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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-26 आप एक जनवरी उन्नीस सौ इकसठ का ऐसे ही वर्णन कर देंगे, जैसे | रहा है, और गालियां बक रहा है, और दुखी हो रहा है, और दुष्टता एक जनवरी उन्नीस सौ इकहत्तर का भी करना मुश्किल पड़ेगा। | बरत रहा है, तो मां सोचती है कि यह कहां से, कैसे ये सब कहां बिलकुल कर देंगे। बेहोशी की, सम्मोहन की अवस्था में सब याद | | सीख गया! दिखता है, कहीं दुष्ट-संग में पड़ गया है। आ जाएगा, सब उठ आएगा। दुष्ट-संग में बहुत बाद में पड़ा होगा; दुष्ट-संग में बहुत पहले अभी मनोवैज्ञानिक सम्मोहन के द्वारा जन्म के पहले दिन तक की नौ महीने तक पड़ चुका है। और नौ महीने बहुत संस्कार संस्कारित स्मृति तक ले जाने में समर्थ हो गए हैं। पहले दिन जब आपका जन्म | हो गए हैं। उनकी भी स्मृतियां हैं। लेकिन और भी गहरे लोग गए हुआ था, कुछ भी तो याद न होगी उसकी। लोग कहते हैं, इसलिए | हैं। पिछले जन्मों की स्मृतियों में भी गए हैं। मान लेते हैं कि हुआ था। अगर कोई दिक्कत आ जाए और सारे | कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन, जो तुझे पता नहीं है, वह मुझे पता है। प्रमाण पूछे जाएं, तो सिवाय उधार प्रमाणों के कोई प्रमाण न मिलेगा वे इतनी सरलता से कहते हैं कि जो तुझे पता नहीं है, वह मुझे पता आपके पास। कोई कहता है, इसलिए आप कहते हैं कि मैं पैदा | | है। वे इतनी सहजता से कहते हैं कि उनका वचन बड़ा प्रामाणिक हुआ था। लेकिन आपको कोई याद है? आप विटनेस हैं? उस | | और आथेटिक मालूम पड़ता है। घटना के गवाह हैं? आप कहेंगे, मैं तो गवाह नहीं हूं। तब बड़ी ध्यान रहे, झिझक कृष्ण में जरा भी नहीं है। जरा-सी भी झिझक मुश्किल है। आपके जन्म की गवाही आप न दे सकें, तो दूसरों की बताती है कि आदमी को खुद पता नहीं है। किसी और से पता गवाही का भरोसा क्या है? जन्म है आपका, गवाही है दूसरे की! होगा; सेकेंड हैंड पता होगा। लेकिन पहले दिन जन्म की स्मृति भी भीतर है। और जिन्होंने | | कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, जो तुझे पता नहीं है, वह मुझे पता है। और गहरे प्रयोग किए हैं, जैसे तिब्बत में लामाओं ने और गहरे | | हमारे और भी जन्म हुए हैं। मैं इसी जन्म की बात नहीं कर रहा हूं। प्रयोग किए हैं, तो मां के पेट में भी नौ महीने आप रहे। जन्म का लेकिन वे इतनी सरलता से कहते हैं, जरा भी झिझक नहीं। ठीक दिन हीं है. जिसको हम जन्म-दिन कहते हैं। उसके ठीक और एक बात और ध्यान देने योग्य है। दार्शनिकों और ऋषियों नौ महीने पहले असली जन्म हो चुका। जिसे हम जन्म-दिन कहते | के वचनों में एक फर्क दिखाई पड़ेगा। दार्शनिक जब भी बोलेंगे, तो हैं, वह तो मां के शरीर से मुक्त होने का दिन है, जन्म का दिन नहीं। हाइपोथेटिकल बोलेंगे। वे बोलेंगे, इफ, यदि ऐसा हो, तो ऐसा नौ महीने तक सेटेलाइट था आपका शरीर; मां के शरीर के साथ | होगा। ऋषि जब बोलेंगे, तो उनका बोलना स्टेटमेंट का होगा, घूमता था, उपग्रह था। अभी इतना समर्थ न था कि स्वयं ग्रह हो वक्तव्य का होगा। वे कहेंगे, ऐसा है। सके। इसलिए घूमता था; सेटेलाइट था। अब इस योग्य हो गया | इसलिए जब पहली बार उपनिषद का अनुवाद हुआ पश्चिम में, कि मां से मुक्त हो जाए, अब अलग जीवन शुरू करे। लेकिन जन्म | तो पश्चिम के विचारक बहुत मुश्किल में पड़े कि उपनिषद के लोग तो उसी दिन हो गया, जिस दिन गर्भ धारण हुआ है। | कैसे हैं! ये सीधा कह देते हैं कि ब्रह्म है। पहले बताना चाहिए, तो लामाओं ने इस पर और गहरे प्रयोग किए हैं और नौ महीने क्यों, क्या कारण है, क्या दलील है, क्या प्रमाण है; फिर निष्कर्ष की स्मृतियां भी उठाने में सफल हुए हैं। जब मां क्रोध में होती है, | देना चाहिए कि ब्रह्म है। ये तो सीधा कह देते हैं, कैटेगोरिकल, तब भी बच्चे की पेट में स्मृति बनती है। जब मां दुखी होती है, तब | हाइपोथेटिकल नहीं। सीधा वक्तव्य दे देते हैं कि ब्रह्म है। इसके भी बच्चे की स्मृति बनती है। जब मां बीमार होती है, तब भी बच्चे | आगे-पीछे कुछ भी नहीं। ये वक्तव्य ऐसे दे देते हैं, जैसे कोई कहे, की स्मृति बनती है। क्योंकि बच्चे की देह मां की देह के साथ | संयुक्त होती है। और मां के मन और देह पर जो भी पड़ता है, वह पश्चिम के जिन लोगों को यह चकित होने का कारण बना, संस्कारित हो जाता है बच्चे में। | उसका आधार है। पश्चिम में ऋषियों की वाणी बहुत कम पैदा हुई। इसलिए अक्सर तो माताएं जब बाद में बच्चों के लिए रोती हैं | पश्चिम में दार्शनिक बोलते रहे, फिलासफर्स बोलते रहे। वे जो भी और पीड़ित और परेशान होती हैं, उनको शायद पता नहीं कि उसमें | कहते हैं, उसको दलील, आर्युमेंट से कहते हैं। लेकिन ध्यान रहे, कोई पचास प्रतिशत हिस्सा तो उन्हीं का है, जो उन्होंने जन्म के | दलील और तर्क इस बात की खबर देते हैं कि यह एक निष्कर्ष है, पहले ही बच्चे को संस्कारित कर दिया है। अगर बच्चा क्रोध कर | अनुभव नहीं। और सत्य एक अनुभव है, निष्कर्ष नहीं। ट्रथ इज़ सूरज है।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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