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________________ ८ अंतर्यात्रा का विज्ञान > देखकर लगेगा कि या तो कृष्ण गलत होने चाहिए, अगर कबीर आसन? और बिलकुल ठीक कहते हैं। बात बिलकुल ठीक लगती सही हैं। या कबीर गलत होने चाहिए, अगर कृष्ण सही हैं, जैसा है। लेकिन फिर भी जहां हम हैं, वहां बिलकुल ठीक नहीं है। कि सारी दुनिया में चलता है। और सारे वक्तव्य इस जगत में रिलेटिव हैं, सापेक्ष हैं। और जो हम सदा ऐसा सोचते हैं, इन दोनों में से दोनों तो सही नहीं हो | लोग भी एब्सोल्यूट, निरपेक्ष वक्तव्य देने की आदत से भर जाते सकते। हां, दोनों गलत हो सकते हैं। लेकिन दोनों सही नहीं हो | | हैं, वे हमारे किसी काम के सिद्ध नहीं होते। सकते। ___ जैसे कृष्णमूर्ति हैं। उनके सारे वक्तव्य निरपेक्ष हैं, एब्सोल्यूट हैं, कबीर तो कहते हैं, फेंक दो यह सब। इस सबसे कुछ न होगा। और इसलिए बिलकुल बेकार हैं। सही होते हुए भी बिलकुल बेकार और कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि इस सबसे यात्रा शुरू होगी! हैं। वर्षों कोई सुनता रहे; वहीं खड़ा रहेगा जहां खड़ा था, इंचभर क्या कारण है? और मैं कहता हूं, दोनों सही हैं। कारण सिर्फ इतना यात्रा नहीं होगी। क्योंकि जिन चीजों से हम यात्रा कर सकते हैं, उन है कि कबीर वहां से बोल रहे हैं, जहां वे खड़े हैं। और कृष्ण वहां सबका निषेध है। और बात बिलकुल सही है, इसलिए समझ में से बोल रहे हैं, जहां अर्जुन खड़ा है। कबीर वह बोल रहे हैं, जो | | आ जाएगी कि बात बिलकुल सही है। समझ में आ जाएगी और उनके लिए सत्य है। कृष्ण वह बोल रहे हैं, जो कि अर्जुन के लिए | अनुभव में कुछ भी न आएगा। और समझ और अनुभव के बीच सत्य हो सके। | इतना फासला बना रहेगा कि उसकी पूर्ति कभी होनी संभव नहीं है। गहरे अर्थों में क्या फर्क पड़ता है ? आत्मा का कोई आसन होता | और कृष्णमूर्ति को सुनने वाले, चालीस साल से सुनने वाले है? गड्ढे में बैठ गए, तो आत्मा न मिलेगी? ऊंची जमीन पर बैठ लोग कभी मेरे पास आते हैं। वे कहते हैं कि हम चालीस साल से गए, तो आत्मा न मिलेगी? अगर ऐसी छोटी शर्तों से आत्मा का | सुन रहे हैं। हम सब समझते हैं कि वे क्या कहते हैं। बिलकुल ठीक मिलना बंधा हो, तो बड़ा सस्ता खेल हो गया! समझते हैं। इंटलेक्चुअल अंडरस्टैंडिंग हमारी बिलकुल पूरी है। नहीं; आत्मा तो मिल जाएगी कहीं से भी। फिर भी, जहां हम लेकिन पता नहीं, कुछ होता क्यों नहीं है! खड़े हैं, वहां इतनी ही छोटी चीजों से फर्क पड़ेगा, क्योंकि हम इतने अगर उनसे कहो कि आसन ऐसा लगाना, तो वे कहेंगे, आप ही छोटे हैं। जहां हम खड़े हैं, इतनी क्षुद्र बातों से भी भेद पड़ेगा। भी क्या बात कर रहे हैं। आत्मा का आसन से क्या लेना-देना? .. कभी ध्यान करने बैठे हों, तो खयाल में आएगा। अगर जरा अगर उनसे कहो कि दृष्टि इस बिंदु पर रखना, वे कहेंगे कि इससे तिरछी जमीन है, तो पता चलेगा कि उस जमीन ने ही सारा वक्त ले क्या होगा? अगर उनसे कहो, इस विधि का उपयोग करना, तो वे लिया। अगर पैर में एक जरा-सा कंकड़ गड़ रहा है, तो पता चलेगा | | कहते हैं, कृष्णमूर्ति कहते हैं, कोई मेथड नहीं है। कि परमात्मा पर ध्यान नहीं जा सका, कंकड़ पर ही ध्यान रह गया! वे बिलकुल ठीक कहते हैं, मगर आप गलत आदमी हैं। और एक जरा-सी चींटी काट रही है, तो पता चलेगा कि चींटी परमात्मा | | आपको नहीं सुनना चाहिए था उन्हें। बिना विधि के आपने जिंदगी से ज्यादा बड़ी है! परमात्मा की तरफ इतनी चेष्टा करके ध्यान नहीं में कुछ भी नहीं किया है, बिना मेथड के कुछ भी नहीं किया है। जाता और चींटी की तरफ रोकते हैं, तो भी ध्यान जाता है! | आपके मन की सारी समझ, आपके चित्त की सारी व्यवस्था मेथड जहां हम खड़े हैं अति सीमाओं में घिरे, अति क्षुद्रताओं में घिरे; और विधि से चलती है। जहां हमारे. ध्यान ने सिवाय क्षुद्र विषयों के और कुछ भी नहीं जाना एक बहुत बड़ा वक्तव्य आपने सुना कि किसी मेथड की कोई है, वहां फर्क पड़ेगा। वहां इस बात से फर्क पड़ेगा कि कैसे आसन | जरूरत नहीं है। आपका वह जो आलसी मन है, वह कहेगा कि बात में बैठे। इस बात से फर्क पड़ेगा कि कैसी भूमि चुनी। इस बात से | तो बिलकुल ठीक है, मेथड की क्या जरूरत है! झंझट से भी बच फर्क पड़ेगा कि किस चीज पर बैठे। क्यों फर्क पड़ जाएंगे? हमारे | गए। अब कोई विधि भी नहीं लगानी है। कोई आसन भी नहीं लगाना कारण से फर्क पड़ेगा। हमें इतनी छोटी चीजें परिवर्तित करती हैं, | है। कोई मंत्र नहीं पढ़ना है। कोई स्मरण नहीं करना है। कुछ नहीं जिसका कोई हिसाब नहीं है! करना है। मगर कुछ नहीं तो आप पहले से ही कर रहे हैं। अगर तो कबीर जैसे लोगों के वक्तव्य हमारे लिए खतरनाक सिद्ध भी | पहुंचना होता, तो बहुत पहले पहुंच गए होते। और अब आपको और हो जाते हैं। क्योंकि हम कहते हैं, ठीक है। कबीर कहते हैं कि क्या एक पक्का मजबूत खयाल मिल गया कि कुछ भी नहीं करना है। 89
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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