SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 आपको, आपके चारों तरफ फैला हुआ संसार, वास्तविक कम, | में ठहर गया। स्वप्नवत ज्यादा प्रतीत होगा। जो कि बहत गहरा उपयोग है। अगर और जब आंख नासाग्र होती है. जब दष्टि नासाग्र होती है. तो आप ऐसी अर्धखली आंख रखकर नासाग्र देखेंगे, तो चारों तरफ आपको एक और अदभत अनभव होगा, जो उसका दसरा हिस्सा जो जगत आपको बहुत वास्तविक, ठोस मालूम पड़ता है, वह | है। जब दृष्टि नासाग्र होगी, तो आपको आज्ञा चक्र पर जोर पड़ता स्वप्नवत प्रतीत होगा। हुआ मालूम पड़ेगा। दोनों आंखों के मध्य में, दोनों आंखों के मध्य इस जगत के ठोसवत प्रतीत होने में आपके देखने का ढंग ही | | बिंदु पर, इम्फेटिकली, आपको जोर पड़ता हुआ मालूम पड़ेगा। कारण है। इसलिए जिसे ध्यान में जाना है, उसे जगत वास्तविक न जब आंख आधी खुली होगी और आप नासाग्र देख रहे होंगे, तो मालूम पड़े, तो अंतर्यात्रा आसान होगी। जगत धुंधला और नासाग्र तो आप देखेंगे, लेकिन नासांत पर जोर पड़ेगा। देखेंगे नाक ड्रीमलैंड मालूम पड़ने लगेगा। के अग्र भाग को और नाक के अंतिम भाग, पीछे के भाग पर जोर कभी देखना आप, बैठकर सिर्फ नासाग्र दृष्टि रखकर, तो बाहर पड़ना शुरू होगा। वह जोर बड़े कीमत का है। क्योंकि वहीं वह बिंदु की चीजें धीरे-धीरे धुंधली होकर स्वप्नवत हो जाएंगी। उनका है, वह द्वार है, जो खुले तो ऊर्ध्वगमन शुरू होता है। ठोसपन कम हो जाएगा, उनकी वास्तविकता क्षीण हो जाएगी। | आज्ञा चक्र के नीचे संसार है, अगर हम चक्रों की भाषा में उनका यथार्थ छिन जाएगा, और ऐसा लगेगा जैसे कोई एक बड़ा | समझें। आज्ञा चक्र के ऊपर परमात्मा है, आज्ञा चक्र के नीचे संसार स्वप्न चारों तरफ चल रहा है। है। अगर हम चक्रों से विभाजन करें, तो आज्ञा चक्र के नीचे, दोनों यह एक कारण, बाहरी। बहुत कीमती है। क्योंकि संसार स्वप्न आंखों के मध्य बिंदु के नीचे जो शरीर की दुनिया है, वह संसार से मालूम पड़ने लगे, तो ही परमात्मा सत्य मालूम पड़ सकता है। जब जुड़ी है। और आज्ञा चक्र के ऊपर का जो मस्तिष्क का भाग है, वह तक संसार सत्य मालूम पड़ता है, तब तक परमात्मा सत्य मालूम | परमात्मा से जुड़ा है। उस पर जोर पड़ने से वह जोर पड़ना एक नहीं पड़ सकता। इस जगत में दो सत्यों के होने का उपाय नहीं है। तरह की चाबी है, जिससे बंद द्वार खोलने के लिए चेष्टा की जा इसमें एक तरफ से सत्य टूटे, तो दूसरी तरफ सत्य का बोध होगा। रही है। वह सीक्रेट लाक है। कहें कि उसको खोलने की कुंजी यह आपसे आंख बंद कर लेने को कहा जा सकता था। लेकिन आंख है। जैसा कि आपने कई ताले देखे होंगे, जिनकी चाबी नहीं होती, बंद कर लेने से संसार स्वप्नवत मालूम नहीं पड़ेगा। बल्कि डर यह नंबर होते हैं। नंबर का एक खास जोड़ बिठा दें, तो ताला खुल है कि आंख बंद हो जाए, तो आप भीतर सपने देखने लगेंगे, जो कि जाएगा। नंबर का खास जोड़ न बिठा पाएं, तो ताला नहीं खुलेगा। सत्य मालूम पड़ें। अगर आंख पूरी बंद है, तो डर यह है कि आप यह जो आज्ञा चक्र है, इसके खोलने की एक सीक्रेट की है, एक रेवरी में चले जाएंगे, आप दिवास्वप्न में चले जाएंगे। | गुप्त कुंजी है। और वह गुप्त कुंजी यह है कि जो शक्ति, जो विद्युत पश्चिम में एक विचारक है, रान हुबार्ड। वह ध्यान को भूल से हमारी आंखों से बाहर जाती है, उसी विद्युत को एक विशेष कोण दिवास्वप्न से एक समझ बैठा। आंख बंद करके स्वप्न में खो जाने | पर रोक देने से उस विद्युत का पिछला हिस्सा आज्ञा चक्र पर चोट को ध्यान समझ बैठा। जानकर भारत में-आंख न तो पूरी खुली | | करने लगता है। वह चोट उस दरवाजे को धीरे-धीरे खोल देती है। रहे, क्योंकि पूरी खुली रही तो बाहर की दुनिया बहुत यथार्थ है; न | | वह दरवाजा खुल जाए, तो आप एक दूसरी दुनिया में, ठीक दूसरी पूरी बंद हो जाए, नहीं तो भीतर के स्वप्नों की दुनिया बहुत यथार्थ दुनिया में छलांग लगा जाते हैं। नीचे की दुनिया बंद हो गई। हो जाएगी। दोनों के बीच में छोड़ देना है। वह भी एक संतुलन है, इसमें तीसरी बात कृष्ण ने कही है, ब्रह्मचर्य व्रत में ठहरा हुआ। वह भी एक समता है, वह भी दो द्वंद्वों के बीच में एक ठहराव है। ध्यान के इस क्षण में जब आधी आंख खुली हो, नासाग्र हो दृष्टि न खुली पूरी, न बंद पूरी-अर्धखुली, नीमखुली, आधी खुली। | और आज्ञा चक्र पर चोट पड़ रही हो, अगर आपके चित्त में जरा वह जो आधी खुली आंख है, उसका बड़ा राज है। भीतर आधी | भी कामवासना का विचार आ गया, तो वह जो द्वार खोलने की खुली आंख से सपने पैदा करना मुश्किल है और बाहर की दुनिया कोशिश चल रही थी, वह समाप्त हो गई; और आपकी समस्त को यथार्थ मानना मुश्किल है। जैसे कोई अपने मकान की देहलीज जीवन ऊर्जा नीचे की तरफ बह जाएगी। क्योंकि जीवन ऊर्जा उसी पर खड़ा हो गया; न अभी भीतर गया, न अभी बाहर गया, बीच केंद्र की तरफ बहती है, जिसका स्मरण आ जाता है।
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy