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________________ गीता दर्शन भाग-26 यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः। कामना का अर्थ है, दौड़। जहां मैं खड़ा हूं, वहां नहीं है आनंद। ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः । । १९ ।। जहां कोई और खड़ा है, वहां है आनंद। वहां मुझे पहुंचना है। और और हे अर्जुन, जिसके संपूर्ण कार्य कामना और संकल्प से मजे की बात यह है कि जहां कोई और खड़ा है, और जहां मुझे रहित है, ऐसे उस ज्ञान-अग्नि द्वारा भस्म हुए कमों वाले | आनंद मालूम पड़ता है, वह भी कहीं और पहुंचना चाहता है। वह पुरुष को ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं। | भी वहां होने को राजी नहीं है। उसे भी वहां आनंद नहीं है। उसे भी कहीं और आनंद है। कामना का अर्थ है, आनंद कहीं और है, समव्हेयर एल्स। उस कामना और संकल्प से क्षीण हुए, कामना और संकल्प जगह को छोड़कर जहां आप खड़े हैं, और कहीं भी हो सकता है 41 की मुक्तिरूपी अग्नि से भस्म हुए...। चेतना की ऐसी | आनंद। उस जगह नहीं है, जहां आप हैं। जो आप हैं, वहां आनंद दशा में जो ज्ञान उपलब्ध होता है, ऐसे व्यक्ति को | नहीं है। कहीं भी हो सकता है पृथ्वी पर; पृथ्वी के बाहर, ज्ञानीजन भी पंडित कहते हैं। इसमें दो-तीन बातें गहरे से देख लेने | चांद-तारों पर; लेकिन वहां नहीं है, जिस जगह को आप घेरते हैं। की हैं। जिस होने की स्थिति में आप हैं, वह जगह आनंदरिक्त एक तो, ज्ञानीजन भी उसे पंडित कहते हैं। है-कामना का अर्थ है। अज्ञानीजन तो पंडित किसी को भी कहते हैं। अज्ञानीजन तो कामना से मुक्ति का अर्थ है, कहीं हो या न हो आनंद, जहां आप पंडित उसे कहते हैं, जो ज्यादा सूचनाएं संगृहीत किए हुए है। हैं, वहां पूरा है; जो आप हैं, वहां पूरा है। संतृप्ति की पराकाष्ठा अज्ञानीजन तो पंडित उसे कहते हैं, जो शास्त्र का जानकार है। | कामना से मुक्ति है। इंचभर भी कहीं और जाने का मन नहीं है, तो अज्ञानीजन तो पंडित उसे कहते हैं, जो तर्कयुक्त विचार करने में कामना से मुक्त हो जाएंगे। कुशल है। कामना के बीज, कामना के अंकुर, कामना के तूफान क्यों उठते ज्ञानीजन उसे पंडित नहीं कहते। ज्ञानीजन तो उसे पंडित कहते हैं? क्या इसलिए कि सच में ही आनंद कहीं और है? या इसलिए हैं, जो कामना और संकल्प को छोड़कर चेतना की उस शुद्ध कि जहां आप खड़े हैं, उस जगह से अपरिचित हैं? . अवस्था को उपलब्ध होता है, जहां ज्ञान का सीधा साक्षात्कार है, । अज्ञानी से पूछिएगा, तो वह कहेगा, कामना इसलिए उठती है इमीजिएट रिअलाइजेशन है। अज्ञानीजन पंडित उसे कहते हैं, जो कि सुख कहीं और है। और अगर वहां तक जाना है, तो बिना कि ज्ञानीजनों ने जो कहा है, उसका संग्रह रखकर बैठा है। ज्ञानीजनकामना के मार्ग से जाइएगा कैसे? ज्ञानी से पूछिएगा, तो वह उसे पंडित कहते हैं, जो उधार नहीं है; जिसका सत्य से सीधा, बिना कहेगा, कामना के अंधड़ इसलिए उठते हैं कि जहां आप हैं, जो मध्यस्थ के, संपर्क है, संस्पर्श है। यह संस्पर्श उसका ही हो सकता | आप हैं, उसका आपको कोई पता ही नहीं है। काश, आपको पता है, जिसकी चेतना से कामना और संकल्प क्षीण हुए हों। इसलिए चल जाए कि आप क्या हैं, तो कामना ऐसे ही तिरोहित हो जाती है, दूसरी बात खयाल में ले लेनी जरूरी है कि कामना और संकल्प के | जैसे सुबह सूरज के उगने पर ओस-कण तिरोहित हो जाते हैं।' क्षीण होने का क्या अर्थ है? ___ जोसआ लिएबमेन ने एक छोटी-सी कहानी लिखी है। लिखा है. कामना का क्षीण होना तो हमारी समझ में आ सकता है जहां | एक यहूदी फकीर बहुत परेशान है, बहुत कष्ट में है। जैसे कि सभी वासनाएं गिर गईं, इच्छाएं गिर गईं; जहां कुछ पाने का खयाल गिर | लोग हैं। आदमी खोजना मुश्किल है, जो परेशान न हो। अब तक गया। कामना के विरोध में तो बहुत वक्तव्य हैं; पर थोड़ा उसे भी मैंने तो ऐसा आदमी नहीं देखा, जो परेशान न हो। गृहस्थ भी परेशान ठीक से समझ लें। फिर संकल्प भी क्षीण हो जाए! उसे समझना | | हैं, संन्यस्त भी परेशान हैं। गृहस्थ भी कहीं और पहुंचना चाहते हैं, थोड़ा कठिन पड़ेगा। | कहीं और-धन की यात्रा में, यश की यात्रा में। संन्यस्त भी कहीं कामना का अर्थ है, जो नहीं है, उसकी चाह। कामना के क्षीण | और पहुंचना चाहते हैं—आत्मा की यात्रा में, परमात्मा की यात्रा में, होने का अर्थ है, जो है, उस पर पूर्णताः। जो नहीं है, उसकी चाह | | मोक्ष की यात्रा में। लेकिन कहीं और पहुंचने की दौड़ जारी है। कामना है। जो है, उसके साथ पूरी तृप्ति, कामना से मुक्ति है। । और जो कहीं और पहुंचना चाहता है, वह तनाव में होगा,
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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