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________________ <अपरिग्रही चित्त > व्यक्ति और वस्तु के बीच सेतु बढ़ते चले जाते हैं। उसका कुछ | जाता हुआ दिखाई भी नहीं पड़ता है! जिंदा आदमी अनप्रेडिक्टेबल कारण है, वह मैं आपको खयाल दिला दूं। है। कल क्या होगा, नहीं कहा जा सकता। जिंदा आदमी एक यह बात थोड़ी-सी अजीब लगेगी, लेकिन ऐसा हुआ है; ऐसा स्वतंत्रता है। हो रहा है। उसके होने के बुनियादी कारण हैं। व्यक्ति और व्यक्ति तो व्यक्तियों के साथ तो बड़ी कठिनाई हो जाती है, इसलिए के बीच सेतु रोज कम होते चले जाते हैं, क्योंकि व्यक्तियों के साथ आदमी धीरे-धीरे व्यक्तियों की मालकियत छोड़कर वस्तुओं की सेतु बनाने में बड़ी झंझटें और कांप्लेक्सिटीज हैं, बड़ा उपद्रव है। | मालकियत पर हटता चला जाता है। तिजोड़ी में एक करोड़ रुपया सबसे बड़ा उपद्रव तो यही है कि दूसरा भी जीवित व्यक्ति है। बंद है, तो उनकी मालकियत ज्यादा सुरक्षित मालूम होती है। और जब आप उसको गुलाम बनाने की कोशिश करते हैं, तब वह भी | आप एक करोड़ लोगों का वोट लेकर प्रधान मंत्री बन गए हैं, तो बैठा नहीं रहता। वह भी जोर से अपना जाल फेंकता है। पति अपने पक्का मत समझना कि अगले इलेक्शन में वे साथ देने वाले हैं। को कितना ही कहता हो कि मैं स्वामी हूं, मालिक हूं, बहुत गहरे में | अनप्रेडिक्टेबल हैं। वह एक करोड़ लोगों की मालकियत भरोसे की जानता है कि जिस दिन मालिक बना है किसी स्त्री का, उसी दिन | नहीं है। वह एक करोड़ रुपए जो तिजोड़ी में बंद हैं, भरोसे के हैं। इस वह स्त्री मालिक बन गई है, या उसी दिन से चेष्टा में लगी है। सतत | | अर्थ में भरोसे के हैं कि मुर्दा जड़ चीज है; मालकियत आपकी है। संघर्ष चल रहा है मालकियत की घोषणा का कि कौन मालिक है! ___ व्यक्तियों के ऊपर मालकियत खतरे का सौदा है। इसलिए वह लड़ाई जिंदगीभर जारी रहेगी। जैसे-जैसे आदमी के पास समझ बढ़ती जाती है—नासमझी से भरी व्यक्तियों के साथ संघर्ष स्वाभाविक है, क्योंकि सभी स्वाधीन | समझ-वैसे-वैसे वह व्यक्तियों से संबंध कम और वस्तुओं से होना चाहते हैं। लेकिन नासमझी के कारण किसी को पराधीन करके संबंध बढ़ाए चला जाता है। स्वाधीन होना चाहते हैं, जो कि कभी नहीं हो सकता। जिसने दूसरे इसलिए बड़े परिवार टूट गए। क्योंकि बड़े परिवारों में बड़े को पराधीन किया, वह स्वयं भी पराधीन हो जाएगा। स्वाधीन तो व्यक्तियों का जाल था। लोगों ने कहा, इतने बड़े परिवार में नहीं केवल वही हो सकता है, जिसने किसी को पराधीन करने की चलेगा। व्यक्तिगत परिवार निर्मित हुए। पति-पत्नी, एक-दो योजना ही नहीं बनाई। बच्चे-पर्याप्त। लेकिन अब वे भी बिखर रहे हैं। वे भी बच नहीं व्यक्ति के साथ जटिलताएं बढ़ती चली जाती हैं, वस्तु के साथ सकते। क्योंकि पति और पत्नी के बीच भी संबंध बहुत जटिल होता जटिल मामला नहीं है। आपने एक कुर्सी घर में लाकर रख दी है चला जाता है। आने वाले भविष्य में शादी बचेगी, यह कहना बहुत एक कोने में, तो वहीं रखी रहेगी। आप ताला लगाकर वर्षों बाद भी मुश्किल है। सिर्फ वे ही लोग कह सकते हैं, जिन्हें भविष्य का कोई लौटें, तो कुर्सी वहीं मिलेगी। बहुत आज्ञाकारी है। लेकिन एक पत्नी भी बोध नहीं होता। बच नहीं सकती है। खतरे भारी पैदा हो गए हैं। . को उस तरह बिठा जाएंगे, या पति को या बेटे को या बेटी को, तो डर यही है कि वह बिखर जाएगी। यह असंभव है। जब तक आप लौटेंगे, तब तक सब दुनिया बदल लेकिन इसकी जगह वस्तुओं का परिग्रह बढ़ता चला जाता है। चुकी होगी। वहीं तो नहीं मिलने वाला है कोई भी। | एक आदमी दो मकान बना लेता है, दस गाड़ियां रख लेता है, हजार जीवित व्यक्तित्व की अपनी आंतरिक स्वतंत्रता है, वह काम | रंग-ढंग के कपड़े पहन लेता है। घर में समा लेता है। चीजें इकट्ठी करेगी। चेतना है, वह काम करेगी। वस्तु से हम अपेक्षा कर सकते करता चला जाता है। चीजों पर मालकियत सुगम मालूम पड़ती है। हैं; व्यक्ति से अपेक्षा करनी बहुत कठिन है। क्योंकि कल व्यक्ति | | कोई झगड़ा नहीं, कोई झंझट नहीं। चीजें जैसी हैं, वैसी रहती हैं। क्या करेगा, नहीं कहा जा सकता। व्यक्ति अनप्रेडिक्टेबल है। जो कहो, वैसा मानती हैं। वस्तुओं की भविष्यवाणी हो सकती है; व्यक्तियों की भविष्यवाणी | तो धीरे-धीरे आदमी चीजों की मालकियत पर ज्यादा उतरता नहीं हो सकती। चला जाता है। जितनी पुरानी दुनिया में जाएंगे, उतना ही व्यक्तियों इसलिए जितना मरा हुआ आदमी होता है, उतना ज्योतिषी उसके | | के संबंध ज्यादा मालूम पड़ेंगे। जितनी आज की दुनिया में आएंगे, बाबत सफल हो जाता है बताने में। जिंदा आदमी हो, तो बहुत उतने व्यक्तियों के संबंध कम, और व्यक्तियों और वस्तुओं के मुश्किल होती है। और मुर्दो के सिवाय ज्योतिषियों के पास कोई | संबंध ज्यादा हो जाएंगे। इसलिए भविष्य के लिए अपरिग्रह का सूत्र 107
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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