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________________ गीता दर्शन भाग-20 प्रश्नः भगवान श्री, सुबह सैंतीसवें श्लोक में कहा | में बंदूक पकड़ रखी थी, तो भय गया, तो बंदूक भी आपने टिका गया है कि ज्ञानरूपी अग्नि सर्व कर्मों को भस्म कर |दी कोने में। प्रकाश बंदूक को हाथ से छुड़ा नहीं सकता। अंधेरा देती है। कृपया बताएं कि कर्म ज्ञानाग्नि से किस भांति हटता है; अंधेरे से भय हटता है, भय हटने से बंदूक छूट जाती है। प्रभावित होते हैं? ये सब परोक्ष घटित होती घटनाएं हैं। अज्ञान है हमारे समस्त कर्म-बंध का आधार। अनंत-अनंत जन्मों में जो भी हमने किया है, उस सबके पीछे अज्ञान है आधार। नाग्नि समस्त कर्मों को भस्म कर देती है। किस भांति | अगर अज्ञान न होता, तो हमें यह खयाल ही पैदा न होता कि मैंने सा कर्म ज्ञानाग्नि में भस्म होते हैं? किया है। अगर अज्ञान न होता, तो हम जानते, हमने कभी कुछ पहले तो यह समझ लेना पडे कि कर्म किस भांति किया नहीं है। हमारा अपना होना भी नहीं है। चेतना के निकट संगृहीत होते हैं। क्योंकि जो उनके संग्रह की अज्ञान में ही पता चलता है कि मैं हूं। अज्ञान नहीं है, तो परमात्मा प्रक्रिया है, वही विपरीत होकर उनके विनाश का उपक्रम भी है। यह | है। अज्ञान नहीं है, तो मेरा कृत्य जैसा कोई कृत्य नहीं है। सभी कृत्य भी समझ लेना जरूरी है कि कर्म क्या है। क्योंकि कर्म का जो परमात्मा के हैं। शुभ-अशुभ, अच्छा-बुरा, जो भी है, उसका है। स्वभाव है, वही उसकी मृत्यु का भी आधार बनता है। | सभी उसको समर्पित है, सभी उसको...। कर्म कोई वस्तु नहीं है; कर्म है भाव। कर्म कोई पदार्थ नहीं है; अज्ञान के कारण लगता है कि मैं करता हूं। अज्ञान संगृहीत कर्म है विचार। कर्म का जन्मदाता व्यक्ति नहीं है, कर्म का | | करता है कर्मों को कर्ता बनकर। फिर अज्ञान कल्पना करके योजना जन्मस्रोत आत्मा नहीं है; कर्म का जन्मदाता है अज्ञान। अज्ञान से करता है कर्मों की भविष्य में; वासना बनता है। अतीत में अज्ञान उत्पन्न हुआ विचार; अज्ञान में उठी भाव की तरंग; अज्ञान में भाव बनता है कर्म की स्मृति, किया मैंने। भविष्य में बनता है स्वप्न, कर्म और विचार के आधार पर हुआ कृत्य। सबके मूल में आधार है। | की वासना, करूंगा ऐसा। और इन दोनों के बीच में वर्तमान अज्ञान का। गुजरता। दो अज्ञानों के बीच में, अज्ञान की स्मृति और अज्ञान की ज्ञान वस्तुतः कर्मों का नाश नहीं करता; परोक्ष में करता है। कल्पना, इन दोनों के बीच में वर्तमान गुजरता। . वस्तुतः तो ज्ञान अज्ञान का नाश करता है। लेकिन अज्ञान के नाश ज्ञान की किरण के उतरते ही, ज्ञान की अग्नि के जलते ही, वह होने से कर्मों की आधारशिला टूट जाती है। जहां वे संगृहीत हुए, | अंधेरा हट जाता है, जो वासना करता है; वह अंधेरा हट जाता है, वह आधार गिर जाता है। जहां से वे पैदा होते हैं, वह स्रोत नष्ट हो | जो कर्ता होने का भाव रखता है। सब कर्म तत्क्षण क्षीण हो जाते हैं। जाता है। जहां से वे पैदा हो सकते थे भविष्य में, वह बीज दग्ध हो | तत्क्षण। ज्ञान के समक्ष कर्म बचता नहीं, वैसे ही जैसे प्रकाश के जाता है। समक्ष अंधकार बचता नहीं। ज्ञान वस्तुतः सीधे कर्मों को नष्ट नहीं करता; ज्ञान तो नष्ट करता इसलिए कृष्ण कहते हैं कि ज्ञानाग्नि में भस्म हो जाते हैं सब कर्म। है अज्ञान को। और अज्ञान है जन्मदाता कर्मों के बंधन का। अज्ञान यह सिंबालिक है, प्रतीकात्मक है। ज्ञान-अग्नि; कर्मों का भस्म नष्ट हुआ कि कर्म नष्ट हो जाते हैं। हो जाना-सब प्रतीक है। सूचना इतनी है कि कर्ता ज्ञान में नहीं __ ऐसा समझें, अंधेरा है भवन में। भय लगता है बहुत। जलाया | टिकता है; अहंकार ज्ञान में नहीं टिकता है। और अहंकार नहीं, तो दीया। कहते हैं हम, प्रकाश जल गया, भय नष्ट हो गया। लेकिन अहंकार के द्वारा संजोई गई कर्म की सारी व्यवस्था टूट जाती और सच ही प्रकाश भय को सीधा कैसे नष्ट कर सकता है? प्रकाश तो नष्ट हो जाती है। नष्ट करता है अंधेरे को। अंधेरे के कारण लगता था भय; अंधेरा | ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति ऐसा जानता ही नहीं कि मैंने कभी कुछ नहीं है, इसलिए भय भी नष्ट हो जाता है। | किया है। ऐसा भी नहीं जानता कि मैं कभी कुछ करूंगा। ऐसा भी प्रकाश तो भय को छू भी नहीं सकता; प्रकाश तो अंधेरे को ही | नहीं जानता कि मैं कुछ कर रहा हूं। ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति कर्ता विसर्जित कर देता है। लेकिन अंधेरा था आधार, स्रोत। गया | के भाव से कहीं भी ग्रसित नहीं होता। अंधेरा; भय भी गया। अगर उस भय से बचाव के लिए आपने हाथ । कर्म आते हैं, जाते हैं। ज्ञानी पर भी कर्म आते हैं, जाते हैं। वह 12280
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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