SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगाभ्यास-गलत को काटने के लिए लिया है, वह आपके भीतर अटका रहेगा, वह आपका पीछा करेगा। आने का इकट्ठा बहुत पड़ेगा। एक-एक पैसे का तुम सब का रह इसलिए हम बड़ी अजीब हालत में हैं। जब आप चौके में बैठकर जाएगा। किसी रास्ते पर, किसी मार्ग पर अगर अनंत में कभी भोजन करते हैं, तब दफ्तर में होते हैं। जब दफ्तर में बैठे होते हैं, तो | | मिलना हो गया, तो मैं चुका दूंगा। बस, इतना ही बोझ है, बाकी अक्सर भोजन कर रहे होते हैं। यह सब चलता रहता है! सब निपटा हुआ है। यह सब इतना ज्यादा कनफ्यूजन मस्तिष्क में इसलिए पैदा होता आप मरते वक्त कितने आने के बोझ से भरे होंगे? कोई हिसाब है कि जब भोजन कर रहे हैं, तब सम्यक रूप से भोजन कर लें। लगाना मुश्किल हो जाएगा। न मालूम कितना अटका रह जाएगा सब छोड़ें उस वक्त। जितनी जरूरी चेष्टा है भोजन करने की, सब तरफ! किसी को गाली दी थी, माफी नहीं मांग पाए। किसी पर जितना ध्यान देना जरूरी है भोजन को, उतना ध्यान दे दें। जितना क्रोध किया था, क्षमा नहीं कर पाए। किसी को प्रेम करने के लिए चबाना है, उतना चबा लें। जितना स्वाद लेना है, उतना स्वाद ले कहा था, लेकिन कर नहीं पाए। किसी को सेवा का भरोसा दिया लें। जितना भोजन करना है, सम्यक चेष्टा पूरी भोजन की थाली पर था, लेकिन हो नहीं पाई। सब तरफ सब अधूरा अटका रह जाएगा। करके कृपा करके उठे, तो भोजन आपका पीछा नहीं करेगा; और | यह अटका, अधूरा ही आपको वापस नए जन्मों में लेता चला तृप्ति भी आएगी। जाएगा। ये असम्यक कर्म आपको वापस नए कर्मों में लेते चले जो भी काम करना है. उसे परा कर लें। परा किया गया काम. जाएंगे। और पिछला कर्म भी परा नहीं होता. इस जन्म का परा नहीं संयत किया गया काम, सस्पेंडेड, लटका हुआ नहीं रह जाता, और होता, और एडीशन, और भार बढ़ता चला जाता है। हल्के न हो व्यक्ति प्रतिपल बाहर हो जाता है—प्रत्येक कर्म के बाहर हो जाता पाएंगे फिर। है। और तब वैसा व्यक्ति कभी भी भार, बर्डन नहीं अनुभव करता कर्मों का विचार, कर्म के सिद्धांत के पीछे जो मूल आधार है, मस्तिष्क पर। निर्भार होता है, वेटलेस होता है, हल्का होता है। सब वह यही है कि वही व्यक्ति कर्म से मुक्त हो जाता है, जो सब कर्मों को संयत रूप से कर लेता है और उनके बाहर हो जाता है। फिर सुकरात मर रहा है, तो किसी मित्र ने पूछा कि कोई काम बाकी उसकी कोई मृत्यु नहीं है, उसका मोक्ष है; क्योंकि लौटने का कोई तो नहीं रह गया? सुकरात ने कहा, मेरी कोई आदत कभी किसी कारण नहीं है। काम को बाक़ी रखने की नहीं थी। मैं हमेशा ही तैयार था मरने को। कभी भी मौत आ जाए. मेरा काम परा. साफ था। सब जो करने योग्य था, मैंने कर लिया था। जो नहीं करने योग्य था, नहीं किया यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते । था। मेरा हिसाब सदा ही साफ रहा है। मेरे खाते-बही. कभी भी निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ।। १८।। मौत का इंस्पेक्टर आ जाए, देख ले, तो मैं वैसा नहीं डरूंगा, जैसा इस प्रकार योग के अभ्यास से अत्यंत वश में किया हुआ इनकम टैक्स के इंस्पेक्टर को देखकर कोई भी दुकानदार डरता है, चित्त जिस काल में परमात्मा में ही भली प्रकार स्थित हो ऐसा सुकरात ने कहा होगा। सिर्फ एक छोटी-सी बात रह गई, वह जाता है, उस काल में संपूर्ण कामनाओं से स्पृहारहित हुआ भी मुझे पता नहीं था, नहीं तो मैं सुबह उस आदमी को कहता। पुरुष योगयुक्त है, ऐसा कहा जाता है। एचीलियस नाम के आदमी ने एक मर्गी मझे उधार दी थी. छः | आने उसके बाकी रह गए हैं। बस इतना ही सस्पेंडेड है। बस, और कुछ भी नहीं है। वह भी मैं चुका देता, लेकिन जेल में पड़ा हूं और 'ग के अभ्यास से संयत, शांत, शुद्ध हुआ चित्त। इस छः आने कमाने का भी कोई उपाय मेरे पास नहीं है। अचानक मुझे बात को ठीक से समझ लें। जेल में ले आए, अन्यथा मैं उसके छः आने चुका देता। एक काम योग के अभ्यास से! भर इस पृथ्वी पर मेरा अधूरा पड़ा है, वे छः आने एचीलियस को | हमारा अशुद्ध होने का अभ्यास गहन है। हमारे जटिल होने की देने हैं। मेरे मरने के बाद तुम मेरे मित्र, एक-एक, दो-दो पैसा कुशलता अदभुत है। स्वयं को उलझाव में डालने में हम कुशल इकट्ठा करके उसे दे देना, ताकि बहुत भार मुझ पर न रह जाए। छः कारीगर हैं। हमने अपने कारागृह की एक-एक ईंट काफी मजबूत
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy