलकुल पसंद नहीं जाती है। पूरी साइकोलाजी, पूरा मनस बदल जाता है। जहां एक | करतीं, या बहुत क्षुद्र ढंग की बदलाहट पसंद करती हैं। कपड़े, 210
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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