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________________ गीता दर्शन भाग-20 प्रकाश हो सकता है। नहीं तो अंधेरे में डूब जाने का डर है। और | | सोता है, तब फिर, राम। माना कि दिनभर सब उपद्रव था, धूल थी, अगर अंधेरा ही है, तो पैरों के रुक जाने का भय है कि वे जवाब दे | | अंधेरा था, गंदगी थी, कुरूपता थी; माना कि यथार्थ यही है, दें कि बढ़ने से फायदा क्या? कहीं भी जाओ, अंधेरा है। कहीं भी | लेकिन यथार्थ यह होना नहीं चाहिए। सुबह भी शुरुआत उससे, पहुंचो, अंधेरा है। कहीं कोई मंजिल नहीं प्रकाश की। | दिन भी स्मरण उसका, रात भी याद उसकी। आखिरी क्षण, सोते ईश्वर-जप का अर्थ है, रिमेंबरेंस। उसकी स्मृति, जो हो सकता | समय, नींद में उतरते समय भी राम। है, जो छिपा है और प्रकट नहीं है, लेकिन प्रकट हो सकता है। ___ और ध्यान रहे, आखिरी क्षण नींद के द्वार पर जब आदमी खड़ा लेकिन पुराने दिन में ईश्वर-जप कहना काफी था। होता है, जागरण बंद होता और नींद शुरू होती, तब जो ईश्वर-जप ___ एक आदमी सुबह उठता, सुबह नींद टूटती और पहला शब्द है, वह बहुत गहरा है। क्योंकि उस समय चेतना गेयर बदलती है. होता, राम। आ रहा है दिन सामने, जहां राम से मिलने की कम उस समय कांशसनेस गेयर बदलती है, एक गेयर से बिलकुल संभावना है, रावण से ही मिलने की संभावना है। ऊग रहा है दिन, | दूसरे गेयर में जाती है, एक जगत से बिलकुल दूसरे जगत में प्रवेश जहां अयोध्या नहीं होगी, लंका ही होगी। हो रही है सुबह, आदमी | करती है। बंद हुई वह दुनिया जो दुनिया थी; बंद हुए वे द्वार जो का जगत–जाल का, जंजाल का, प्रपंच का शुरू होगा। लेकिन दूसरों से जुड़े थे। अब अपने से जुड़ने का द्वार खुलता है, गहन आदमी सुबह उठकर पहली बात स्मरण करेगा, राम। वह यह कह | निद्रा का, जहां प्रकृति की गोद में हम वहीं पहुंच जाएंगे, जहां मूल रहा है, है सब बुरा, लेकिन शुरुआत मैं स्मरण से करता हूं शुभ की। | स्रोत है। अब राम को स्मरण करते हुए कोई सो गया। सोते-सोते, सांझ लौटा है थका-मांदा...दिन में भी, राह चलते भी हमने सोते-सोते स्मृति है ईश्वर की। वह गहरी भीतर बैठती चली जाती नमस्कार की जो विधि बनाई थी, उसे ईश्वर-जप से जोड़ दिया था। | है, अंतराल में उतरती चली जाती है। नींद के साथ ही, नींद की दुनिया में उतनी गहरी विधि कहीं भी नहीं है। अगर पश्चिम में दो गहराई के साथ ही एसोसिएट हो जाती है। ला आफ एसोसिएशन आदमी मिलते हैं और कहते हैं, गुड मार्निंग, सुबह अच्छी है; यह का उपयोग है। संयोग जोड़ देते हैं हम। साधारण लौकिक वक्तव्य है। उससे कहीं कोई संभावना का द्वार | | पावलव ने बहुत से प्रयोग किए। एक प्रयोग पावलव का सारी नहीं खुलता। इस मुल्क में, इस जमीन के टुकड़े पर, दो आदमी | दुनिया में प्रसिद्ध है बच्चे भी जानते हैं। एक कुत्ते को वह खाना' मिलते हैं, तो कहते हैं, राम-राम! जो आदमी सामने है, राम नहीं | खिलाता है, साथ में घंटी बजाता है। पंद्रह दिन तक रोटी दी जाती। है; रावण होने की संभावना ज्यादा है। लेकिन स्मरण राम का है। | रोटी सामने आती; कुत्ते की लार टपकती; पावलव घंटी बजाता। स्मरण संभावना का ही है। | फिर सोलहवें दिन रोटी नहीं आती; पावलव घंटी बजाता; कुत्ते के गुड मार्निंग बहुत सेकुलर है; उसमें कोई बहुत गहराई नहीं है। | मुंह से लार टपकती। अब घंटी से लार टपकने का कोई नैसर्गिक बहुत साधारण है, सुबह सुंदर है। लेकिन जब दो आदमी हाथ | संबंध नहीं है। घंटी से कहीं लार टपकती है किसी की? और कुत्ते जोड़ते हैं एक-दूसरे को और कहते हैं, राम! तो वे दूसरे की | | को तो धोखे में डालना मुश्किल है। घंटी से क्या लेना-देना? संभावनाओं को हाथ जोड़ते हैं। वे दूसरे में राम को देखने की | । लेकिन पंद्रह दिन तक जब भी रोटी सामने आई, घंटी बजी; घंटी आकांक्षा प्रकट करते हैं। हाथ जोड़ते हैं, सामने खड़े आदमी के और रोटी साथ-साथ जुड़ गईं। घंटी और रोटी दो चीजें न रहीं, एक लिए नहीं, भीतर छिपे राम के लिए। चीज हो गईं। अब आज सिर्फ घंटी बजी, तो रोटी का स्मरण आ दिन में जब भी, तो अपरिचित को भी राम। अपरिचित को गुड | गया; लार टपकने लगी! कुत्ते का शरीर भी प्रभावित हो गया, मार्निंग कोई करता नहीं। अभी भी गांवों में, ग्रामीण हिस्से से गुजरें, | एसोसिएशन से। तो जो नहीं जानते, वे भी राम-राम करते हुए गुजर जाएंगे। एक मौका | | हम भी ऐसे ही जीते हैं। सोते समय राम का स्मरण नींद की मिला, एक चेतना पास आई, उसको क्यों न ईश्वर-जप बना लिया | | गहराई से प्रभु के स्मरण को जोड़ने का प्रयोग है। नींद हमारे भीतर जाए! एक अवसर मिला, सामने छिपा हुआ राम आया, क्यों न उसे | | गहरी से गहरी चीज है। अगर उससे प्रभु का स्मरण जुड़ जाए, तो याद कर लिया जाए-खुद भी, और उसे भी याद दिला दी जाए! | | प्रभु भी हमारी गहरी से गहरी चीज हो जाता है। सांझ थका-मांदा आदमी लौटा है दिनभर के उपद्रव से। रात दूसरी बात, रात आखिरी समय जो हमारा अंतिम विचार होता है 168
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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