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________________ गीता दर्शन भाग-20 मुर्दा हो जाता है। की बात करते हैं। ईश्वर कहां है? एक कवि के संबंध में मैं सुनता हूं कि वह अगर अपने जूते भी। मैं उनकी आंखों में देखता हूं, तो मुझे पता लगता है, उनकी पहनता. तो इस भांति. जैसे जते जीवित हों। अगर वह अपने आंखें पथरीली हैं। उन्हें ईश्वर कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता। उसका सूटकेस को बंद करता, तो इस भांति, जैसे सूटकेस में प्राण हों। मैं | कारण यह नहीं है कि ईश्वर नहीं है। उसका कारण यह है कि उनके उसका जीवन पढ़ रहा था। उसका जीवन लिखने वालों ने लिखा है पास पत्थर की आंखें हैं। पत्थर की आंखों में ईश्वर दिखाई पड़ना कि हम सब समझते थे, वह पागल है। हम सब समझते थे, उसका मुश्किल है। उनकी आंखों में देखने की क्षमता ही नहीं मालूम दिमाग खराब है। वह दरवाजा भी खोलता, तो इतने आहिस्ते से कि पड़ती; उनकी आंखों में कुछ नहीं दिखाई पड़ता। दरवाजे को चोट न लग जाए। वह कपड़े भी बदलता, तो इतने प्रेम हां, उनकी आंखों में कुछ चीजें दिखाई पड़ती हैं; वे उन्हें मिल से कि कपड़ों का भी अपना अस्तित्व है, अपना जीवन है। | जाती हैं। धन दिखाई पड़ता है, उन्हें मिल जाता है। यश दिखाई पड़ता निश्चित ही पागल था, हम तो व्यक्तियों के साथ भी ऐसा है, उन्हें मिल जाता है। जो दिखाई पड़ता है, वह मिल जाता है। जो व्यवहार नहीं करते कि वे जीवित हैं। आपने कभी अपने नौकर को नहीं दिखाई पड़ता है, वह कैसे मिलेगा? हम जितना परमात्मा को इस तरह देखा कि वह आदमी है ? नहीं देखते हैं। चारों तरफ जीवन उघाड़ना चाहें, उतना उघाड़ सकते हैं। लेकिन परमात्मा को उघाड़ने है, उसको भी हम मुर्दे की तरह देखते हैं; लेकिन वह कवि, जिन्हें के पहले, उतना ही हमें स्वयं भी उघड़ना पड़ेगा। हम साधारणतया मर्दा चीजें कहते हैं, उन्हें भी जीवन की तरह प्रार्थना. कृष्ण कहते हैं. भजन. भजना यह अपनी तरफ से देखता। मित्र समझते कि पागल है। लेकिन अंत में मित्रों ने जब परमात्मा के लिए पुकार भेजना है। और जब भी कोई हृदयपूर्वक जीवन उसका उठाकर देखा, तो उन्होंने कहा कि अगर वह पागल प्रार्थना से भर जाता है, तो आमतौर से हमें पता नहीं है कि प्रार्थना था, तो भी ठीक था। और अगर हम समझदार हैं, तो भी गलत हैं। का असली क्षण वह नहीं है जब आप प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का क्योंकि उसकी जिंदगी में दुख का पता ही नहीं है। पूरी जिंदगी में | | असली क्षण तब शुरू होता है, जब आपकी प्रार्थना पूरी हो जाती वह कभी दुखी नहीं हुआ। है और आप प्रतीक्षा करते हैं। यह तो बाद में पता चला कि उस आदमी की जिंदगी में दुख की प्रार्थना के दो हिस्से हैं, ध्यान रखें। एक ही हिस्सा प्रचलित है। एक भी घटना नहीं है। उस आदमी को कभी किसी ने उदास नहीं दूसरे का हमें पता ही नहीं रहा है। और दूसरे का जिसे पता देखा। उस आदमी को कभी किसी ने रोते नहीं देखा। उस आदमी | | उसे प्रार्थना का ही पता नहीं है। की आंखों से आंसू नहीं बहे। आपने प्रार्थना की, वह तो एकतरफा बात हुई। प्रार्थना के बाद पूरी जिंदगी इतने आनंद की जिंदगी कैसे हो सकी? जब उससे | | अब मंदिर से भाग मत जाएं। अब प्रार्थना के बाद मस्जिद को छोड़ किसी ने पूछा, तो उसने कहा, मुझे पता नहीं। लेकिन एक बात मैं | | मत दें। अब प्रार्थना के बाद गिरजे से निकल मत जाएं, एकदम जानता हूं। मैंने अगर पत्थर को भी छुआ, तो इतने प्रेम से कि जैसे | दुकान की तरफ। अगर पांच क्षण प्रार्थना की है, तो दस क्षण वह परमात्मा हो। बस, इसके सिवाय मेरी जिंदगी का कोई राज नहीं रुककर प्रतीक्षा भी करें। उस प्रार्थना को लौटने दें। वह प्रार्थना आप है। फिर मुझे सब तरफ से आनंद ही लौटा है। | तक लौटेगी। और अगर नहीं लौटती है, तो समझना कि आपको जिस रूप में हम अस्तित्व के साथ व्यवहार करते हैं, वही | | प्रार्थना करने का ही कुछ पता नहीं। आपने प्रार्थना की ही नहीं है। व्यवहार हम तक लौट आता है। परमात्मा भी प्रतिपल रिस्पांडिंग। लेकिन आदमी प्रार्थना किया, और भागा! वह प्रतीक्षा तो करता है, प्रतिसंवादित होता है। बारीक है उसकी वीणा और स्वर हैं ही नहीं कि परमात्मा को पुकारा था, तो उसे पुकार का जवाब भी महीन: लेकिन प्रतिपल, जरा-सा हमारा कंपन उसे भी कंपा जाता | तो दे देने दो। जवाब निरंतर उपलब्ध होते हैं। कभी भी कोई प्रश्न है। जिस भांति हम कंपते हैं, उसी भांति वह कंपता है। अंततः जो | | खाली नहीं गया। और कभी कोई पुकार खाली नहीं गई। लेकिन हम हैं, वही हमारी जिंदगी में हमें उपलब्ध होता है। की गई हो तब। अगर सिर्फ शब्द दोहराए गए हों, अगर सिर्फ इसलिए अगर एक आदमी कहता हो कि मुझे कहीं ईश्वर नहीं कंठस्थ शब्दों को दोहराकर कोई क्रिया पूरी की गई हो और आदमी मिला...मेरे पास लोग आते हैं; वे कहते हैं कि ईश्वर? आप ईश्वर वापस लौट गया हो, तो फिर नहीं, फिर नहीं हो सकता।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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