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________________ वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान हैं। हम खड़े देखते रहे। रहा है। वह जो बैठा हुआ है वृक्ष के नीचे आंखें मूंदे हुए, वही राम, और हम खड़े देखते रहे, ये दो चीजें हो गईं। | चांद-तारे और सूरज भी चला रहा है। जब आप भोजन कर रहे हैं, तो राम भोजन कर रहे हैं; आप जरा लेकिन वह दूसरी घटना है। पहले तो कर्म में अकर्म का अनुभव खड़े होकर देखें। आप जरा पीछे खड़े हो जाएं और देखें कि राम हो, तो फिर अकर्म में कर्म का अनुभव होता है। भोजन कर रहे हैं। राम को भूख लगी, राम को नींद लगी-आप | और जो इस गहन प्रतीति को उपलब्ध हो जाता है, कृष्ण कहते खड़े पीछे देख रहे हैं। यह पीछे खड़े होकर देखने की कला ही हैं, वह ज्ञान को, सत्य को, सत्य के अनुभव को उपलब्ध हो जाता कर्म को अकर्म बना देती है। तब व्यक्ति करते हुए न करने जैसा हो | जाता है। __ और साथ ही आपसे यह भी कह दूं कि जो व्यक्ति साक्षी बन और इससे भी जटिल बात दूसरी कृष्ण कहते हैं कि तब न करते | | जाता है, उसे निषिद्ध कर्म क्या है, यह पहले से तय नहीं करना हुए भी कर्ता जैसा हो जाता है। वह और भी कठिन है बात समझनी। | पड़ता। जब भी जरूरत होती है, जैसे ही वह साक्षी होता है, दिखाई यह तो पहली बात समझ में आ सकती है कि अगर साक्षी-भाव पड़ जाता है कि यह निषिद्ध है और यह निषिद्ध नहीं है। इसे सोचना हो, तो कर्म होते हुए भी ऐसा नहीं लगता कि मैं कर रहा हूं; देख | | नहीं पड़ता। उसकी हालत ठीक ऐसे हो जाती है...। रहा हूं कि हो रहा है। दूसरी बात और भी गहरी है कि न करते हुए | जैसे एक कमरा है अंधेरा। एक अंधा आदमी है; उसे कमरे के भी कर रहा है। इसका क्या मतलब हआ? बाहर जाना है, तो वह पूछता है, दरवाजा कहां है? स्वभावतः, अंधे __ असल में जब कोई व्यक्ति पहली घटना को उपलब्ध हो जाता | | आदमी को दरवाजे का पता नहीं है। वह पूछता है, दरवाजा कहां है कि करते हए न करने को अनभव करने लगता है. तब अनिवार्य है? अगर कोई बता दे, बता भी दे, तो भी कछ फर्क नहीं पड़ता। रूप से दूसरी गहराई भी उपलब्ध हो जाती है कि वह न करते हुए अंदाज हो जाता है, अनुमान हो जाता है; फिर भी लकड़ी से भी अनुभव करता है कि कर रहा हूं। क्यों? क्योंकि जो व्यक्ति ऐसा | टटोलता है कि दरवाजा कहां है! बता दिया, तो भी टटोलता है! जान लेता है कि मैं साक्षी हूं, वह व्यक्ति अपने को स्वयं से तो तोड़ | टटोलता है, तो भी सीधे दरवाजे पर थोड़े ही पहुंच जाता है। कौन लेता है और सर्व से जोड़ देता है। जो व्यक्ति ऐसा जान लेता है कि टटोलने वाला सीधा पहुंच सकता है? कभी खिड़की को छूता है, मैं नहीं कर रहा हूं, सब हो रहा है, मैं देख रहा हूं, उसका परमात्मा | कभी कुर्सी को छूता है। फिर टटोल-टटोलकर कहां दरवाजा है, और उसके बीच तादात्म्य हो जाता है। पता लगाता है। फिर वह कुछ भी नहीं करता। हवाएं चल रही हैं, तो भी वह | __ लेकिन आंख वाला आदमी? आंख वाला आदमी पूछता नहीं, जानता है, मैं ही चला रहा हूं। चांद-तारे घूम रहे हैं, तो वह जानता | | दरवाजा कहां है? निकलना है; उठता है और निकल जाता है। है, मैं ही चला रहा हूं। आपने कभी खयाल किया, जब आप दरवाजे से निकलते हैं. पहले राम कभी एक दिन बहुत खुशी में आ गए, तो उन्होंने हंसकर सोचते हैं, दरवाजा कहां है! फिर देखते हैं कि यह रहा दरवाजा। कहा कि तुम्हें पता है, मैंने ही सबसे पहले चांद-तारों को गति दी | फिर सोचते हैं, इसी से निकल जाएं। फिर निकल जाते हैं। ऐसी थी। मैंने ही सबसे पहले चांद-तारों को इशारा किया और चला | कोई प्रक्रिया होती है? नहीं; आपको पता ही नहीं चलता कि दिया। लोगों ने कहा, आप? आपने? भरोसा नहीं आता। तो राम | | दरवाजा कहां है और आप निकल जाते हैं। दिखता है, तो दरवाजे ने कहा, अगर तुम समझते हो कि राम ने चला दिया, तो ठीक | से निकल जाते हैं। समझते हो, भरोसे के लायक बात नहीं है। लेकिन मैं कह रहा हूं, | ठीक ऐसे ही जिस व्यक्ति की साक्षी-भावना गहरी हो जाती है, मैंने चला दिया, राम ने नहीं। फिर वही बात। उसे दिखाई पड़ता है, निषिद्ध कर्म क्या है। दिखाई पड़ता है। वह जो भीतर है, अगर जान ले कि मैं साक्षी हूं, तो परमात्मा के | टटोलना नहीं पड़ता, पूछना नहीं पड़ता, सोचना नहीं पड़ता, शास्त्र साथ एक हो जाता है। फिर जो भी हो रहा है, वही कर रहा है। फिर | | नहीं खोलने पड़ते। बस, दिखाई पड़ता है कि निषिद्ध कर्म क्या है। वह अगर खाली भी बैठा हुआ है, तो भी वही कर रहा है। हवाएं और जो निषिद्ध है, वह फिर नहीं किया जा सकता। और जो निषिद्ध भी वही चला रहा है, वृक्ष भी वही उगा रहा है, फूल भी वही खिला | नहीं है, वही किया जा सकता है। बस, वह निकल जाता है। आप 93
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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