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________________ चिकित्साकलिका | ४५ रूक्ष, तिक्त, कषाय तथा कटु रस के अत्यन्त सेवन से, उपवास से, वेगों के रोकने से, अति व्यायाम से, अत्यन्त सहवास से, नदियों में तैरने से, अपने से बलवान् मनुष्यों के साथ मल्लयुद्ध प्रभृति साहस से रात्रिजागरण से तथा श्यामाक, नीवार और कंगु प्रभृति कुधान्यों के प्रतिदिन उपयोग से, प्रावृट् ऋतु में, तथा भोजन के पचजाने पर शरीर में वात का प्रकोप होता है ॥ २९ ॥ वातप्रकोपणानन्तरं पित्तप्रकोपणान्याह - कट्वम्लोष्णविदाहितीक्ष्णलवण क्रोधोपवासातपस्त्रीसंपर्कतिलात सीदधिसुराशुक्तारनालादिभिः । भुक्ते जीर्यति भोजने च शरदि ग्रीष्मे सति प्राणिनां मध्याह्णे च तथार्द्धरात्रसमये पित्तप्रकोपो भवेत् ||३०|| प्राणिनां कट्वम्लोष्णादिभिः पित्तप्रकोपो भवेत् । कट्वम्लादीनामितेरतरद्वन्द्वः । कटूनि शुण्ठीमरिच सर्षपकुठेरकादीनि । अम्लानि जम्बीरकरमईपरूषकप्रभृतीनि । उष्णानि स्वभाववीर्याभ्यामग्निमाषादीनि । विदाहीनि मत्स्य कुलत्थ सर्षपशाकादीनि । तीक्ष्णानि हिंगुमरिचराजि - कादीनि । लवणानि रोमकसामुद्र बिड सौवर्चलादीनि । क्रोधः कोपः । उपवासोऽनशनम्। आतपः धर्मः । स्त्रीसंपर्को मैथुनम् । तिलातसीदधीनि सुप्रसिद्धान्येव । सुरा मद्योपलक्षणम् । शुक्तं चुक्रम्। आरनालं कांजिकम् । आदिग्रहणात् तक्रमस्तुप्रभृतीनि गृह्यन्ते । भोजने असने भुक्के अभ्यवहृते जीर्यति परिणमति सति, शरदि ग्रीष्मे च सति मध्याह्ने तथार्द्धरात्रसमये पित्तप्रकोपो भवेत् ॥३०॥ कटु तथा अम्ल रस उष्णवीर्य, विदाहि, हींग आदि तक्ष्णि द्रव्य एवं नमक प्रभृति के अत्यन्त उपयोग से, क्रोध, उपवास, आतप ( धूप ), अत्यन्त स्त्रीसहवास से, तिल, अलसी, दही, सुरा, शुक्त (सिरका), कांजी इत्यादि द्रव्यों के सेवन से, भोजन के पचते हुए, शरद और ग्रीष्म ऋतु में, मध्याह्न (दोपहर) तथा आधी रात के समय पित्त का प्रकोप होता है ॥३०॥ गुरुमधुरातिशीतदधिदुग्धनवान्नपयस्तिलविकृतीक्षुभक्षलवणातिदिवाशयनैः ।
SR No.002391
Book TitleChikitsa Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendranath Mtra
PublisherMitra Ayurvedic Pharmacy
Publication Year
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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