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________________ पावन दीक्षा - परमात्मा से जुड़ जाने की प्रकाश होता है, भीतर क्षणिक अंधेरा होता है। जो ऐसी चित्त-दशा को उपलब्ध होता है, ऋषि कहते हैं, वह अनंत सूर्यों का अनुभव करता है। बारह तो केवल डज़न की सीमा है, दर्जन की सीमा है। इसलिए बारह । बारह का मतलब, ज्यादा से ज्यादा सूर्य उसके भीतर भर जाते हैं। यह प्रकाश बहुत भिन्न है। क्योंकि बाहर जो प्रकाश क्षणभर के लिए होता है या युगभर के लिए — उसका स्रोत है। सूरज से आता है, दीए से आता है। जो भी चीज किसी स्रोतं से आती है, वह स्रोत के चुक जाने पर नष्ट हो जाती है। दीए का तेल चुक जाता है, ज्योति बुझ जाती है। सूरज की ऊर्जा नष्ट हो जाती है, सूरज चुक जाता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि कोई चार हजार साल यह सूरज और चलेगा बस । चार हजार साल बाद यह बुझ जाएगा। इसके बुझने के साथ ही ये हमारे वृक्ष, यह हमारा जीवन, ये पौधे - पत्ते, ये हम, ये सब बुझ जाएंगे, क्योंकि उसकी किरणों के बिना हम नहीं हो सकते। जहां स्रोत है और सीमा है, वहां तो सभी चीजें क्षणिक होंगी। भीतर जो सूर्य है, अगर ठीक से कहें, तो वहां कोई स्रोत नहीं है, सोर्सलेस लाइट। वहां कोई स्रोत नहीं है, स्रोतरहित प्रकाश है। इसलिए वह कभी चुकता नहीं। इसलिए अंधेरा नहीं चुकता बाहर, क्योंकि अंधेरे का कोई स्रोत नहीं है। अंधेरा कहां से आता है, आपको पता है? कहीं से नहीं आता। बस अंधेरा है। उसका कोई स्रोत नहीं है, इसलिए तेल चुकता नहीं, जिससे कि अंधेरा आता हो। इसलिए दीया मिटता नहीं, जिससे अंधेरा आता हो। इसलिए सूरज समाप्त नहीं होता, जिससे अंधेरा आता हो । अंधेरा है। ठीक ऐसे ही जैसे बाहर अंधेरा है, भीतर प्रकाश है— बिना स्रोत के, स्रोतरहित । जो स्रोतरहित है, वही शाश्वत हो सकता है । जो स्रोतरहित है, वही नित्य हो सकता है। जो स्रोतरहित है, वही सदा हो सकता है। बाकी सब चुक जाता है। निरालंब होकर जो संयोग को उपलब्ध होते हैं- संयोग के संतोष को, संयोग की पावनता को, वे उस स्रोतरहित प्रकाश को पा लेते हैं। आज इतना ही । अब हम उस स्रोतरहित प्रकाश की तरफ चलें । दो-तीन बातें खयाल में ले लें। आंख पर सभी को पट्टियां बांधनी हैं। जिनके पास पट्टियां न हों, वे प्राप्त कर लें। कान में फोहा डाल लेना है, ताकि कान भी बंद हो जाएं। और अपनी शक्ति पूरी लगानी है । मुझे कहना न पड़े। दस मिनट जब पहले चरण में श्वास लेनी है तो पूरे प्राण लगा देने हैं। पूरे प्राण लगेंगे तो दूसरे चरण में प्रवेश होगा । फिर दूसरे चरण में इतना कूदना, इतना नाचना, चिल्लाना, हंसना, रोना है कि सारे प्राण संयुक्त हो जाएं। जब दूसरा चरण पूरी शक्ति से होगा तो तीसरे चरण में प्रवेश होगा । 79
SR No.002398
Book TitleNirvan Upnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1992
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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